भाजपा और शिवसेना नैचुरल कपल थे। दोनों की विचारधारा एक थी, दोनों के ईष्ट एक थे। दोनों के बीच जब विवाद हुआ तो फायदा शिवसेना-एनसीपी ने उठाया। उध्दव भी अन-नैचुरल ब्वॉयफ्रेंड्स पाकर हवा में उड़ने लगे। आस पास चाटुकारों की भीड़ जमा कर ली, जिन्होंने अपने स्वार्थ के लिए उध्दव को सिर्फ भाजपा ही नहीं, शिवसैनिकों से भी दूर कर दिया।
उध्दव के घर के दरवाजे शिवसेना विधायकों के लिए बन्द हो गए, लेकिन चाटुकार घर के अंदर तक घुस कर बैठने लगे। उद्धव के सारे फ़ैसले चाटुकारों द्वारा तय किए जाने लगे। ढाई साल की सत्ता में उद्धव ने भाजपा को चिढाने, सताने वाले सारे काम किए। उद्धव को पता ही नहीं चला कि चाटूकारों के उकसावे पर भाजपा को चिढाने के लिए किए गए उसके कु-कृत्यों ने उसका मूल चरित्र ही बिगाड़ दिया है।
उद्धव का मूल चरित्र वही था, जो बाला साहेब का था, हिन्दुत्व। लेकिन घमण्ड में डूबे उद्धव इस्लाम परस्त विचारधारा वाली सोनिया और पवार के साथ रंगरेलियां मनाते रहे। उद्धव खुद को रावण समझते चले गए। उद्धव भूल गए कि शिव भक्त होने के बावजूद रावण को ईश्वर का साथ नही मिला था।
आपका कुछ होने का घमण्ड, दूसरों से बेहतर होने का घमंड आपकी भक्ति पर भारी पड़ता है। इन ढाई सालों में भाजपा सब चुपचाप सहती रही। अपमान के घूँट पीती रही। कॉन्ग्रेस और एनसीपी के साथ उध्दव की रंगरेलियां देखती रही। लेकिन जब भाजपा ने दाँव चला तो उद्धव के लिए सत्ता ही नहीं, पार्टी बचाना भारी पड़ रहा है।