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मुझे 70 के दशक में जब ….

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मुझे 70 के दशक में जब फिल्मों से इश्क हुआ तो उसके साथ साथ ही मुझमे फिल्मों की समझ भी विकसित हो गयी थी। उस काल मे अंग्रेज़ी या अन्य अंर्तराष्ट्रीय फिल्मों को देखने का मुझे मौका ज्यादा नही मिलता था लेकिन फिर भी मैं इस कमी को 70, 80, 90 के दशक में उनके बारे में पत्रिकाओं या फ़िल्म पर लिखी किताबो में पढ़ कर पूरी कर लेता था। इस पूरे काल मे जहां मैने हॉलीवुड के इतिहास व वहां के स्टूडियोज द्वारा बनाई गई फिल्मों को समझा, वही उन फिल्मों का ब्रिटिश, फ्रेंच, जापानी और योरोपियन फिल्मों से अंतर भी समझना शुरू कर दिया था।

इतना सब कुछ देखने व पढ़ने के दौरान मुझे जो सबसे खास बात लगी कि सभी समालोचकों, निर्देशकों व कलाकारों ने एक फ़िल्म ‘सिटीजन केन’ व उस फिल्म के निर्देशक, नायक व सहपटकथा लेखक ओर्सन वेल्स का जिक्र जरूर किया था। लगभग सभी का यह मानना था की 1941 में बनी यह फ़िल्म अंग्रेज़ी की सर्वश्रेठ फ़िल्म है और उसके रचयिता ओर्सन वेल्स एक जीनियस है, जिन्होंने सिर्फ 25 वर्ष की उम्र में इस फ़िल्म को बनाया था। वेल्स ने, इस फ़िल्म से, फिल्मों को बनाने की विधा व उसके लिये फोटोग्राही, संगीत, संपादन व कथानक में किये गये अभिनव प्रयोगों से, आगे आने वाले समय में बननी वाली फिल्मों को बदल डाला था। 

मैंने जब यह फ़िल्म 90 के दशक में पहली बार देखी थी तब मैं सिटीजन केन के बारे में काफी कुछ सुन चुका था लेकिन जब फ़िल्म देखी तो लगा कि जो कुछ भी इस फ़िल्म के बारे में लिखा गया है वह इस फ़िल्म के साथ पूरा न्याय करने में अपर्याप्त है। आप जब ‘सिटिज़न केन’ पहली बार देखते है तो यह फ़िल्म बीच मे ही गुरुदत्त की कालजयी फ़िल्म ‘कागज़ के फूल’ की याद दिला देती  है। हालांकि दोनों ही फिल्मे एक दूसरे से अलग है लेकिन दोनो ही फिल्मे अपने मुख्यचरित्र चार्ल्स फोस्टर केन, जो की एक मशहूर अखबार के मालिक है और सुरेश सिन्हा, जो की फिल्मी दुनिया के एक मशहूर निर्देशक है, की कहानी कहती है। यह उनके जीवन के उत्थान व पतन की कहानी कहती है। यह उनके चरित्र के अंधकारमय पक्ष(डार्कर साइड) का उनकी सफलता व असफलता पर पड़ा प्रभाव, उनकी अपने अगल बगल के जीवनो को बांध कर रखने की अतृप्त तृष्णा व प्रणय के बंधन को बांधे रखने में असफल रहने की कहानी कहती है।

सिटीजन केन शुरू होती है एक शब्द से और वह शब्द है ‘रोज़बड’। (फिल्मों के इतिहास में ‘रोज़बड’, एक ऐसा शब्द या संवाद (डायलॉग) है जिसे न सिर्फ अब तक के अंग्रेजी फ़िल्म के इतिहास में सबसे प्रसिद्ध 25 डायलोगों में से एक माना जाता है बल्कि इस शब्द का फ़िल्म ‘सिटिज़न केन’ में प्रयोग, फ़िल्म के नायक के लिये उसका अभिप्राय व पटकथा में इसको लिखने के पीछे लेखक के वास्तविक मन्तव्य को लेकर समालोचकों द्वारा सबसे ज्यादा लिखा व शोध किया गया है। इस पर कभी फुर्सत में अलग से लिखूंगा।)

फ़िल्म की शुरुआत में दिखाते है कि एक महलनुमा मकान में एक बूढ़ा आदमी धीरे से ‘रोज़बड’ बोलते हुआ मर जाता है। उस वक्त उसके हाथ मे एक सनोग्लोब होता है जो गिरकर टूट जाता है। अब एक न्यूजरील डॉक्यूमेंट्री यह बताती है कि यह व्यक्ति जिसकी मृत्यु हुयी है वह ‘जनाडू महल’ का मालिक चार्ल्स फोस्टर केन था। जो न सिर्फ अपने समय का सबसे धनी व्यक्ति था बल्कि एक मीडया टायकून था जिसका व्यक्तित्व बड़ा रहस्यमयी व विवादित रहा है। यहां से कहानी की शुरुआत होती है एक समाचार संपादक थॉम्पसन द्वारा केन के जीवनकाल और उसके व्यक्तित्व की असलीयत को जानने की। उसे लगता है कि फोस्टर केन ने अपनी मृत्यु के समय जो आखरी शब्द ‘रोज़बड’ बोला था, उसके अर्थ के पीछे असली चार्ल्स फोस्टर केन छुपा हुआ है। यहां इस फिल्म की पटकथा की एक खास बात है कि पूरी फिल्म में थॉम्पसन को रोज़बड का मतलब नही पता चलता है लेकिन दर्शकों को इसका मतलब पता चल जाता है।

थॉम्पसन, केन के जीवन के बारे मे जानने के लिये पांच लोगों से मिलता है जो केन को अच्छी तरह से जानते थे। ये वो लोग थे जो उसको या तो पसन्द करते थे या प्यार करते थे या फिर उससे घृणा करते थे। यह पांचों लोग, अपने पूर्वग्रहों को लिये हुये, केन के बारे में पांच अलग अलग कहानी बताते है। हमे यह कहानियां बताती है कि केन सिर्फ अपनी माँ से प्यार करता था या सिर्फ अपने अखबार को या सिर्फ अपनी दूसरी पत्नी को या फिर वह सिर्फ खुद को प्यार करता था। केन शायद सभी को प्यार करता था या फिर किसी को भी प्यार नही करता था, यह बात फ़िल्म, दर्शकों पर छोड़ देती है। केन स्वार्थी था या स्वार्थहीन, वो आदर्शवादी था या दुरात्मा, वो विशाल ह्रदय का था या छोटी तबियत का इसका आंकलन इससे होता है कि कौन केन के बारे में बात कर रहा है। सिटिज़न केन की कहानी चार्ल्स फोस्टर केन के व्यक्तित्व को लेकर कोई अपना निर्णय नही देती है और न ही इसका यह उद्देश्य है। वह सिर्फ केन के जीवन की परतें खोलती है और दर्शकों पर यह निर्णय छोड़ देती है। 

सिटिज़न केन सिर्फ एक सत्य को प्रतिस्थापित करती है कि हर व्यक्ति का, दूसरे के लिये अपना अपना सत्य होता है और सभी सत्यों के मंथन में असली व्यक्ति छिपा होता है।

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