Home राजनीति यूक्रेन रसिया युद्ध में अमेरिका ठीक वैसा ही रोल प्ले कर रहा है

यूक्रेन रसिया युद्ध में अमेरिका ठीक वैसा ही रोल प्ले कर रहा है

by Nitin Tripathi
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यूक्रेन रसिया युद्ध में अमेरिका ठीक वैसा ही रोल प्ले कर रहा है, जैसी उससे उम्मीद थी.

 

भारत के भड़काऊ मीडिया से परे यदि आप अमेरिकन मीडिया / सोसल मीडिया देखेंगे तो उधर चीजें अपेक्षा कृत एकदम शांत लगेंगी. एक औसत अमेरिकन कभी नहीं चाहता कि दो देशों की लड़ाई में बीच में वह, उसके बच्चे खाम ख़्वाह में लड़ने मरने जाएँ. पर हाँ दुनिया का चौधरी भी बनना है, युद्ध से फ़ायदा भी कमाना है तो अमेरिका की सदैव स्ट्रेटजी रहती है, कहीं भी युद्ध हो बाहर से शामिल रहो. अपने पक्ष वाले देश को गोला बारूद सप्लाई करो, दूसरे पक्ष के ऊपर प्रेसर बनाओ. जीत हो, हार हो अमेरिका की चौधराहट बनी रहती है. आधुनिक विश्व में युद्ध जीतने वाला देश भी आर्थिक रूप से तबाह हो जाता है. अब वह जमाने गए जब युद्ध की जीत से रिसोर्सेज़ पर क़ब्ज़ा होकर इकॉनमी बधती थी.
किनारे से बैठ देखते हुवे हम रूस के टैंक बढ़ रहे हैं पर ख़ुशी मना लेते हैं. पर बैलेंस होकर सोंचिए तो अमेरिका समेत सारे वेस्टर्न वर्ल्ड को रूस को एक्षोनोमिकली डैमेज करने का मौक़ा मिल गया. रूस के सारे बैंक पर प्रतिबंध लग गया. रूबल की वैल्यू आज ही आज में तीस प्रतिशत डाउन है. शेष विश्व में आज रूस के साथ कोई देश खुल कर नहीं है. भविष्य में भी रूस से आयात निर्यात करने के रास्ते और समाप्त हैं. यहाँ तक कि भारत भी रूस से यदि किसी क्षेत्र में व्यापारिक सम्बंध रखता है तो वह भी अमेरिका से केस to केस इक्सेप्शन लेते हुवे. यूक्रेन पहले छिप छिप कर अमेरिका पर आश्रित था, अब खुल कर है, हार जाएगा तो फ़्री यूक्रेन मुहिम भी अमेरिका से ही चलेगी. युद्ध लम्बे समय तक चला तो रूस का और नुक़सान होगा.
ओवेराल अमेरिका के लिहाज़ से कोई भी जीते कोई भी हारे, उसका कोई व्यक्तिगत नुक़सान न हुआ और रूस जीत कर भी हारा माना जाएगा.
अमेरिका की विदेश नीति अमेरिका फ़र्स्ट सिद्धांत पर चलती है. कहीं भी कुछ भी हो, बग़ैर भावना में बहे अमेरिका फ़र्स्ट के सिद्धांत पर अमल किया जाता है. पक्ष विपक्ष मीडिया सब इस सिद्धांत का समर्थन करते हैं.
अमेरिका के लिहाज़ से अब तक जो हो रहा है, उसमें जीत अमेरिका की है.

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