Home अमित सिंघल प्रधानमंत्री मोदी: “बीज बोने वाले को इस बात की परवाह नहीं करनी चाहिए ….2

प्रधानमंत्री मोदी: “बीज बोने वाले को इस बात की परवाह नहीं करनी चाहिए ….2

by अमित सिंघल
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प्रधानमंत्री मोदी: “बीज बोने वाले को इस बात की परवाह नहीं करनी चाहिए कि उसका फल किसे मिलेगा”।

 

ओपन मैगज़ीन को दिए एक इंटरव्यू में प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि उनका एक आधारभूत लक्ष्य यह कि आमजन को सशक्त बनाया जा सके जिससे सभी लोग जीवन में प्रगति (upward mobility) कर सके। इसके लिए यह आवश्यक है कि हर युवा को अवसर मिले। और जब मैं अवसरों की बात करता हूं, तो मैं केवल उस मदद का उल्लेख नहीं करता जो उन्हें आश्रित रखती है, बल्कि वह समर्थन जो उन्हें अपनी आकांक्षाओं को सम्मान के साथ पूरा करने के लिए आत्मनिर्भर बनाता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि वे ईमानदार आलोचकों का बहुत सम्मान करते है। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसे आलोचकों की संख्या बहुत कम है; अधिकतर लोग आरोप ही लगाते हैं, परिकल्पनाओं का खेल खेलते है। और इसका कारण यह है कि आलोचना के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है, शोध करना पड़ता है और आज की भागदौड़ भरी दुनिया में शायद लोगों के पास समय नहीं है। इसलिए कभी-कभी, मुझे आलोचकों की याद आती है।
पूछा गया कि कई विशेषज्ञ यह मानते हैं कि विकास में तेजी लाने, अर्थव्यवस्था और शासन में सुधार और बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए आपके द्वारा किए गए उपाय सही दिशा में कदम हैं। लेकिन वे यह भी कहते हैं कि लाभ मिलने में समय लगेगा और आप 2024 का चुनाव नहीं जीत पाएंगे।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जो लोग ऐसा सोचते हैं, वे ना तो अपने देश के लोगों को जानते हैं, न ही उनकी सोच को। देश के लोग इतने समझदार हैं कि अच्छे निस्वार्थ भाव से किए गए सभी अच्छे कामों को समझ सकते हैं और उसका समर्थन कर सकते हैं। और इसलिए मुझे देश की जनता ने लगातार 20 वर्षों तक सरकार के मुखिया के रूप में काम करने का अवसर दिया है।
बीज बोने वाले को इस बात की परवाह नहीं करनी चाहिए कि उसका फल किसे मिलेगा। मुद्दा यह नहीं है कि मुझे अपनी आर्थिक नीतियों का लाभ मिलेगा या नहीं, मुद्दा यह है कि राष्ट्र को लाभ मिलेगा।
लाभ प्रकट होने में समय लग सकता है लेकिन भारत के लोग चतुर हैं और हमारी नीतियों को देख रहे हैं और उनका सकारात्मक मूल्यांकन कर रहे हैं। लोग देख रहे हैं कि वैश्विक एजेंसीज और कंपनी भारत में आर्थिक गति और विकास के बारे में पुनः इंटरेस्ट ले रही है ।
लोग विदेशी मुद्रा के रिकॉर्ड प्रवाह को नोट कर रहे हैं, लोग बढ़ते निर्यात पर ध्यान दे रहे हैं, लोग अच्छे जीएसटी कलेक्शन पर ध्यान दे रहे हैं, लोग दर्जनों स्टार्टअप (नए उद्यम) को यूनिकॉर्न (एक बिलियन डॉलर या 7500 करोड़ रुपये की वैल्यू वाली कंपनी) बनने पर ध्यान दे रहे हैं, लोग उन सूचकांकों पर ध्यान दे रहे है जो दर्शाते है कि भारत में आर्थिक विकास तेजी पर हैं।
प्रधानमंत्री जी से पूछा गया कि आपकी सरकार का वैचारिक परिप्रेक्ष्य गरीब और व्यापार समर्थक है। लेकिन साथ ही, सरकार ने उद्यमों के समर्थन में, व्यवसाय करने में आसान बनाना, निरर्थक कानूनों को समाप्त करना, करों को कम करना, और उद्यमों को वित्तीय प्रोत्साहन (पीएलआई) जैसे कई उपाय किए हैं।
प्रधानमंत्री जी ने समझाया कि प्राथमिक छात्रों, माध्यमिक छात्रों और पीएचडी करने वाले छात्रों के लिए पाठ्यक्रम और वातावरण अलग हैं, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि वे एक-दूसरे के साथ संघर्ष में हैं।
हमारा देश अभी विकसित देश नहीं है, हम अभी भी गरीबी से जूझ रहे हैं। समाज के प्रत्येक व्यक्ति को उसकी आवश्यकता और क्षमता के अनुसार अवसर मिलना चाहिए। तभी विकास संभव है।
गरीबों को एक प्रकार के अवसर की आवश्यकता होती है और धन के सृजनकर्ताओं (उद्यमियों) को दूसरे प्रकार के अवसर की आवश्यकता होती है। जब सरकार ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ में विश्वास करती है, तो उसका दृष्टिकोण कभी भी एकतरफा नहीं हो सकता; बल्कि यह बहुआयामी हो जाता है। जिन चीजों में आप अंतर्विरोध देखते हैं, उनमें मैं एक अंतर्संबंध देखता हूं।
गरीब-समर्थक और उद्यम-समर्थक परस्पर नीतियां विरोधी नहीं हैं । हम इन नीतियों को अलग-अलग श्रेणियों में क्यों विभाजित करते है? मेरा केवल एक ही क्राइटेरिया है कि सभी नीति निर्धारण जन हितैषी होना चाहिए। इन कृत्रिम श्रेणियों को बनाकर आप समाज में व्यापत परस्पर निर्भरता को नुक्सान पंहुचा रहे हैं। व्यापार और जनता एक दूसरे के विरोध में काम नहीं कर रहे हैं।
उदाहरण के लिए, जब उद्यमों को वित्तीय प्रोत्साहन (पीएलआई) वाली योजना कंपनियों को निर्माण क्षमता का विस्तार करने और रोजगार के नए अवसर पैदा करने की अनुमति देती है, तो क्या गरीबों को लाभ नहीं होता है? जब हम JAM (जन-धन, आधार, मोबाइल) के माध्यम से सार्वजनिक सेवाओं की डिलीवरी में भ्रष्टाचार रोककर हजारों करोड़ रुपये बचाते हैं, तो क्या इससे मध्यम वर्ग, करदाता और व्यवसायों को लाभ नहीं होता है? वास्तव में, जब गरीब और किसान सीधे धन को प्राप्त करते हैं, तो वे अधिक उपभोग करते हैं, जो बदले में मध्यम वर्ग और समग्र अर्थव्यवस्था की मदद करता है।

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