Home राजनीति देश से माफी कब मांगेंगे यह गुनाहगार.?

देश से माफी कब मांगेंगे यह गुनाहगार.?

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पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति की रिपोर्ट सामने आयी. इस रिपोर्ट में कहा गया कि… लगभग 86 प्रतिशत किसान संगठन कृषि कानून के समर्थन में थे. रिपोर्ट में सामने आया है कि 73 में से 61 किसान संगठनों ने तीनों कृषि कानूनों का समर्थन किया. समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ‘‘इन कानूनों को निरस्त करना या लंबे समय तक इसका निलंबन उन किसानों के खामोश बहुमत के खिलाफ अनुचित होगा जो कृषि कानूनों का समर्थन करते हैं.
उपरोक्त रिपोर्ट के अतिरिक्त किसान आंदोलन के सबसे बड़े चेहरे, बलबीर सिंह राजेवाल तथा हरियाणा भारतीय किसान यूनियन (चढूनी) के नेता गुरनाम सिंह चड़ूनी के साथ गठबंधन वाले “संयुक्त समाज मोर्चा” ने 104 सीटों पर चुनाव लड़ा और 103 सीटों पर उसके प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गयी. खुद राजेवाल भी तीन प्रतिशत वोट पाया और उसकी भी ज़मानत जब्त हो गयी. पूरे देश के किसानों के नेता, किसान हितों का ठेकेदार खुद को बताने वाले इन नेताओं के इस राजनीतिक मोर्चे को लगभग 77 प्रतिशत किसान मतदाताओं वाले कृषिप्रधान पंजाब में दो प्रतिशत से भी कम वोट मिले. तथाकथित किसान आंदोलन के तीसरे सबसे बड़े चेहरे राकेश टिकैत के तथाकथित प्रभाव क्षेत्र वाली जिन 113 सीटों पर प्रथम दो चरणों मे मतदान हुआ था
उन में से 70 प्रतिशत (78) सीटों पर भाजपा को विजय मिली है. सपा-रालोद गठबंधन को 113 में से मात्र 35 सीटों पर जीत मिली है. इन 35 में से 24 सीटें 40 से 50 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं वाली हैं. अतः इन सीटों पर गठबंधन की जीत का तथाकथित किसान आंदोलन से कोई लेनादेना नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनाई गई कमेटी की रिपोर्ट तथा उत्तर प्रदेश और पंजाब के उपरोक्त चुनाव परिणाम चीख चीखकर कह रहे हैं कि किसान आंदोलन की आड़ में 15 महीनों तक इस देश और उसके किसानों के साथ विश्वासघात किया गया. कृषि कानूनों के विरुद्ध लगातार जहरीला झूठ बोलकर उनको ठगा गया. किसानों के हितों के लिए बने उन कानूनों को रद्द करवाने की जिद्द कर के किसानों के भविष्य को अंधकारमय कर दिया गया.
पंजाब और उत्तरप्रदेश के किसानों द्वारा सुनाए गए जनादेश द्वारा तथाकथित किसान आंदोलन के नेताओं की प्रचंड राजनीतिक दुर्गति के पश्चात हताश योगेन्द्र यादव के मुंह से तथाकथित किसान आंदोलन का सच भी बाहर आ गया है. योगेन्द्र यादव ने स्वीकार किया है कि, “उसने और राकेश टिकैत ने किसान आंदोलन के माध्यम से भाजपा को हराने के लिए एक अच्छा क्रिकेट मैदान बनाया था, लेकिन विपक्ष ने अच्छी गेंदबाजी नहीं की और वह इसका लाभ नहीं उठा सका.
” योगेन्द्र यादव की यह हताश स्वीकारोक्ति पुख्ता प्रमाण है इस तथ्य का कि, 15 महीनों तक देश को अराजकता, अस्थिरता और हिंसा की आग में दहकाते रहे तथाकथित किसान आंदोलन के पाखंड का किसानों और कृषि कानूनों से कोई लेनादेना नहीं था. इस पाखंड का उद्देश्य कुछ और था. इस पाखंड के पीछे भारत विरोधी शक्तियां ही सक्रिय थीं। देश की जांच एजेंसियों की अबतक की जांच में पाकिस्तान से वाया कनाडा, भारत के तथाकथित किसान आंदोलन तक पहुंची भारी रकम की मनी ट्रेल उजागर हो चुकी है. किसान की नकाब में छुपे गुनाहगार बेनकाब हो चुके हैं. देश प्रतीक्षा कर रहा है कि देश से माफी कब मांगेंगे यह गुनाहगार.?
मेरे द्वारा लिखी गयी, इस सप्ताह प्रकाशित आवरण कथा का महत्वपूर्ण अंश।

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