Home आर ऐ -ऍम यादव ( राज्याध्यक्ष) द कश्मीर फाइल्स की घटनाओं की शरीयत अनुसार व्याख्या

द कश्मीर फाइल्स की घटनाओं की शरीयत अनुसार व्याख्या

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22मार्च को जयपुर डायलॉग्स का एक विडिओ शेयर किया था – द कश्मीर फाइल्स की घटनाओं की शरीयत अनुसार व्याख्या। लिंक यहाँ भी कमेन्ट बॉक्स में शेयर कर रहा हूँ।

इस एपिसोड के अंत के समीप, दर्शकों के प्रश्नों में ५८ वे मिनट पर एक टिपिकल प्रश्न आता है कि ऐसे ही चलता रहे तो कितने वर्षों में भारत की सत्ता इनके हाथों में होगी।
ऐसे प्रश्नकर्ता ही तो इस झुंड की सब से बड़ी ताकत है। क्योंकि ये उस तरह के लोग होते हैं जो किसी भी कीमत पर खुद की जान और संपत्ति की ही चिंता करते हैं। यहाँ “किसी भी कीमत पर” पर ही ध्यान दें, क्योंकि कुंजी वही है, अन्यथा प्राण और संपत्ति हमेशा बचाने ही चाहिए।
हमारे लिए क्यों सब से डरावने हैं ये शब्द – “किसी भी कीमत पर ?”
क्योंकि जहां डटकर लड़ना आवश्यक है जिससे सबकुछ बच सकता है, वहाँ इस तरह के लोगों को शत्रु द्वारा डराया जा सकता है और वे डरकर विश्वासघात भी कर सकते हैं। सब से पहले तो वे पलायन की सोचेंगे और बचाने के लिए लड़नेवालों को इनसे कोई सहायता नहीं मिलेगी। दूसरे, ये लोग लड़नेवालों को हतोत्साहित करेंगे ताकि वे लड़े नहीं। इसका कारण यही है कि ये अपने लिए यथास्थिति बनाए रखना चाहते हैं क्योंकि लड़ाई स्थिती को बदलती है और इन्हें हमेशा भय होता है कि इनकी बदली हुई स्थिती पहले से बदतर होगी। वो न बदले, वही रहे इसलिए ये शत्रु से पहले से साँठगांठ भी कर लेंगे। बाद में अगर शत्रु इनको भी खत्म करे कि ये अपनों के न हुए तो हमारे क्या होंगे, तब ये विश्वासघात का रोना भी रो सकते हैं कि जग बडा क्रूर है, कोई विश्वास के योग्य नहीं रहा।
महत्व का विषय है, इसपर विस्तार से लिखूँगा। इतना समझ लीजिए कि विधर्मी को नारायणास्त्र बनाने में इन यथास्थितिवादियों की भूमिका अहम होती है। अब इसके लिए आप को नारायणास्त्र को भी समझना होगा। महाभारत में इसका उल्लेख है । यह वो अस्त्र है जिससे कोई भी लड़ नहीं सकता। जो लड़े उसका नारायणास्त्र विनाश कर देता है। इसलिए नारायणास्त्र से सुरक्षित बचने का एक ही उपाय है कि शस्त्र फेंककर उसको प्रणाम करो।
महाभारत की कथा है, असली नारायणास्त्र उसमें था, लेकिन कलियुग में तो कोई भी गब्बर धमका देता है कि गब्बर से तुम्हें गब्बर ही बचा सकता है, और ये यथास्थितिवादी उसे नारायणास्त्र बनाते आए हैं। जो गब्बर से लड़ सकते हैं उनको सहायता या समर्थन न दे कर, या कभी उनकी गब्बर से चुगली कर के, या कभी गब्बर से पहले खुद ही गब्बर से अधिक क्रूरता से उन्हें निपटाकर ताकि गब्बर इनसे खुश रहे।
सोचिए इसपर, स्थिती हमेशा बदलती है।

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