Home विषयपरम्पराए भारत का लोकमानस यहाँ हर दिन … | प्रारब्ध

भारत का लोकमानस यहाँ हर दिन … | प्रारब्ध

Author - Jalaj Kumar Mishra

by Jalaj Kumar Mishra
386 views
भारत का लोकमानस यहाँ हर दिन मार्क्स के चेलों और नवबौद्धों के मुँह पर तमाचा मार कर कह रहा होता है कि भारत में धर्म का मतलब अफीम नही अस्तित्व और अस्मिता होती है।
वैसे भी जो बुद्ध का पंचशील सिद्धान्त है जैसे हिंसा न करना, चोरी न करना, व्यभिचार न करना, झूठ न बोलना और नशा न करना! ये सभी अब गुजरे हुए जमाने की बातें हो गयी हैं।
आज जो आपको बौद्ध धर्म के बहाने समानता ओमानता पर जबरदस्ती का ज्ञान देते मिले उससे पुछिएगा कि भाई कभी गया गये हो क्या ? अगर जबाब हाँ में मिले फिर पुछिएगा कि वहाँ पर बौद्ध मंदिर के अंदर जो ब्राह्मणवाद और समानता ओमनता है उस पर कुछ ज्ञान दीजिए ! चाहे छोड़िए दलाई लामा के जात की सप्रसंग व्याख्या कीजिए! वह भी छोड़िए बौद्ध में अब कितने वर्ग बन गये हैं वह बताइए चाहे कितने प्रतिशत भारतीय दलित बौद्ध की शरण में जाने के बाद भंते नही लामा बने हैं!
बुद्ध आज के तथाकथित बुद्धिजीवी और बुद्धजीवी के जैसे कपटी नही थे। वे कहते थे कि खुद को‌ जानो! खुद को जानने के लिए अगर आपको किसी फर्जी चितंक का सहारा लेना पड़े तो आत्मज्ञान असंभव है।
संसार का कोई ऐसा देश बताइए जहाँ पर समानता ओमानता चलता हो ! जहाँ पर जाती नही हो! जहाँ पर वर्गभेद नही हो!
खैर जीवन चलता रहेगा और यह ढोंग जारी रहेगा।ख्यालीपुलाव पकते रहेंगे और विदेशी पैसो के दम पर नित्य नये चितंक उगते रहेंगे और समाज को बाटँते रहेंगे।
बुद्ध का सारा मैटेरियल वेदान्त ही था। राज संरक्षण प्राप्त होने से तील भी ताड़ बन जाता है। बाकी आप सभी समझदार है। समानता ओमानता काल्पनिक बातें है। सिर्फ लिखने और पढ़ने में आनंद देती है।
बुद्ध की अनेकों ऐसी मुर्तिया मिली है जिसमें वे जनेऊ धारण किए हुए हैं। इस पर कभी अलग से.. लिखूँगा किसी दिन! यह मान के चलना चाहिए कि बुद्ध भी अपने थे और पूर्णिमा तो खैर अपनी ही है।
बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक

बधाई

रहेगा मित्रों!

Related Articles

Leave a Comment