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बिहार पुलिस की ज्यादती पे मीडिया खामोश क्यों | प्रारब्ध

Written By : Ashish Kumar Anshu

by Ashish Kumar Anshu
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बिहार पुलिस की ज्यादती पे मीडिया खामोश क्यों | प्रारब्ध

 

कोर्ट का स्टे आर्डर लेकर पश्चिम चंपारण में बिहार पुलिस के सामने एक परिवार गुहार लगाता रहा कि दीवार खड़ी मत होने दीजिए। पुलिस ने कहा कि कोर्ट आर्डर उन्हें नहीं मिला। उस परिवार के पक्ष में उस वक्त कोई वृन्दा करात नहीं थी। जो मोबाइल पर कोर्ट का आर्डर दिखा कर, परिवार की मदद करती।
अखबार में इसे समाचार बनाया जाना चाहिए लेकिन स्थानीय संपादकों को जो दिशा निर्देश पटना/ मुजफ्फरपुर से मिला है उसके अनुसार, थानेदार का बयान ही खबर होगी। यदि किसी पत्रकार की आंखों के सामने हत्या हो, वह घटना का चश्मदीद होकर भी दफ्तर पहुंचकर खबर नहीं लिख सकता, जब तक एफआईआर ना हो जाए। अखबार एफआईआर में जो लिखा गया है, उसे ही खबर बनाकर छाप सकता है। पत्रकार ने जो देखा, वह अखबार के लिए खबर नहीं है।
एक अंचलाधिकारी की एक ही जमीन पर दो रिपोर्ट पढ़ने को मिली। वह थाने को एक रिपोर्ट भेज रहा है और एसडीएम को दूसरी रिपोर्ट। ऐसा तो अंधेर नगरी में ही हो सकता है लेकिन यह सब चंपारण के किसी अखबार में नहीं छप रहा।
मोतिहारी के एक पत्रकार से सुबह बात हुई तो उनका कहना था, पहले फोन पर धमकी देते हुए अपराधी थोड़ा लिहाज करते थे। अब तो धमकी देने वाला फोन पर बिहार में आपको कुछ भी कह सकता है और आप पत्रकार होकर भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते।
यदि आप सच में पत्रकारिता करना चाहते हैं तो कुछ दिन बिताइए बिहार में। इंटर्नशिप के लिए इससे अच्छा कोई प्रदेश नहीं हो सकता। यहां कदम-कदम पर इसलिए खबर है क्योंकि कोई खबर लिख नहीं रहा। कोई पीआर में व्यस्त है और कोई फीचर रिपोर्टिंग में।

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