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पुनर्जन्म

आर्यभट्ट विश्व के वे पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने बताया कि पृथ्वी अंतरिक्ष में अपनी कक्षा में धुरी पर घूमती है।
पुरातनपंथी मूढ़ उस युग में भी काफी थे सो हल्ला मचना ही था।
उन्हें सम्मन जारी हो गया।
शिखा फटकारते ‘ज्ञानियों’ के बीच पेशी हुई।
“तुम्हारी ये कहने की जुर्रत कैसे हुई जबकि वेद पुराणों में स्पष्ट लिखा है कि पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी है।” उबलता हुआ ज्ञानी समुदाय चिल्लाया।
आर्यभट्ट फौरन साष्टांग दंडवत हो गए और बोले कि सरकार बहुत बड़ी भूल हो गई।
सारे ज्ञानीजन अपनी मूँछों पर ताव देने लगे।
डरते डरते आर्यभट्ट ने कहा हुजूर अगर इजाजत हो तो एक सवाल पूछ लूँ?
“बिल्कुल” विजयगर्व से हंसते हुए ज्ञानीजन बोले।
“सरकार अगर पृथ्वी शेषनाग के फन पर स्थित है तो शेषनाग किसपर स्थित हैं?”
“सिंपल! महान कूर्म पर।”
“और कूर्म?”
“वो अष्ट दिग्गजों की पीठ पर”
“और अष्ट दिग्गज?”
“गो माता के सींगों पर।”
“और गो माता?”
“आsssss मssssss ऊम्म्ममम्मssss व..वो बस अंतरिक्ष में ऐसे ही स्थित हैं।
अब मुस्कुराने की बारी आर्यभट्ट की थी।
“भले आदमियो, इतना प्रपंच रचने की आवश्यकता क्या है अगर आखिरकार अंतरिक्ष ही आना है।”
मेरी कहानी अभी शेष है।
मेरे ख्याल से बाद में आर्यभट्ट को वे कमरे में ले गए होंगे और बोले होंगे कि बात तो तुम सहिये बोले हो लेकिन अगर ये प्रपंची चमत्कारिक कथाएं न बोलें तो हमें हलवा पूरी कौन खिलायेगा। इसलिये अपनी जुबान बंद रखो और अपना काम करते रहो और हमें अपना धंधा चलाने दो।
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ऐसे ही लोगों ने पुराण जैसे अमूल्य ऐतिहासिक ग्रंथों में कल्पित अतार्किक मूर्खतापूर्ण कथाएं भरकर उनका ऐतिहासिक महत्व नष्ट कर दिया और कभी जीते जागते इस धरती पर चले फिरे महापुरुषों को ‘चमत्कारिक मिथक’ बना दिया व इतिहास की हत्या कर दी।
वे मूढ़ व धूर्त धर्म के धंधेबाज आज भी चरबीगोलों व उनके चेलों के रूप में पुनर्जन्म ले लेकर इस धरती और महान संस्कृति की आत्मा को नोंचने में लगे हुए हैं।
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चाहे स्वयं कुछ न पढ़ा हो, न चिंतन विश्लेषण किया हो, न तर्क न प्रमाण लेकिन वैसे ही लिखो जैसे हम विश्वास करते आये हैं, ये इन मूढ़ों की पहचान है।

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