Home विषयलेखक के विचार भारत एक आंकड़ा प्रधान देश है
भारत एक आंकड़ा प्रधान देश है। यहां पर आंकड़ों को प्रतिशत में निकालने की अद्भुत एवं नैसर्गिक कला विद्यमान हैं । जिन्हें गणित की किताब में प्रतिशत का अध्याय सिर के उपर से गुजर जाता था वो लोग भी गेंहू की पैदावार को प्रतिशत में बताने में तनिक भी नहीं हिचकते।
इधर चुनाव तक अस्सी-बीस की बात हो रही थी उधर चुनाव के डेढ़ माह बाद किसी महिला विदूषी द्वारा सोशल मीडिया पर सत्तर-तीस का आंकड़ा उछाला गया।
आइए अब आपको आंकड़ों की सच्चाई से अवगत करायें। मेरे एक मित्र, केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन में सर्वेक्षण कर्ता के पद पर आसीन थे। जिन्हें दिल्ली एनसीआर वाले परिक्षेत्र का कुछ हिस्सा आवंटित था। जिसमें किसी कालोनी के घरों की आबादी से लगायत कुछ अन्य जानकारियां शामिल थीं। भाई, सप्ताह में किसी एक दिन झोला लेकर निकलते तथा किसी बहुमंजिला इमारतों वाले कालोनी को कहीं दूर से बैठकर ध्यान से देखते…फिर एक इमारत में फ्लैट की संख्या के हिसाब से कुल इमारतों का गुणा करते। मान लीजिए एक इमारत में कुल 32 फ्लैट्स हों तथा परिसर में ऐसे 15 इमारत हों तो 15 गुना 32 के हिसाब से 480 फ्लैट्स। अब वो अपना अनुमान लगाते कि एक फ़्लैट में औसत चार आदमी रहते होंगे। ऐसे में 480 गुणा 4 =1920 आदमी। इसके बाद वो टहलते हुए गेट कीपर के पास पहुंचते उससे सलाम, दुआ…बंदगी के बाद वहां पर रह रहे परिवारों के धर्म के विषय में पूछते… उधर गेटकीपर भी प्रतिशत निकालने में पीएचडी होल्डर! बताता कि “यहां तीस प्रतिशत मुसलमान आठ दस घर पंजाबी..तीन चार फ्लैट्स इसाइयों के बाकी में हिन्दू।” अब इतनी महत्वपूर्ण जानकारी अर्जित करने के उपरांत मित्र, वापसी का बस पकड़कर अपने कमरे पर लौट आते। फिर शुरू होता उन आंकड़ों को फ़ार्म में भरने का उपक्रम। उसमें जो सबसे कठिन एवं चुनौती वाली समस्या… वो यह कि उसमें सबके नाम भरने होते। ऐसे में वो हम मास्टरों के पास आते तथा हम लोगों के पास उपलब्ध बीएलओ ड्यूटी वाले मतदाता रजिस्टर के नामों से हिन्दू- मुसलमान के नामों को छांटकर अपने फार्म पर भरते।
मित्रों! मजे की बात यह कि NSSO से जारी आंकड़ों को प्रतियोगी परीक्षा में शामिल परीक्षार्थियों द्वारा रटकर… प्रतियोगी परीक्षा में झंडे गाड़ते देखा जाता है।
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अब आती है ऑर्गेज्म या चरमसुख की बात/ परिचर्चा
मित्रों! इस पर एक दूसरी घटना का ज़िक्र, आवश्यक हो गया है।
जब लखनऊ रहता था तब मेरे फ्लैट के सामने वाले बिल्डिंग के फ्लैट में, मेरे कुछ विद्यार्थी मित्र रहते थे। जिसमें कुछ इंजीनियरिंग के विद्यार्थी भी थे। वो सभी केएनआई सुल्तानपुर के छात्र थे। उन सब का सुल्तानपुर से लखनऊ का आना जाना लगा रहता ही था। एक दिन सुबह, उन सभी का सुल्तानपुर से लखनऊ का आना हुआ। जिसमें उनके एक मित्र को जोरों की भूख लगी थी। दूसरा इंजीनियर विद्यार्थी मेरे फ्लैट में आया और पूछा- “यार!खाना बन गया है??”
मैंने कहा “तैयार हो रहा है.. आधे घंटे, चालीस मिनट में तैयार हो जायेगा”
आप यकीन नहीं मानिएगा उतनी देर में मेरे पास तीन बार प्रत्यावेदन आया कि “यार जल्दी करो उसको बहुत जोरों की भूख लगी है।”
मैंने यथासंभव शीघ्रता करते हुए भोजन की एक सामान्य थाल सजाकर उस भूखे मित्र को आमंत्रित किया। मित्र, थाली के पास विद्युत गति से पहुंचा और चौंक कर पूछा- “इतना! अरे इतना कौन खायेगा???” मैंने कहा- ” यार! कुल नन्हीं-नन्हीं चार रोटियां और दो रमचा चावल ही तो है। मेरी बात बीच में छोड़कर… मित्र, किचन से दूसरी प्लेट उठाकर लाया तथा उस थाली से एक रोटी, आधी कटोरी दाल तथा दो चम्मच सब्जी निकालकर किनारा पकड़कर खाने लगा।
उसके खाने का ढ़ंग ऐसा मानों मुंह से सुराख ही न हो। एक मर्दाना रोटी में कुल बीस-बाइस टुकड़ों में तोड़कर प्रति टुकड़े को आधे से फाड़ उसे कटोरी नुमा निवाला बनाता तथा उसमें दाल एवं सब्जी गेरता… फिर दो मिनट प्रति निवाला के हिसाब से चैन से चबाता। इधर मैं प्रतीक्षा करते रह गया कि दूसरी रोटी के लिए आवाज उठे! लेकिन उससे पहले ही वो थाली उठाकर बेसिन पर पहुंच गया। मैं परेशान कि कोई इतनी भयंकर भूख को एक रोटी से भला कैसे निपटा सकता है। दिमाग में आया कि कहीं खाना ही स्वादिष्ट न बना हो। मैंने अपने दूसरे मित्र से पूछा-” क्या हुआ एक रोटी खाकर उठ गये…खाना पसंद नहीं आया क्या!!”
मित्र हंस कर बोला- “यार इसकी खुराक ही इतनी है.. फिर भी आज ज्यादा खा लिया” मैं सोचने लगा कि इतना तो एक आम आदमी तीव्र ज्वर में दवा खाने के नाम पर निगल लेता है। नींद में गटक सकता है। पलक झपकते निपट सकता है।
लब्बोलुआब उस मित्र के पेट का आयतन, उसकी धारिता, उसके दंत विन्यास, उसके मुख का परिक्षेत्र, उसकी ग्रसनी की परिधि तथा उसके भूख के चरमोत्कर्ष के शीर्षतम बिन्दु का पैमाना ही दूसरा था। उसे हम, आप चाहें कोई तीसरा नहीं माप सकता।
इसलिए आम आदमी द्वारा प्रस्तुत प्रतिशत के आंकड़े तथा दूसरे के चरमोत्कर्ष की बात पर तीसरे द्वारा प्रेषित वक्तव्य पर बहुत गौर नहीं किया जा सकता। वो बिल्कुल वैसा ही जैसे कोई कहें कि बाग में केवल तीस प्रतिशत तितलियां ही फूलों का रस चूस रहीं हैं शेष सत्तर प्रतिशत फूलों पर उदास बैठी रहतीं हैं।

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