बदलता साल, गुजरता वक्त काफी कुछ सिखाता हैं। कभी कभी लगता हैं कि जीवन के सुनापन को भरने में यादों का बहुत बड़ा हाथ हैं।हर साल हम प्रयास करते हैं कि कुछ नया करेंगे,कुछ बदलाव अपने में लाएंगे और गुजरते साल के साथ पाते हैं कि कुछ हुआ, कुछ नही हुआ। जो नही हुआ शायद उसपर अपना वश नही था, यह सोच कर हम शान्त हो जाते हैं।हर साल गुजरता कुछ न कुछ सिखाता जाता है ऐसा हम मान लेते हैं। भूतकाल से सिखना और वर्तमान में अपने आप को आने वाले कल के लिए तैयार करना ही जीवन हैं।
यह तो तय हैं कि अपने प्रारब्ध के निर्माता हम स्वयं हैं।हमारी खुशियाँ,हमारे अपने हाथों में हैं। खैर हर गुजरते साल और वक्त के साथ एक दिन रुक कर हम सभी को कुछ सवालों के प्रति सोचना चाहिए। कुछ सवाल निम्नांकित हो सकते हैं! इस वर्ष हमने क्या क्या सिखा और पुराना क्या क्या छोड़ा?कही जाने अन्जाने में किसी अपने का दिल तो नही तोड़ा?अपने गाँव, समाज और राष्ट्र के लिए अपने स्तर से क्या योगदान दिया?वह धर्म जो कि हमारे पूर्वजों कि त्याग और बलिदान के बल पर अभी तक बचा हुआ हैं उसके लिए हमने इस वर्ष क्या किया ? अपने माता-पिता से मिले विरासत को इस वर्ष कितना समेटा और कितना लुटाया?
कोई भी पीढ़ी अपनी विरासत लुटा कर सिर्फ क्षणिक खुशी हासिल कर सकती हैं, परमानंद नही प्राप्त कर सकती हैं। वित्तीय चिंताओं के अतिरिक्त हमारे चिंतन में गाँव, समाज, धर्म और संस्कृति की चिंता भी शामिल रहनी चाहिए। अगर ऐसा होगा तभी हम दीर्घकालिक शान्ति को प्राप्त कर सकते हैं।भारत का सनातन समाज आज के दौर में अवैध सांस्कृतिक और शैक्षिक अतिक्रमण का शिकार हैं। इस दौर में बौद्धिक वर्ग की जिम्मेदारी और जवाबदेही दोनों बढ़ जाती हैं।अपने परिवार के साथ साथ अपने समाज को भी हर तरह के आक्रमण से बचाना हमारा ध्येय होना चाहिए। भूमण्डलीकरण के इस दौर में हमारा पताका सारे विश्व में लहराता मिले और साथ में स्थानीयता का स्वाद भी बना रहे, तभी हम कामयाब होंगे। हमे अपने रंग में रंगे रहकर कामयाब होना हैं।
आप सभी सम्मानित मित्रों को आने वाले अंग्रेजी नववर्ष की हार्दिक
बधाई
और अनंत शुभकामनाएँ।
धर्म की जय हो! विश्व का कल्याण हो!