Home चलचित्र वन्स अपॉन ए टाइम इन वेस्ट और अहिंसा

वन्स अपॉन ए टाइम इन वेस्ट और अहिंसा

721 views

मैं यात्रा में हूँ इसलिए कुछ नया कहने का मौका ही नही है। सिर्फ एक ही तरीका है कि उस बात को कहूँ जो पहले कहा था लेकिन लोगो को ज्यादा मेरी बात समझ में नही आयी थी। चलिए, फिर से उस बात को दोहराता हूँ।

जब आप अपनी विचारधारा के लोगो के बीच उठते बैठते है, तो उनसे हुए संवाद जहाँ आपकी कई दुविधाओं को दूर करती है, वहीं लोगो की दुविधाओं से आपका परिचय भी होता है। 

ऐसे मौको पर, मैंने लोगो में सबसे ज्यादा दुविधा, अहिंसा के परित्याग और कट्टरता की सीमा को परिभाषित करने में होती देखी है। मेरा मानना है कि यदि आप राष्ट्र के प्रति समर्पित और धर्म की रक्षा के प्रति कटिबद्ध है तब आप जितनी जल्दी अपने अंदर से इन संशयों और दुविधाओं से मुक्त हो जाये, आप उतना ही अपने राष्ट्र और धर्म के लिए ईमानदार हो जाते है। यह बात तो सही है की मानव ने बहुत तरक्की कर ली है और उसने अपने को समाजिक प्राणी मानते हुए, समाज को कुछ स्वीकार्य और कुछ अस्वीकार्य नैतिकता से बाँध दिया है। उनमे से अहिंसा एक ऐसा ही नैतिक उपदेश है, जिसे समाज के लिए स्वीकार किया गया है। यह एक ऐसा सत्य है जो समाज के लिए सफल भी है लेकिन, मेरा मानना है कि यह सिर्फ सामान्य और स्थिर परिस्थितियों में ही सत्य है।

मेरे लिए, विप्लवकाल में, अहिंसा के प्रति आसक्ति एक अप्राकृतिक गुण है क्योंकि प्रकृति के मूलभूत नियमों में यह है ही नही है। मेरा स्पष्ट मानना है कि जो प्रकृति में सत्य नही है वह कभी भी सर्वकालिक सत्य नही हो सकता है। यदि मानव के उत्थान के लिए, अहिंसा इतनी ही आवश्यक होती तो प्रकृति में संहार और सर्जन की निरन्तरता कब की टूट चुकी होती लेकिन ऐसा कभी हुआ नही है। 

मेरे लिए हिंसा का आलिंगन, सर्जन का मूलमन्त्र है। आप अपने को तभी तक भविष्य के लिए सुरक्षित रख सकते है जब तक आप अहिंसा की आसक्ति का पूर्णरूप से परित्याग नही कर देते है। यहां यह जरूर समझ लीजियेगा की अहिंसा का परित्याग, आपको हिंसक होने की प्रेरणा नही देती है बल्कि वह आप को हिंसा का उपयोग करना सिखाती है।

हाँ अब यहां एक प्रश्न जरूर खड़ा होता है की क्या इस हिंसा की कोई सीमा होती है? 

हाँ, इसकी सीमा होती है और उसका निर्धारण, हो रही घटनाये करती है। चलिए, आपको अपनी बात को समझाने  के लिए एक हॉलीवुड फ़िल्म के एक डायलॉग से समझाने की कोशिश करता हूँ। –मैंने बरसो पहले, सर्जियो लीओन निर्देशित फिल्म,’Once Upon A Time In West’ देखी थी, जिसमें फ्रैंक(हेनरी फोंडा) नाम का एक पेशेवर कातिल होता है, जो रेल कंपनी के मालिक मोर्टन के लिए, जमीन पर कब्जा करने का काम करता है। वह जब ऐसी ही किसी एक जमीन पर कब्जे के लिए एक पुरे परिवार को मार डालता है तब, मोर्टन, फ्रैंक से कहता है,मुबारक हो फ्रैंक, लेकिन एक बात तो बताओ तुमने सबको मार डाला? लेकिन क्या सबको मार डालना, क्या जरुरी था? मैंने तुमसे सिर्फ लोगो को डराने के लिए कहा था।’

उसके जवाब में फ्रैंक कहता है,’लोग अच्छी तरह से तभी डरते है, जब वो मरते है।’

(Morton: Not bad. Congratulations. Tell me, was it necessary that you kill all of them? I only told you to scare them. Frank: People scare better when they’re dying.)

फ्रैंक का यह जवाब, मुझे हिंसा, अहिंसा को लेकर उठे संशयों और दुविधाओं के उत्तर देता है। यह दुनिया, फ्रैंक ऐसे लोगो से भरी हुयी है जो डरते तभी है, जब वह मारे जाते है। मेरे लिए, फ्रैंक ऐसे लोगो को उनकी जबान में दिया गया उत्तर, कभी भी अहिंसा नही हो सकती है।

 

Related Articles

Leave a Comment