मेरा मत रूस के लिए भारत न मजबूरी है, न जरूरी इसलिये अभी भारत द्वारा रूस को समर्थन देने का कोई अर्थ नहीं।

रूस के लिए चीन अधिक महत्वपूर्ण है जो पड़ोसी होने के कारणव्यापार व उसके लिए पूंजी भी उपलब्ध करवा सकता है।
जबकि अमेरिका के लिए भारत जरूरी भी है और मजबूरी भी क्योंकि चीन अब उसका घोषित प्रतिद्वंदी है।
चीन दोहरा खेल खेल रहा है।
वह रूस को समर्थन देकर उकसा रहा है कि एक तो संसार का ध्यान उसकी कोरोना दुष्टता से हट जाए और दूसरे रूस आर्थिक रूप से कमजोर हो और वह उसे सैन्य तकनीक बेचने को मजबूर कर सके।
भारत वेट एंड वॉच करेगा लेकिन अगर चीन-पाकिस्तान अगर अपनी खुराफात दिखाते हैं तो भारत को अमेरिका-यूरोप के साथ आना ही पड़ेगा इसलिये अंदरखाने ही सही अमेरिका का साथ देना मजबूरी है।
पेच केवल एक बात का है-
कहीं ब्रह्मोस व सुखोई सहित भारतीय शस्त्रागार के एक बड़े भाग की तकनीकी चाबियां रूस के पास भी तो नहीं?
याद कीजिये बालाकोट स्ट्राइक में किस तरह अमेरिका ने बैठे बैठे एफ16 को लॉक कर दिया व उन्हें उड़ने ही नहीं दिया।
अगर भारतीय शस्त्रागार में भी ऐसी रूसी सेंध है तो भारत के पास विकल्प बहुत सीमित व स्थिति बहुत दुविधाजनक है।
मोदीजी की रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए व्याकुलता का एक कारण संभवतः यह भी है।
बहरहाल चुप भले रहें लेकिन यूक्रेन की आग चीन को भी ललचा सकती है और अगर चीन-रूस गठबंधन आकार लेता है तब भारत के लिए भयंकर खतरा हो सकता है।

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