Home विषयइतिहास भारत में 22 मार्च का महत्त्व और जनता कर्फ्यू

भारत में 22 मार्च का महत्त्व और जनता कर्फ्यू

by Nitin Tripathi
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दो वर्ष पूर्व  22 मार्च  के दिन लॉक डाउन में करोना काल में घंटा, शंख नाद किया गया था. यद्यपि कुछ लोगों ने इसका मज़ाक़ भी उड़ाया, पर इन्हीं सब चीजों ने एक आम भारतीय को आत्म बल दिया, शांति दी, ताक़त दी. उस समय जबकि करोना के बारे में किसी को न पता था, बड़े बड़े विकसित देशों में लोग सड़कों पर मर रहे थे, भारत जैसा देश जहां N95 मास्क भी इंपोर्ट होकर ही आता था – वाक़ई यदि उस समय भारत में करोना आ जाता तो त्राहि माम मच जाता. सब लोग घरों में रहे, मोदी जी नई अक्टिविटीज बताते रहे, tv पर रामायण / महा भारत सीरियल चलते रहे, पुरुष बीबियों के हाथ के बने व्यंजन अपने नाम से डालते रहे और वह लॉक डाउन / पहला करोना काल निपट गया.
दूसरा करोना काल तो वाक़ई भारत के लिए, विशेष कर लखनऊ शहर के लिए एटम बम फटने जैसा था. इतने लोगों की मृत्यु हुई, मित्र परिचित सब बीमार थे. रोज़ एक न एक के सीरीयस होने की खबर आती और डर था ही क्योंकि उनमें अधिकतर लोगों से रोज़ का मिलना जुलना था. उसी समय चुनाव भी थे तो सैंकड़ों लोगों से सम्पर्क भी हुआ था. रोज़ लगता था कि बस नम्बर आ गया. उस दूसरे करोना काल में कहना चाहिए भगवान ने ही रक्षा की. कुछ काम न आया – पैसा, ताक़त, नाम, बेस्ट डॉक्टर. सब धरा रह गया, वही बचे जिन्हें ईश्वर ने बचाया.
नवरात्रि के समय दुर्गा सप्तशती और सामान्य दिनों में बजरंग बाण / सुंदर कांड से जो ऊर्जा मिली, मुझे तो उसी ऊर्जा ने बचाया, सम्भाला.
उस समय और आज भी ढेरों लोग इन सब चीजों का मज़ाक़ उड़ाते नज़र आएँगे. पर हक़ीक़त यही है कि उस दैवीय आपदा में आत्म बल और ईश्वर पर विश्वास ने ही हम जैसे करोड़ों भारतीयों का मोरल डाउन नहीं होने दिया, ढेरों त्रासदियों के बावजूद वह समय कट गया.
आज हम आप इस फ़ेस बुक पर बातें कर रहे हैं, बहस, लड़ाई झगड़े कर रहे हैं, यह सब इसी आत्म बल और ईश्वर की अनुकम्पा है.

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