Home विषयऐतिहासिक पराग अग्रवाल ट्विटर के सीईओ

पराग अग्रवाल ट्विटर के सीईओ

by Nitin Tripathi
711 views
भारतीय मूल के पराग अग्रवाल ट्विटर के सीईओ घोषित किए गए हैं।
बिल्कुल सही समय है ब्रेन ड्रेन को डिस्कस करने का। बड़ा टॉपिक है तो केवल टेक्नॉलजी ब्रैन ड्रेन डिस्कस है इस पोस्ट पर।
नब्बे के दसकों मे सरकारों ने हमे समझाया कि भारत की बड़ी समस्या है ब्रैन ड्रेन । अर्थात वह टैलेंट जो भारत मे भारत के संसाधनों का इशतेमाल कर पढ़ कर विदेश चल गया और उसने वहाँ उन्नति की। परफेक्ट सोसलिस्ट इक्स्क्यूज़ अपनी समस्या के लिए किसी और को दोषी ठहराना। समय के साथ देश ने काफी उन्नति की, लोगों को चीजें समझ भी आने लगीं। फिर भी अभी भी एक बड़ी जनसंख्या है जो ब्रेन ड्रेन को समस्या मानती है।
अब आते हैँ आंकड़ों पर। आज की तारीख मे अमेरिका की टॉप टेक कंपनियों जैसी गूगल / माइक्रोसॉफ्ट / आईबीएम और अब ट्विटर के सीईओ भारतीय हैं। इन कंपनियों ने भारत मे लाखों नए रोजगार पैदा किए। वह रोजगार जो अमेरिका मे भी किए जा सकते थे और आउट्सोर्स कर फिलीपीन्स, रसिया या चाइना मे भी। तकनीक का क्षेत्र हो या वित्त – लगभग सभी में जिसमें भी भारतीय मूल के प्रथम जनरेशन के सीईओ हैं उन्होंने भारत को इतना कुछ दिया जितना भारत मे रहते हुवे लाखों लोग नहीं दे पाते।
यह कहना कि यह लोग भारत मे होते तो भी इतना ही सफल होते एक भद्दा मजाक और समाज की असलियत न जानना मात्र है। ट्विटर का भारतीय सीईओ 37 वर्ष का है। भारत की किसी बड़ी कंपनी मे घर से बाहर से आए हुवे कितने 37 वर्षीय सीईओ को जानते हैं आप? यह सब बेहद सामान्य घरों के लोग रहे जो अपनी योग्यता के आधार पर यहाँ तक पहुंचे। भारत की टॉप सौ कंपनियों के सीईओ की सूची निकाल लीजिए, अस्सी प्रतिशत कंपनियों की मालिक के परिवार वाले हैं, दस खानदानी पैसे वाले। शायद ही आठ दस शून्य से उठ वहाँ पहुंचे हों रिटायर मेंट के समय। वैसे भारत की भी कंपनियों के नब्बे प्रतिशत सीईओ विदेशों के ही पढे होते हैं। अमेरिका के तो बस पाँच प्रतिशत सीईओ ही भारत के पढे हैं, भारत के तो नब्बे प्रतिशत सीईओ विदेश मे पढे हैं। तो शिकायत करने का आधार तो उन्हें होना चाहिए कि भारतीय आते हैं, हमारे संसाधनों का उपयोग कर शिक्षा लेते हैं और भारत लौट भारत को रोजगार देते हैं।
न न ये न कहिएगा कि यहाँ की सरकार टेक्नॉलजी शिक्षा मे पैसा खर्च करती है। उलटे जितना आपका पूरा टेक्नॉलजी शिक्षा का बजट है, अमेरिका मे बड़े बड़ी यूनिवर्सिटी का वार्षिक बजट है, जिसका एक बहुत बड़ा हिस्सा अमेरिकन सरकार देती है। यूनिवर्सिटी बनाने मे भी अमेरिकन दानवीरों और सरकार का ही हाथ होता है। भारतीय जब वहाँ पढ़ने जाते हैं तो अधिसंख्य पार्ट टाइम नौकरी कर पैसे भी बनाते हैं। वह हमें शिक्षा का इंफ्रा स्ट्रक्चर ही नहीं उसे पूरा करने के लिए नौकरी भी देते हैं। भारतीय छात्र यदि वहाँ पढ़ने जाते हैं और वापस लौट कर सीईओ आदि बनते हैं तो उनकी इस सफलता मे हमें अमेरिका को कम से कम उतना ही धन्यवाद देना चाहिए जितना हम सुंदर पिकाई की सफलता के लिए भारत का श्रेय लेते हैं। बस अंतर याद रखिए वहाँ के पाँच प्रतिशत सीईओ भारत के पढे हैं और आपके यहाँ 80-90% वहाँ से पढे हुवे।
और साथ ही यह भी है जब आपके देश का कोई विदेश मे सफल होता है तो आपके बारे मे विदेश मे राय बनती है कि आप भी उतने ही समझदार हैं। आज पराग अग्रवाल सीईओ बने हैं तो एलोन मस्क जैसे लोग जो स्वभावतः अक्खड़ हैं बोल रहे हैं कि भारत के टैलेंट को सलाम। आपके देश के बारे मे जो राय बनती है, उसी आधार पर विदेशों से पूंजी निवेश आता है, रोजगार आता है और विश्व मे आपकी धाक जमती है।
विषय और भी बहुत सारे हैं जैसे कि nri द्वारा भारत भेजा जा रहा विदेशी मुद्रा, उनके पैसे / नालेज से उनके परिवार के सदस्यों की अगली पीढ़ी के लाइफ स्टाइल मे वृद्धि, सफल nri समुदाय द्वारा अपने गाँव / शहर के लिए किए गए कार्य, विदेशों मे अपने आचरण के द्वारा हिन्दुत्व की एक अच्छी इमेज बनाना, भारत की राजनैतिक पकड़ विदेश मे मजबूत करना आदि।
मुझे यह कहने मे एक बूंद संकोच नहीं होता कि ऐसे हर nri ने जितना भारत से लिया है उसका दस गुना वापस समर्पित भी किया है। जलन, डाह या अज्ञानता मे हम भले ही इसे नकारें।
ब्रैन ड्रेन 2021 मे टोटल मीनिंग लेस टॉपिक है। बल्कि ज्यादा डिस्कस करेंगे तो बाहर भी यही डिस्कस होने लगेगा और समस्या भारत को ज्यादा हो जाएगी, हम ज्यादा बड़े लाभार्थी हैं – पैसे / शिक्षा / रोजगार के विदेशों द्वारा न कि वह।

Related Articles

Leave a Comment