Home राजनीति राहुल जी खूब फोटोजेनिक हैं।

राहुल जी खूब फोटोजेनिक हैं।

by Awanish P. N. Sharma
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बताते हैं जब आप डायपर मतलब लंगोटी एज में थे तो अक्सर अपनी दादी के प्रधानमंत्री आवास में बने सर्वेंट क्वाटर्स की तरफ बकइयाँ खींचते हुए चले जाते थे और दादी के गरीबी हटाओ योजना के तहत उनकी गरीबी हटा आते थे। चूंकि जमीन पर घिसनी काटते हुए नन्हे राहुल का डायपर उतर जाता था इसलिए कलेजे पर पत्थर रख कर उस समय की कोई तस्वीर न ली जाती थी वरना देश की गरीबी कभी की हट चुकी होती।

बाल राहुल जी जब कुछ और बड़े हुए और डायपर उतरने की अवस्था जाती रही… यानी 2008 में तब आपको अपनी सरकार-सरकार खेलना बहुत पसंद था और आप कुछ प्लास्टिक के खिलौने आदि गाड़ी में रख, कैमरा फोटोग्राफरों के साथ पिक हंटिंग यानी तस्वीर शिकार पर मजदूरों, किसानों, दलित-आदिवासियों के बीच निकल जाते थे।

एक बार जयपुर राजस्थान की तरफ ऐसे ही एक तस्वीर शिकार पर निकले राहुल जी पिंजनी गांव पहुंचे। उन्होंने एक आदिवासी लड़की को अपने घर का पोखरा मतलब तालाब खोदने में परिवार की मदत करते देखा। बाल राहुल यह देखते ही मिट्टी-मिट्टी खेलने के लिए मचल गए। अपनी प्लास्टिक की निजी टोकरी गाड़ी से निकाल उसमें मुट्ठी भर भारत माता को स्टाफ से डलवाया और युवती के पीछे ठुमक लिए। तालियां बजीं.. असलहे रूपी कैमरे निकले… धाँय धाँय की आवाजें हुईं और राहुल जी का तस्वीर शिकार पूरा हुआ। एक बार फिर एक आदिवासी का शिकार हुआ जो राहुल बाबा के लिये एडवेंचरस था।

तस्वीरें बाजार में जारी हुईं। तब देश में यूपीए की सरकार थी और सत्ता के सिंदूर को मांग में सजाए तमाम सुहागिन अखबारों, चैनलों, पालतू वैचारिक मादाओं आदि के जरिये… राजकुमार अपनी ही सत्ता में सड़कों पर के सोहर का गान हुआ।

यह सब इसलिए याद आ गया क्योंकि दीदी प्रियंका वाड्रा जी के बस-बस खेलने से पहले पिछले दिनों बाल राहुल मजदूर-मजदूर खेलने को मचल गए। कोरोनाकाल में राहुल जी एक बार फिर मजदूरों के आखेट पर निकले। बताया जा रहा कि जिस मजदूर स्वरूपी महिला की मजदूर हंटिंग को उन्होंने अपने पाले हुए कैमरा शूटरों के जरिये अंजाम दिया उसे बाकायदा सेनिटाइज कर… बड़ी गाड़ी में इनडोर बैठा कर आउटडोर शूटिंग उर्फ हंटिंग लोकेशन तक लाया गया… शिकार अपनी जगह पहुंचे, शूटरों के धाँय-धाँय की आवाजों के साथ ही तस्वीर शिकार और बाल राहुल का कोरोना एडवेंचर पूरा हुआ।

एक दफा फिर खानदानी गुलाम नगरवधुओं, पोसुआ खबरी तबलचिओं आदि ने सोहर गाने का काम शुरू ही किया था कि आउटडोर की इनडोर तस्वीरें बाजार में पसर गयीं और इस मजदूर शिकार के सोहरगान के घँघुरु बीच नाच ही बिखर गए। बताया जाता है इस बार धूप में निकले बाल राहुल जी पर सोशलमीडिया जैसे जन मीडिया की लू लग गयी।

बाल राहुल जी इस तरह के तस्वीर आखेट उर्फ पिक हंटिंग पर अपने कारिंदों, शूटरों के साथ जब-तब निकलते रहे हैं। 2011 में किसी किसान के घर तो कभी किसी विधवा महिला के घर। ये अलग बात है कि खानदानी गरीबी हटाओ जुमले की तरह न उस एक किसान की हालत में कोई बदलाव आया… बल्कि विधवा की बेटी आत्महत्या तक पहुंच गई बाल राहुल के जाने के बाद।

स्व. दादी ने तीन दशक देश के गरीबों की गरीबी हटाने के नारे से मजदूरों-गरीबों के जज्बातों से खेला… स्व. पिता ने जनता के 1 रुपये में से 85 पैसे ऐलानिया खा जाने का सांप-सीढ़ी खेला… माता जी ने कथित त्याग की पैकेजिंग तले 10 सालों तक रिमोट से सरकार-सरकार खेला। बच्चे कभी बस-बस.. तो कभी मजदूर-मजदूर के डिजाइनर खेल पर हैं। इन्हें रत्ती भर भी परवाह नहीं कि इस वैश्विक महामारी के समय इनकी ऐसी नाबालिक हरकतों से प्रवासियों के बीच अफवाहें फैल रही हैं और जानलेवा भीड़ सार्वजनिक स्थानों पर जमा हो रही हैं।

देश से खेलना… जान और खून के स्तर तक खेलना इनका खानदानी और इनके पाले गुलामों, रंगीन वामपंथी मजदूरों का गिरोही शौक रहा है।… लेकिन लोकतंत्र के नाम पर कलंक कांग्रेसी राजघराना, उसके गुलाम और पालतू दलाल खबरची यह समझना नहीं चाहते कि देश अब इनसे खेलने पर आमादा है।

वैश्विक आपदा के इस कोरोनाकाल में देश से तस्वीर-तस्वीर, राजनीति-राजनीति खेलने वालों को देश का गरीब, किसान, मजदूर, प्रवासी भूलने वाला नहीं।

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