Home हमारे लेखकसुमंत विद्वन्स परिवारों भी समानता का व्यवहार

परिवारों भी समानता का व्यवहार

कुछ दिनों पहले मैंने हाथी और अंधों वाली कहानी का उदाहरण दिया था। अज्ञानी व्यक्ति अपनी सीमित दृष्टि से जितना देख पाता है, वह केवल उतने को ही अंतिम सत्य मानकर जीता है। ऐसे अज्ञानी व्यक्ति में यदि अहंकार भी हो, तो वह अपनी छोटी सोच को ही जबरन पूरी दुनिया पर थोपने में लग जाता है। कृपया ऐसे लोगों के बहकावे में आकर अपना जीवन तबाह न करें। अपने लिए क्या सही और क्या गलत है, उसका निर्णय स्वयं ही करें और अपना मार्ग स्वयं चुनें।
बचपन से आज तक मैंने अपने परिवार में कभी कोई भेदभाव होता हुआ नहीं देखा। पारिवारिक अनुशासन के नियम बेटों और बेटियों दोनों पर लागू होते थे और आज भी होते हैं। अपनी बात कहने की पूरी स्वतंत्रता परिवार के पुरुषों और स्त्रियों को समान रूप से मिली हुई है। केवल हमारी पीढ़ी ही नहीं, बल्कि हमारे पिताजी, दादाजी और परदादाजी की पीढ़ियों तक के भी पुरुषों और महिलाओं को अपने-अपने समय में उच्च शिक्षा प्राप्त करने, अपनी इच्छा से नौकरी या रोजगार करने, विवाह करने या अविवाहित रहने आदि की पूरी स्वतंत्रता हमेशा से रही है।
केवल हमारी ही पीढ़ी में नहीं, बल्कि मेरे माता-पिता और दादा-दादी की पीढ़ी में भी हमारे परिवार की कई महिलाओं ने उच्च शिक्षा प्राप्त की और डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर जैसे प्रतिष्ठित पदों पर वर्षों तक काम भी किया। कुछ महिलाएं उद्यमी भी बनीं और परिवार की कुछ बेटियां पढ़ाई के लिए विदेशों में भी गई।
महिलाओं को घूंघट या परदे में रखने की प्रथा भी हमारे यहां कभी नहीं रहीं। अपने जीवन में आज तक मैंने ऐसा कोई प्रसंग नहीं देखा, जब घर का कोई भी बड़ा निर्णय परिवार की महिलाओं की सहमति के बिना केवल पुरुषों ने ही ले लिया हो। यह केवल आज की बात नहीं है बल्कि मेरे दादा-दादी के जमाने में भी हमारे परिवार में मैंने यही माहौल देखा है और यह भी सुना है कि उससे पहले की पीढ़ियों में भी लगभग ऐसी ही स्थिति थी। इसलिए मैं इस बात को बहुत अच्छी तरह समझता हूं कि व्यक्ति की सफलता में परिवार का बहुत बड़ा योगदान रहता है।
मैं यह भी स्पष्ट कहना चाहता हूं कि यह बात केवल मेरे अकेले के परिवार की नहीं है। मैं अपने आस-पड़ोस में, अपने शहर में और भारत भर में कई जगह ऐसे सैकड़ों परिवारों को जानता हूं, जहां इस प्रकार का बराबरी वाला माहौल हमेशा से रहा है।
मुझे विश्वास है कि आपमें से भी कई लोगों के परिवारों में ऐसा माहौल रहता होगा और आपने अपने आसपास भी ऐसे परिवार देखे होंगे। थोड़ा-बहुत अंतर तो हर घर में रहता है और कुछ बुरे अपवाद भी अवश्य ही होते हैं, जो नहीं होने चाहिए। लेकिन मैंने अपने परिवार में और अधिकांशतः अन्य कई परिवारों भी समानता का व्यवहार ही देखा है।
मैं इस बात को समझता हूं कि जितना मैंने देखा या जैसा मेरा अच्छा अनुभव रहा है, केवल उतना ही सत्य नहीं है। इसके विपरीत आचरण करने वाले भी कई परिवार हैं, जिनमें समानता का पूरा अभाव रहता है। यह स्वाभाविक है कि जिन लोगों ने अपना बचपन ऐसे ही परिवारों में बिताया होगा और अपने घर में हमेशा दमन का ही वातावरण देखा होगा, उन्हें उसमें घुटन महसूस होती होगी और इसे बदलने के लिए उनका मन छटपटाता होगा। यह भी संभव है कि ऐसे लोगों को परिवार शब्द से ही नफरत हो और वे परिवार के स्वरूप को ही पूरी तरह बदलना या मिटा देना चाहें।
ऐसे लोगों के लिए मेरा सुझाव है कि वे पूरी दुनिया से परिवार व्यवस्था को उजाड़ने का अभियान चलाने की बजाय केवल अपने परिवार पर ध्यान दें। उन्हें जो सुधार या जो बदलाव करना है, वह पहले अपने परिवार में करें। एक गलती को दूसरी गलती करके नहीं सुधारा जा सकता, बल्कि एक गलती के बदले दूसरी गलती करना और भी बड़ी गलती है। समस्या परिवार में है, परिवार व्यवस्था में नहीं। कुछ सुधारने की बेचैनी है तो अपने समस्याग्रस्त परिवार को सुधारें और सकारात्मक बदलाव लाएं। पूरी परिवार व्यवस्था को उजाड़ने का बीड़ा उठाकर सबके परिवारों को तबाह करने का अभियान न चलाएं।
जिसे स्वच्छंद और उन्मुक्त जीवन जीना है, वह वैसा करने को स्वतंत्र है लेकिन अपनी स्वच्छंदता को ही अंतिम सत्य मानकर सभी को जबरन उसमें न घसीटें। उन्हें स्वच्छंदता में जो सुख मिलता है, संभव है कि दूसरों को वही सुख, शांति, संतुष्टि और सुरक्षा की भावना अपने परिवार और प्रियजनों के बीच रहकर ही महसूस होती हो। इसलिए अपनी स्वच्छंदता को ही सभी पर न थोपें।
कीचड़ में लोटने वाली भैंस और नाली में पड़े रहने वाले सुअर को भी यही लगता होगा कि जीवन का सबसे बड़ा सुख और अपनी वास्तविक स्वतंत्रता वहां लोटने में ही है। उन्हें उनकी स्वतंत्रता का पूरा आनंद लेना चाहिए लेकिन उन्हें यह नहीं सोचना चाहिए कि उनकी जो सुख की परिभाषा है, वही पूरी दुनिया के हर प्राणी की भी है। जो व्यक्ति परिवार को और परिवार व्यवस्था को पसंद करता है, उसे भी अपनी इस इच्छा पर कायम रहने का पूरा अधिकार है। इसलिए अपनी स्वच्छंदता की जिद हर किसी पर न थोपें।
आपका सुख मिठाई में और दूसरे किसी का समोसे में हो सकता है। उसे अपना समोसा खाने दीजिए लेकिन उसकी इस बात पर ध्यान मत दीजिए कि आपको भी अपनी मिठाई कूड़े में फेंक कर उसकी जूठन खानी चाहिए।
परिवार को ही सब कुछ मानने वाले और परिवार व्यवस्था से पूरी तरह नफरत करने वाले दोनों ही तरह के लोगों को यह नहीं समझना चाहिए कि केवल उनका तरीका ही सही है। अपने मार्ग को ही अंतिम सत्य मानना और असहमत होने वाले का तिरस्कार करने वाले दोनों ही तरह के लोग गलत मार्ग पर हैं।
अक्सर यह देखने को मिलता है कि समानता और स्वतंत्रता का भाषण देते रहने वाले लोग ही दूसरों की स्वतंत्रता समाप्त करके अपनी राय सब पर थोपने में जुटे रहते हैं। जिसे अपने परिवार से नफरत है, वह नफरत करने को स्वतंत्र है, लेकिन उसे यह याद रखना चाहिए कि उसकी स्वतंत्रता वहां समाप्त हो जाती है जहां दूसरे का परिवार शुरू होता है। इसलिए वह अपनी स्वच्छंदता अपने तक ही रखे, सबका परिवार तोड़ने और पूरी परिवार व्यवस्था को ही मिटाने के झंझट में उलझकर अपना जीवन तबाह न करे।
आपको भी यह ध्यान रखना चाहिए कि आप अपने निर्णय स्वयं लें और अपने लाभ हानि का हिसाब खुद करें। नदी का पानी साफ न लग रहा हो तो नाले में कूद जाना समझदारी नहीं है। बाकी आपकी इच्छा। सादर!

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