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यदि किसी नियम को मान लेने में आप अल्पसंख्यक हैं तो…

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यदि किसी नियम को मान लेने में आप अल्पसंख्यक हैं तो वहां आपकी दुर्गति होनी तय है। आज एक चौराहे पर लाल सिग्नल देखकर मैंने अपनी मोटरसाइकिल बिल्कुल किनारे रोक दी किन्तु मेरे समानांतर से बहुत लोग उस ट्रैफिक सिग्नल को नजरंदाज करते हुए आगे बढ़ते रहे। तभी मेरे पीछे से एक एक्टिवा वाले ने (ब्रेक लगाते-लगाते) मुझे टक्कर मार दी। हांलांकि मुझे कुछ हुआ नहीं… लेकिन उसके पीछे एक मोटरसाइकिल वाले जो अपनी पीछे की सीट पर एक अधेड़ महिला को बैठाकर चल रहे थे वो इस ब्रेक लगने-लगाने की प्रक्रिया में टाइम मैनेजमेंट न कर सके तथा एक्टिवा से टकराकर महिला समेत सड़क पर आ गिरे।

 

 

मित्रों! कुछ मामूली चोट के साथ, इस दृश्य या घटना में जिसका चेहरा विलेन के रूप में उभरकर सामने आया… वो चेहरा मेरा था!! लोग मुझ पर बरस पड़े कि “आपने अचानक गाड़ी क्यों रोकी?”
मैंने कहा- “भैया! रेड सिग्नल देखकर रुका तिस पर ट्रैफिक पुलिस वाला हाथ भी दे रहा है।
पब्लिक- “अकेले बड़े कानून मंत्री बने हो… और पब्लिक नहीं है यहां!! दुनिया भागी जा रही है और तुम ब्रेक मार कर बीच में खड़े हो गये।”
मैंने कहा- “गजब! मतलब रेड सिग्नल पर रुकना अपराध हो गया??
भीड़ से एक युवा – ” तुम्हारी वजह से चाची मोटरसाइकिल पर से गिर गयीं अभी उन्हें कुछ हो जाता तो तुम्हारा नियम कानून और रेड सिग्नल सब धरा का धरा रह जाता।”
हांलांकि अब मैं चुप मारकर समस्त होने वाली अप्रिय घटना के प्रति, खुद को जिम्मेदार मानते हुए अपराध अपने सिर ले लिया। लेकिन बहुत देर तक सोचता रहा कि बदलाव के इस कठिन एवं संक्रमण काल में किसकी बात मानी जाये!! कड़े यातायात नियम, सिग्नल की या उस भीड़ की जो अभी भी सिग्नल और नियम को अपनी जेब में लेकर चल रहा है।

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