यक़ीनन! पंजाब के बाद मोहिनी ग्रुप जोश में है। पूरे देश में अपना विस्तार करने की पुरज़ोर कोशिशों में जुट गया है।
गुजरात के बाद पहाड़ी इलाके में रोड शो करके सबको भ्रष्ट घोषित कर दिया है। यूट्यूब पत्रकाल तो गुजरात में मोदी-शाह को पटखनी दिलवा चुके है। बस शपथग्रहण बाक़ी है। जिस अंदाज में यूपी में अखिलेश जादो की ताजपोशी करवाई है। अब मोहिनी को तीसरा राज्य दिलवाकर, मोदी-शाह को मजा चखाएंगे।
निसंदेह पंजाब में क्लीन स्वीप है। तो असलियत यह भी है कि 2014 से गोवा में सत्ता प्राप्ति की कोशिश चल रही है। महज 40 विधानसभा वाले राज्य ने 2022 में जाकर 1 विधायक दिया है। उसमें भी तकनीकी नजरिये से देखे तो भाजपा व कांग्रेस के बागी नेता जो निर्दलीय लड़ा करते थे। उन्हें मोहनी और टीएमसी का विकल्प मिला। लेकिन सत्ता में भाजपा ही लौटी।
तो वही, यूपी में पूर्ण बहुमत से पूरे 202 अंक पिछड़ गई। थोड़ा दम लगाया होता। तो काम बन जाता।
दूसरी ओर उत्तराखंड में कर्नल साब के नेतृत्व में ख़ूब दम लगाया। वोट प्रतिशत तो मिला। लेकिन सीट न मिली। यहाँ कांग्रेस को खतरा है। भाजपा इस कार्यकाल में बेहतर करेगी। तो रिटेन कर लेगी। परन्तु मुकाबला दिलचस्प रहेगा।
गुजरात में छोटा व बड़ा मुख्यमंत्री रोड शो करके संगठन को विस्तार दिए। दूसरे दिन 150 पदाधिकारी भाजपा में शामिल हो लिए।
मयंक गांधी के आंदोलन में मोहिनी के मुखिया ने वाक़ई असर छोड़ा था। लेकिन 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद तुरन्त प्रभाव से बेअसर हो चला।
अब राजनीति पुराने माहौल वाली नहीं रही। सोशल मीडिया का जमाना है। पिछले भाषण में क्या बोला था। अगले में सुर बदला तो स्कोडा मॉडल देश के सामने रख दिया जाता है। जियो के भंडारे में हाथोंहाथ परोसाई है। इस हाथ दो। उस हाथ पकड़ो।
मोहनी बहुत खतनाक हैं। शुगर की भांति चोट करेगी। सीधे नसों में उतरेगी। फिर चाहे कितने भी इंसुलिन लगवा लो। कोई फायदा नहीं है। भाजपा नेताओं को मोदी-योगी-शाह के भरोसे न रहकर जमीनी स्तर पर कार्य करना पड़ेगा। तभी 50 प्रतिशत की लड़ाई में खड़े रह पाओगे।
“गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ्ल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले”
पंजाब जीत के बाद सदन में आक्रमकता बढ़ गई है।
इसलिए भाजपा को अपने कोर वोटर को महत्व देना पड़ेगा। जिस अंदाज में फाइल्स को प्रोपगैंडा व झूठी बतलाकर उन्होंने अपने कोर वोटर को खुश रखा।
मोदी-योगी जी के चेहरे पर जीतकर ऐश करने से पुनः विपक्ष का वनवास मिलने में देरी न लगेगी। जो चुनकर पहुँचते है। उन्हें लोगों को सुनना पड़ेगा और उनसे जुड़ना पड़ेगा। माना कि चुनौती दूर है। खुद को तैयार करने का वक्त मिल रहा है। सबसे पहला तोड़ दिल्ली से निकलेगा। दिल्ली की मजबूती को भेदना आवश्यक है।
कांग्रेस तो भाजपा को रोकने के लिए खुद को घायल करने को तैयार बैठी है। 2013 में दिल्ली का उदाहरण सबके सामने है। जहाँ क्षेत्रीय दल है। वहाँ समस्या ज्यादा नहीं है। लेकिन जहां कांग्रेस कोमा में है। वहाँ खतरा अधिक है।
मालूम है भाजपा में हमसे ज्यादा समझदार बैठे है। लेकिन दो बार दिल्ली में 3 से 5 ही कर पाए। ख़ैर।