जिस दौर में भारतीय सिनेमा का बाजार सनातन उपहास पर चल रहा हो, आर माधवन सनातन निष्ठ विचारधारा को केन्द्र में रखकर रॉकेट्री-द नंबी इफेक्ट्स बनाते हैं यह गर्व और गौरव की बात है। भारतीय राॅकेट वैज्ञानिक नंबी नारायणन के जीवन चरित्र पर बनी इस फिल्म को उस हर हिन्दुस्तानी को देखना चाहिए जिसका दिल अपनी मातृभूमि के लिए निस्वार्थ धड़कता है।
यह फिल्म इसलिए भी देखनी चाहिए कि विज्ञान में धर्म और संस्कृति बाधा नही बनती है। चाहे इस फिल्म को इसलिए भी देखना चाहिए कि आखिर किसने और क्यों नब्बे के दशक में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन मतलब इसरो के बेस्ट दिमाग को बर्बाद करने की साजिश रची और झूठे जासूसी चाहे भ्रष्टाचार के मुक़दमे में फंसाया!
कांग्रेस के शासनकाल के षड्यंत्रों को यह फिल्म उघार (नंगा) कर रख देती है कि कैसे कांग्रेसी वामपंथी इकोसिस्टम के तहत किसी को भी फँसा कर बर्बाद किया जाता था।
सिनेमा के केन्द्र में विज्ञान है। हर जगह वैज्ञानिकों वाली बातचीत है! कोई बनावटीपन नही है और सबसे मजेदार बात यह है कि यह सिनेमा कहीं भी बोर नही होने देती है।
नंबी नरायण के चरित्र में अभिनेता आर माधवन खो गये हैं। अन्य कास्टिंग भी शानदार है। भारत को सेटेलाईट मार्केट में लाने के लिए नंबी नरायण और उनकी टीम के सफर की गाथा शानदार है। कोई भी फ्रेम अनवान्टेड नही लगता है। इस फिल्म के लिए आर माधवन ने ही स्क्रीन प्ले और डायलॉग भी लिखा है। इस सिनेमा में माधवन के सात सालों की मेहनत साफ दिखती है।
एक डायलाॅग आता है “मैंने रॉकेट्री में 35 साल बिताए है और जेल में 50 दिन, उन 50 दिनों की कीमत मेरे देश ने चुकाई ये कहानी उसकी है, मेरी नहीं’ यही सच है।आप जब सिनेमा हाॅल के निकलेंगे तब आँखे नम होगीं और अनेको सवाल होंगे कांग्रेसी और वामपंथी इकोसिस्टम के बारे में! माधवन दिल में बस चुके होंगे। यह फिल्म परिवार के साथ देखने लायक और दोस्तों को प्रेरित करके दिखाने लायक है।
इस सिनेमा में शाहरुख का होना थोड़ा खटकता जरुर है लेकिन कहानी का प्रवाह और माधवन के आगे सब फीका है।ऐसे मुद्दे पर सिनेमा बनाने के लिए हिम्मत चाहिए! माधवन ने वह दिखाया है अब आपका और हमारा काम है इसको देखना और दिखाना!
मुख्य मिडिया पर इस पर कोई चर्चा नही है! पीवीआर और सिने पाॅलिस में फिल्म लगे हैं लेकिन स्क्रीन कम है! लगने के बाद भी वहाँ इसके पोस्टर का नही लगा होना बहुत अखड़ता है।