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राम सेतु!

Om Lavaniya

by ओम लवानिया
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राम सेतु! शायद कोई नई तकनीक निकली है, अक्षय कुमार की सफेद दाढ़ी में मिस्टर इंडिया की घड़ी छिपाई गई है, फ्रेम बाय फ्रेम कम-ज्यादा होती रही है।

लेखक-निर्देशक अभिषेक शर्मा ने राम सेतु में यूपीए सरकार के एफिडेविट के इर्दगिर्द व वामपंथी बुद्धिजीवी वर्ग के सवालों के परिवेश में प्रतिउत्तर प्लॉट डवलप किया है। निःसन्देह इससे बेहतर स्क्रिप्ट और स्टोरी बोर्ड तैयार किया जा सकता था। बशर्ते अक्षय कुमार की तीन महीने की टाइम लाइन से इतर वक्त लेना पड़ता।
रामसेतु पर स्क्रीन प्ले बिल्कुल सपाट लिखा हुआ है, हल्का-फुल्का थ्रिल अवश्य है। एडवेंचर के कॉलम में सिर्फ़ नाम ही है। बाकी सबकुछ खाली रहा है। राम के नाम पर साधने की कोशिश हुई है। लेकिन कुछ सीक्वेंस मर्मस्पर्शी है, सीधे दिल को कनेक्ट कर गए है। क्लाइमैक्स भी औसत है लेकिन आख़िरी फ्रेम आँखें नम कर गई।
मेरे नजरिये से इसका ट्रीटमेंट ओह माय गॉड 2 सरीखा है। बल्कि ओह माय गॉड 2 कह सकते है। एडवेंचर्स कंटेंट देखना था, तथ्यों के साथ मास्टरपीस हो सकती थी। लेखक ने थोड़ा खाका लिख दिया और बचे पन्नों में जय श्री राम लिख दिए। अपनी कहानी को राम भरोसे छोड़ कर बैठ गए।
डॉक्टर चंद्र प्रकाश द्विवेदी ने रामसेतु की सिला पर अच्छे डायलॉग लिखे है।
लेखक ने तेलुगु अभिनेता सत्यदेव कंचारण के लिए जो किरदार लिखा है अद्भुत है। आई लव थिस, इसी किरदार ने मेरी आँखों को आदेश दिया और अश्रु बहते जा रहे थे। सत्यदेव ने अपने किरदार को 70एमएम पर उतारा है और एक्सप्रेशन दिए है कॉमिक और कनेक्टिंग है। बोरिंग फ्रेम में इनकी उपस्थिति धार बनाए रखती है। डायलॉग डिलवरी तो जोरदार होना…क्लाइमैक्स जब उनके किरदार की गहराई सिल्वर स्क्रीन पर फेंकता है, इसके लिए लेखक को कोटि कोटि धन्यवाद निकलता है।
अक्षय कुमार! पुरात्व विभाग के वैज्ञानिक आर्यन कुलश्रेष्ठ के किरदार को देखें, तो यकीन होता है कि इसकी कहानी को अक्षय ने ही लिखवाया है। क्योंकि इस क़िरदार के तत्व 2012 वाले अक्षय से मिलते है जब वे राम मंदिर के सवाल पर कहते है ‘मंदिर मने मन के अंदर’, आर्यन नास्तिक वामी स्वाभव का किरदार है जो राम सेतु के बारे में रिसर्च करते हुए, श्रीराम को मनाने लगता है। रील से इतर अक्षय 2014 के बाद मन के भीतर से मंदिर में पहुँचे है।
अक्षय कुमार, अभिषेक शर्मा और क्रिएटिव प्रोड्यूसर द्विवेदी क्या मज़ाक है! दर्शक को क्या समझ रखा है। अरे यार साइंटिस्ट लुक देना था, तो प्रॉपर काले बाल और सफेद दाढ़ी रख लेते। दाढ़ी सीक्वेंस व फ्रेम देखकर घट-बढ़ रही थी। फ़िल्म के ओपनिंग सीक्वेंस में दाढ़ी के साथ अक्षय गुफा में कूदते है और बाहर निकलते है तो क्लीन शेव…
इनके हाव-भाव में कुछ भी नया नहीं है बल्कि इसमें देखकर बोरियत हुई। सत्यदेव न होते तो सुलाने का इंतज़ाम करके आए थे।
जैकलीन फर्नांडिस! हहहह, इनके चेहरे का कौनसा एंगल वैज्ञानिक लगा रे बाबा….बेकार है। लगता है फ़िल्म में सुकेश के पैसे भी लगे है।
नुसरत भरुचा! जितनी भी फुटेज मिली है डिसेंट रही है।
नासिर! अक्षय के साथ दूसरी बार आये है ग्रे शेड ही लिए है।
प्रवेश राणा! बिग बॉस फेम अभिनेता, अक्षय कुमार के सामने कमज़ोर प्रतिद्वंद्वी लगे है। डायलॉग डिलवरी में भी बेवजह मुस्कान दिखाई पड़ी…आखिर में ग्रे शेड लेते है तब भी गंभीरता व क्रूरता नजर न आती है।
अन्य कलाकारों ने भी अपने अपने किरदार ठीक उतार दिए है।
बीजीएम में जय श्री राम, जय श्री राम उद्घोष ही अच्छा है बाक़ी कतई थ्रिलिंग न है।
सिनेमेटोग्राफी! असीम मिश्रा ने कैमरा के पीछे अच्छा रिदम बनाए रखा है जंगल का चेस सीक्वेंस ठीक है और अंडर वाटर सीक्वेंस मस्त रहे है। खूबसूरती को पूरी तवज्जो दी है।
एडिटिंग! रामेश्वर एस भगत ने थोड़े कुछ फ्रेम को आज़ादी देनी चाहिए थी। बोरिंग फ्रेम हट जाते तो कुछ निखाररूपी शेप सामने होता।
निर्देशन! अभिषेक शर्मा ने धार्मिक एंगल से अडवेंचरस कंटेंट बनाने की कोशिश की है आईडिया भी दमदार है। लेकिन बंधु ऐसे कंटेंट महज 3 महीने में न बनते है इन्हें समय देना पड़ता है। तब थ्रिल और सस्पेंस निकलता है।
द्विवेदी ने कुछ लाइन्स तीर की भांति लिख दी, श्रीराम और रामसेतु को काल्पनिक मानने वालों के लिए बेहद चुभन है। तो श्रीराम जपने वालों के लिए गौरवपूर्ण ‘ताजमहल को मोहब्बत की निशानी मानते है उसे बचाने के लिए विकास को रोक देते है, हजारों साल पूर्व स्त्री के प्रेम में समंदर के बीच राम के नाम से तैरती शिलाएं… रामसेतु बनाती है इसी से होकर सीताराम मिले थे। मानव निर्मित ऐसा सेतु जिसके सामने विज्ञान की सब धाराएं फैल हो चली है।
सत्यदेव के लिए इस कंटेंट को देखना होना…जब भी कोई श्रीराम के अस्तित्व पर सवाल करेगा…तब उनके सामने सत्यदेव एपी के साथ खड़े होंगे।

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