Home नए लेखकओम लवानिया फुलेरा गांव का एक रिव्यु पंचायत 2 में

फुलेरा गांव का एक रिव्यु पंचायत 2 में

ओम लवानिया

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फुलेरा पंचायत के दूसरे कार्यकाल में कहानी कुछ नए और दिलचस्प किरदारों को जोड़ती हुई, सचिव जी अभिषेक त्रिपाठी को केंद्र में लेती है। लेखक चंदन कुमार ने फुलेरा में पहले जैसी रौनक जमाई है। क्लाइमैक्स में 2019 फरवरी जोड़कर नमी थमा दिए। #ओमलवानियाफ़िल्मरिव्यु
स्क्रीन प्ले रोचक है कोई पल या कहे सीक्वेंस स्कीप करने का मौका न देता है। क्रेडिट टाइटलिंग की थीम भी नहीं, इतना सुकून मिलता है जब पंचायत में बैठकर गप्पे लड़ाते देखते है।
सबसे अव्वल टीवीएफ अपने कंटेंट की कहानियों के किरदारों को कलाकार देते है जो वाक़ई किरदार नजर आते है। कलाकार और किरदार में रत्ती भर भी कोई गैप नहीं दिखलाई देता है।
पंचायत के सीजन टू की कहानी ने जिन किरदारों को उठाया है भूषण शर्मा उर्फ़ बनराकस अच्छे से लिखा गया, किरदार है, उससे सॉलिड दुर्गेश कुमार का चयन और उनका खुद को भूषण कुमार के हवाले कर देना….जब भी स्क्रीन पर दौड़े है मज़ा दुगुना कर दिए है। ग्रे शेड में सीरीयस और मैसेज देने वाला क़िरदार है।
भूषण कुमार के बाद विनोद ने ध्यान आकर्षित किया है, डायलॉग डिलवरी और हाव-भाव प्योर देहाती है। पहली फ्रेम से कनेक्ट कर गए। यक़ीनन विनोद को दर्शकों के सामने रखने वाले लोकल कलाकार है। अभिनय स्किल अच्छी है।
इन दोनों के बाद तीसरा किरदार जिसे कहानी ने चुना है बकरी मालिक, उम्दा….भूषण शर्मा की नौटंकी पर गज़ब डायलॉग घुमाए है। एक्सप्रेशन तो बेस्ट थे। सीसीटीवी रिकॉर्डिंग में बकरी खोजना…सिचुएशनल चुमेश्वरी सीक्वेंस है। पंचायत के की किरदारों के कलाकारों तो बेहतरीन और मशहूर अभिनेता है। उनका कार्यकाल अच्छा है।
नीना गुप्ता, मंजू देवी के साथ ज्यादा बोल्ड और मुखर रहती है। उनका अपने किरदारों से मिलना प्रभावित कर रहा है। पिछले कंटेंट देखें, तो यही लगा।
सचिव सहायक विकास यानी चंदन रॉय इनकी छोटी-छोटी बारीकियां सीक्वेंस में गाँव का फील देकर निकलती है। शुरुआत में मिट्टी की ट्रॉली की बात करने जाते, वक्त विकास का सड़क पर पड़े लट्ठे पर चलना, सचिव व रिंकी के बीच जानने की उत्सुकता जोड़ती है।
उपप्राधन प्रह्लाद यानी फैजल खान में इरफान खान के अभिनय का अंश झलकता है। नेचुरल हाव-भाव, हालांकि टीवीएफ ऐसे ही कलाकारों को तवज्जो देता आया है। क्योंकि उनके कंटेंट में कहानी नायक होती है। रिंकी, को स्क्रीन प्रिजेंस मिला है लेकिन अभी तक उनके किरदार को ठीक दिशा न मिल पाई है।
कहानी शहर से सिद्धार्थ को बुलाती है लेकिन थोड़ा ओवर एक्टिंग से किरदार दब गया।
सचिव जी अभिषेक त्रिपाठी यानी जितेंद्र कुमार, ओटीटी ने भारतीय सिनेमाई जगत को अच्छे कलाकार से मिलवाया है टीवीएफ जरिया बना है। टीवीएफ और जीतू भैया की जुगलबंदी जोरदार है।
प्रधान जी, ब्रज भूषण दुबे इनसे मिलने वाले है कलाकार भारतीय सिने जगत के एक सिलेबस है। नए कलाकार रघुबीर यादव जी को पढ़ ले, तो अभिनय के क्षेत्र में बहुत कुछ कर जाएंगे। लेकिन….लेकिन! फुलेरा की प्रधानी में कोई चानस नहीं है, जो दुबेजी की कूटनीति को टक्कर दे सके।
दूसरे कार्यकाल के स्क्रीन प्ले को वजनदार संवाद मिले है या कहे दिए गए है।
नाचने वाला डायलॉग रहा हो या फिर देशभक्ति व राष्ट्र भक्ति के प्रति जज्बा वाली लाइन…भूषण के हिस्से में पँच भरे डाइलॉग आए है, डायलॉग डिलवरी में संवाद का इफ़ेक्ट डबल हो जाता है।
दीपक कुमार मिश्रा जी अक्सर ओरिजनल कंटेंट के बाद अगले भाग में निर्देशक और लेखक लौट जाते है। क्योंकि उनको सफलता पच न पाती है और गुड़ गोबर करके निकल लेते है। लेकिन आपने पंचायत का रुतबा व माहौल कम न होने दिया, उसी स्केल पर मेंटेन रखा। उम्मीद है अगले कार्यकाल भी बेहतर ही बीतेंगे।
पंचायत के गलियारें में कई मजेदार कॉमिक सीक्वेंस है लेकिन बीबीपुर में नाच देखने से लेकर अंत के डाइलॉग में जो मिलाकर ज़िंदगी की सच्चाई का थप्पड़ पड़ता है न, ऐसे ही पंचेज से सिनेमा का असल महत्व सामने आता है।
रिव्यु अच्छा लगे तो आगे भी पढ़ते रहना….धन्यवाद

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