प्री वेडिंग और वेडिंग शूट से संबंधित पिछले पोस्ट पर ‘प्रगतिशील’ विचारों वाली अनुराधा गुप्ता जी ने लिखा — ”जिन्हें आपत्ति हो वो न देखें। मज़े की बात है, देखते भी हैं मज़े भी लेते हैं और आपत्ति भी होती है।”
अनुराधाजी को कोई जाकर समझाए कि इस मुद्दे पर लिखना इसलिए जरूरी है क्योंकि वायरल होने के बाद तस्वीरें देखी जा चुकी हैं। इसलिए लिखना जरूरी है क्योंकि कल को कोई रोमिला थापर इन तस्वीरों को दिखाकर यह साबित ना कर दें कि
यह भारतीय हिन्दू समाज में विवाह से पूर्व अनिवार्य शर्त हुआ करता था। कोई बिलाह अहमद किसी अशोक पांडेय के साथ मिलकर अपनी किताब में इसे हिन्दू प्रथा ना साबित कर दे।
इसलिए यह लिखना जरूरी है क्योंकि धूर्त इको सिस्टम इस झूठ को भी तैंतीस करोड़ देवी देवताओं वाले झूठ की तरह स्थापित ना कर दे।
यह पोस्ट इसलिए लिखना जरूरी है क्योंकि आप जान पाएं कि प्री वेडिंग और वेडिंग शूट के नाम पर एक संक्रामक बीमारी कैसे कैंसर की तरह भारतीय समाज में फैल रहा है। समय रहते उपचार नहीं हुआ तो यह समाज के बड़े हिस्से को सड़ा देगा।