सभी के संज्ञान में है कि भारत के कई क्षेत्रो में अशांति फैली हुई है। मोदी सरकार के आने के बाद से नहीं, बल्कि नेहरू के समय से ही। यह तो सबको पता है कि कश्मीर घाटी में अलगाववाद नेहरू के समय शुरू हुआ। लेकिन क्या यह भी पता है कि उत्तर पूर्व के राज्यों में अशांति भी नेहरू के समय से व्यापत है जिससे निपटने के लिए नेहरू ने Armed Forces Special Powers Act (सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम) वर्ष 1958 में संसद से पारित करवाया।
यह एक्ट इतना कठोर है कि जहाँ भी इस एक्ट को लागू किया जाता है, उस क्षेत्र में एक तरह से सशस्त्र बल की पावर राज्य सरकार से अधिक हो जाती है। अगर मोदी सरकार इस एक्ट को लाई होती तो उनपर तानाशाह होने का आरोप लगा दिया जाता।
यह एक्ट अभी कुछ दिनों तक पूर्वोत्तर राज्यों के बड़े भाग में लागू था। अर्थात, मोदी सरकार के पहली वाली सरकारों ने इस अशांति से निपटने का कोई प्रयास नहीं किया, बल्कि इस एक्ट को और बड़े भूभाग में लागू कर दिया। माना जाता है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र के लोग भारत से अलगाव की भावना रखते है।
क्या इसका अर्थ है कि मोदी सरकार को भी हाथ पर हाथ धरे बैठ जाना चाहिए था?
इसके विपरीत वर्ष 2014 में सत्ता में आते ही मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर क्षेत्र को राजनैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक रूप से मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास किया।
पहली बार सभी राज्य रेल लाइन से जुड़ गए है; सभी में हवाई यात्रा आरम्भ हो गयी है; सभी राज्यों में राष्ट्रीय राजमार्ग बन रहे है; उद्यम बढ़ाते जा रहे है। पहले भारत की में बनने वाली अगरबत्ती की बांस की पतली डंडी चीन एवं विएत नाम से आती थी; अब पूरे पूर्वोत्तर भारत में अगरबत्ती की डंडी बनाने की बड़ी-बड़ी फैक्ट्री खुल गयी, स्थानीय लोगो को रोजगार मिला, और बांस की डंडी का आयात बंद हो गया।
हर सप्ताह कोई ना कोई केंद्रीय मंत्री पूर्वोत्तर राज्यों में दौरा कर रहा है। प्रधानमंत्री मोदी इस क्षेत्र के विकास कार्यो की प्रगति का रिव्यु स्वयं करते है; इस क्षेत्र के त्योहारों एवं नववर्ष पर
बधाई
देते है। इस क्षेत्र के दो सांसद केंद्र में महत्वपूर्ण विषयो के कैबिनेट मिनिस्टर है।
परिणाम यह हुआ कि आज इस क्षेत्र से कांग्रेस का एक भी सांसद नहीं है।
लेकिन इससे भी बड़ी उपलब्धि यह हुई कि इस क्षेत्र में लगातार शांति फैलती जा रही है।
परिणामस्वरूप, केंद्र सरकार ने दशकों बाद नागालैंड, असम और मणिपुर राज्यों में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) के तहत अशांत क्षेत्रों को कम कर दिया है। असम के 60 प्रतिशत भाग से इस एक्ट को हटा दिया गया है।
अब आते है अगले विषय पर।
प्रधानमंत्री मोदी एवं उनकी टीम ने ऐसे ही पूर्व में कश्मीर मुद्दा भी स्थाई रूप से सुलझा दिया।
मोदी सरकार इसी प्रकार कुछ अन्य ज्वलंत मुद्दों पर कार्य कर रही है जिसमे वोट बैंक की पॉलिटिक्स प्रमुख है।
एक प्रश्न पर विचार कीजियेगा। आप पार्टी को दिल्ली में 90% सीटों पर एवं पंजाब में लगभग 80% सीटों पर जीत किसके वोट से मिली? ममता को 48% वोट किसने दिया? कांग्रेस को राजस्थान में कौन लाया? महाराष्ट्र में कांग्रेस एवं पवार पार्टी को सौ सीट भाजपा-शिव सेना गठबंधन के बाद भी कैसे मिल गयी? यूपी मे अखिलेश को यादव समाज का 80% एवं सरकारी कर्मियों का 50% से अधिक वोट कैसे मिला?
कई बार लिखा है कि अब गुजरात जैसे एनकाउंटर नहीं सुनाई पड़ते। इसका अर्थ यह तो नहीं कि आतंक से निपटा नहीं जा रहा है। हर समय भड़भड़ाने की आवश्यकता नहीं है।
मोदी टीम को टाइम एवं स्पेस दीजिये कि वह पत्थर फेंकने वालो की राजनीति का भी अपने तरीके से परमानेंट समाधान कर सके।
पत्थर फेंकने वालो की आलोचना कीजिये; लेकिन मोदी सरकार का समर्थन बनाये रखिए। कारण यह है सरकार से आपको विमुख करना ही अराजक शक्तियों का उद्देश्य है। अगर पत्थर फेंककर यह कार्य हो सकता है, तो क्यों नहीं।
मोदी सरकार का समर्थन ही अराजक शक्तियों को हताश कर देगी।