Home राजनीति *यूक्रेन का युद्ध जो दुनिया की स्थिति-गति निर्धारित करने जा रहा है, की ऐतिहासिक-अद्वितीय विशेषताएं**

*यूक्रेन का युद्ध जो दुनिया की स्थिति-गति निर्धारित करने जा रहा है, की ऐतिहासिक-अद्वितीय विशेषताएं**

by Umrao Vivek Samajik Yayavar
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*यूक्रेन का युद्ध जो दुनिया की स्थिति-गति निर्धारित करने जा रहा है, की ऐतिहासिक-अद्वितीय विशेषताएं**

 

सबसे बड़ी व अद्वितीय खासियत यह कि यूक्रेन का युद्ध दुनिया के बहुत सारे देशों के आम लोग लड़ रहे हैं, यहां तक कि खुद पुतिन के अपने देश रूस के हजारों आम लोग यूक्रेन के साथ हैं। पुतिन को हर रोज रूस के अंदर हजारों लोगों को जेल भेजना पड़ रहा है। रूस के हजारों युवा युवती अपने भविष्य को दांव लगाते हुए, अपनी सुविधाओं को त्यागकर यूक्रेन के लिए जस्टिस के लिए शांति के लिए पुतिन की बर्बरता के खिलाफ लड़ रहे हैं, खतरा उठाते हुए लड़ रहे हैं।
पहले जर्मनी ने टालमटोल किया तो लाखों जर्मन लोग जर्मनी सरकार पर दबाव डालने के लिए खड़े हो गए, जर्मन सरकार को रूस के खिलाफ कड़े कदम उठाने पड़े। दुनिया के अनेक देशों में आम लोग अपनी सरकारों के सामने प्रदर्शन कर रहे हैं, दबाव डाल रहे हैं कि रूस को अलग-थलग किया जाए, प्रतिबंध लगाए जाएं।
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दुनिया के ऐसे अनेक देश हैं जहां के आम लोग यूक्रेन जाकर अपनी सेवाएं देना चाहते हैं। किसी पराए देश के लोगों के लिए खुद अपनी जान देना चाहते हैं।
कोई बड़ी बात नहीं कि हथियारों की ताकत के सामने आम लोग यूक्रेन का युद्ध हार जाएं, लेकिन पुतिन यूक्रेन का युद्ध हार चुके हैं। अधिक से अधिक पुतिन यही कर पाएंगे कि तात्कालिक तौर पर कुछ समय के लिए यूक्रेन की राजधानी पर कब्जा कर लेंगे, इससे सिर्फ उनका अहंकार पूरा होगा, इसके अलावा कुछ और नहीं मिलने वाला।
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यूक्रेन का युद्ध अपने आप में अद्वितीय है क्योंकि यूक्रेन के अंदर के लोग हों या यूक्रेन के बाहर के देशों के लोग। यूक्रेन का युद्ध आम लोग लड़ रहे हैं। जब कोई युद्ध आम लोग लड़ते हैं तो उसमें अंतिम जीत आम लोगों की ही होती है, इसका कोई अपवाद नहीं, फिर यूक्रेन के युद्ध में तो दुनिया भर के अनेक देशों के लोग युद्ध लड़ रहे हैं।
ऐसा सिर्फ इसलिए है कि लोग विश्वयुद्धों में युद्ध के परिणाम क्या होते हैं, इसको भोग चुके हैं। पीढ़ियां लगती हैं युद्धों की विभीषिका से बाहर निकल पाने में। युद्ध जीतने वाला, युद्ध हारने वाला, दोनो ही भोगते हैं। ये लोग, इनका समाज, इनका देश युद्ध नहीं चाहते हैं, कम से कम ऐसा युद्ध तो बिलकुल भी नहीं चाहते हैं जो दुनिया को युद्ध में झोंक दे।
युद्ध का समर्थन करने वाले या युद्ध के प्रति आकर्षण रखने वाले या युद्ध के प्रति रोमांइज्म महसूस करने वाले समाज व लोग केवल और केवल वही हैं, जिन्होंने वास्तव में गंभीर युद्ध नहीं झेले उनके अपने जीवन तहस नहस नहीं हुए या जो लोग तानाशाही मानसिकता के होते हैं या जो लोग हिंसक बर्बर नफरती मानसिकता के होते हैं जिनको सैडिज्म में आनंद मिलता है।
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जो लोग साम्यवादी अंधभक्त हैं, उनको बताना चाहता हूं कि यह यूक्रेन का ही समाज था जो USSR के प्रमुख संस्थापक गणराज्यों में से था। USSR का साम्यवाद होने के बाद यूक्रेन लोकतंत्र की ओर बढ़ा, जबकि रूस तानाशाही की ओर बढ़ा। यदि कोई ईमानदार है तो छोटा बच्चा भी बता सकता है कि यूक्रेन साम्यवाद के अधिक नजदीक है। पुतिन का मतलब साम्यवाद नहीं है, पुतिन का मतलब सनकी बर्बर तानाशाह है।
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**चलते-चलते**
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एक समय था जब दुनिया को नान-एलाएंस मूवमेंट की जरूरत थी, तब वे लोग दुनिया का हीरो बने जो नान-एलाएंस मूवमेंट स्थापित किए।
लेकिन आज यूक्रेन का युद्ध ऐसा युद्ध है जिसमें यूक्रेन के साथ खड़े होना ही नान-एलाएंस मूवमेंट है। यूक्रेन का युद्ध यूक्रेन का अपना युद्ध नहीं है, यह वह युद्ध है जो यह तय करेगा कि दुनिया फिर से कबीलाई युद्धों के दौर में लौटना चाहती है, दहशत में जीना चाहती है या बिना कबीलाई युद्धों के सीखते समझते गलतियां करते परिष्कृत व परिपक्व होते हुए अपनी आने वाली पीढ़ियों को एक बेहतर दुनिया देना चाहती है।
इस युद्ध में हमारा स्टैंड तय करेगा कि हम पीछे लौटना चाहते हैं या आगे बढ़ना चाहते हैं। यह भी तय होगा कि हम वास्तव में अंदर से मजबूत हैं या मजबूती के खोखले ढोंग के अंदर वास्तव में हम निहायत ही लिजलिजे व पिलपिले हैं।
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अंत में सोचता हूं कि एक बात याद दिला दूं। जब कोविड शुरू हुआ तो अपवाद लोगों को छोड़ मेरे लेखों, विश्लेषणों पर लोग हसते थे। अनेक मित्र मुझे दुनिया की जानी मानी यूनिवर्सिटियों के शोध-लेख की लिंक भेजते हुए मेरी बातों का मजाक उड़ाते थे।
महीनों बाद ही सही लेकिन समय ने मेरी बात को सही प्रमाणित किया। यह पोस्ट संभाल कर रख लीजिए, सनद रहेगी। आने वाले वर्षों में मेरा विश्लेषण फिर से सही साबित होगा।
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मेरे सामाजिक विश्लेषणों के सही निकलने का मूल कारण यह रहता है कि मैंने अपने जीवन में डिग्री या नौकरी के लिए नहीं बल्कि वास्तव में ज्ञान की भूख के लिए, समझ परिष्कृत करने के लिए बहुत व्यापक अध्ययन किया है। मैं पूर्वाग्रहों के आधार पर विश्लेषण, विचार, चिंतन नहीं करता हूं। मैं तथ्यों को जुटाने, पढ़ने, समझने इत्यादि में काफी ऊर्जा, समय व संसाधन लगाता हूं।
मैं दुनिया के समाजों के मनोविज्ञान व लोगों की विचारशीलता की बढ़ती हुई गति, बदलती हुई सोच इत्यादि को भी समझते हुए संज्ञान में लेते हुए विश्लेषण करता हूं। मैं सब्जेक्टिविटी से चिंतन नहीं करता हूं, मैंने ऑब्जेक्टिविटी से विचार करता हूं। सबसे बड़ी बात मै मनुष्य व समाज को मशीन या रोबोट नहीं मानता हूं, मैं मनुष्य व समाज को चेतनशील मानता हूं।
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यूक्रेन राजनैतिक रूप से युद्ध हारता है या जीतता है, इसका कोई मायने नहीं रह गया है। यह युद्ध व्यक्ति, समाज, देश, दुनिया का बहुत कुछ तय कर रहा है। यह युद्ध किसकी समझ, सोच, मानसिकता का स्तर क्या है, यह भी तय कर रहा है। इस युद्ध का चरित्र ही बिलकुल अलग है। यह सब छोछोरापन सतहीपन टपोरीपन खोखलापन सतहीपन से नहीं देखा जा सकता है, इसके लिए गंभीरता चाहिए दृष्टि चाहिए।
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विवेक उमराव

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