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महाभारत में द्यूतसभा

रंजना सिंह

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द्यूतसभा में जिस समय कुन्ती गान्धारी के हस्तक्षेप के उपरान्त वस्त्र हरण का पटाक्षेप हुआ और श्राप देती द्रौपदी से याचना करते हुए वर माँगने को कहा गया,उसने उस द्युतसभा के स्मरण को मिटा देने का वर माँगा जिसके अन्तर्गत पांचों पाण्डव दासता से मुक्त घोषित हुए और उन्हें उनका राज्य और शस्त्र भी वापस मिल गया।किन्तु उनके हृदय का वह दाह जो सूर्य के दाह से भी अधिक उग्र था, इससे शान्त हो सका था क्या?
द्रौपदी के केश उस समय खुले ही थे,वस्त्र अस्तव्यस्त और देह से झर रहे श्वेद रक्त के धार भी सूखे नहीं थे।
अपने साथ हुए अपमान छल का प्रतिशोध वे उसी समय भरे दरबार में ले सकते थे और पाप के बोझ से दबी कौरवों की आत्मा उन्हें प्रतिकार का भी वह वास्तविक बल भी न देती जो उनके पास थी।
किन्तु पाण्डवों ने त्वरित प्रतिकार नहीं, वनवास और अज्ञातवास के दण्ड का वरण किया और तेरह वर्ष तक उस दाह का सन्ताप सहते रहे।कृष्ण ने भी पाण्डवों को तपरत होकर प्रतीक्षा करने और सबल होने का ही निर्देश दिया।चाहते तो वे उसी समय अपनी नारायणी सेना के साथ सम्राट युधिष्ठिर के बल को युति देते और यह संगठन कौरवों के सम्पूर्ण बल से बहुत अधिक बड़ा होता।
यदि सभा में ही युद्ध हो जाता तो भी परिणाम वही होता जो 13 वर्ष उपरान्त हुआ,,परन्तु काल/कृष्ण को यह स्वीकार नहीं था,,क्योंकि यदि ऐसा होता तो वे सभी अधर्मी बच जाते जिन्हें अधर्म उन्मूलन यज्ञ का हवि बनना था।
धर्म के पक्ष में सदैव ही संख्या अधर्मी पक्ष से बहुत अल्प होती है।क्योंकि अधर्म का नाश कौन और कब करेगा, यह सीधे सीधे काल चुनता है, वह भी कठोर परीक्षा के बाद।किन्तु यह विश्वास अवश्य होना चाहिए कि अधर्म के घट के अपने बोझ से ही फूट जाने की सुदीर्घ प्रतीक्षा काल बड़े धैर्य से करता है।सँसार में जब अधर्म ही धर्म रूप में व्याप्त हो जाया करती है तो आदिकाल से महाकाल महाकाली किसी न किसी रूप में प्रकट होते ही हैं और आवश्यकता पड़ी तो अधर्मियों के रक्त तक के भक्षण में वे संकोच नहीं करते।
हमारे अन्तस् में प्राण और चेतना रूप में शिव और शक्ति रूप में जो शिवा अवस्थित हैं, हम उन्हें साधें, जागृत करें, बाकी उन्हें हमसे जो करवाना होगा करवा लेंगे।किसी भी कालखण्ड में जब किसी घटना के मध्य हम होते हैं तो उनके निहितार्थ, प्रासंगिकता ठीक ठीक नहीं समझ देख पाते।ऐसे में चेतना को सबल करना सबसे अधिक आवश्यक होता है ताकि वह हमें भविष्य और वर्तमान का अपना करणीय बता सके।

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