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‘अमेरिका समृद्ध है इसलिए वहाँ अच्छी सड़कें नहीं हैं बल्कि अच्छी सड़कें हैं इसलिए अमेरिका समृद्ध है।’- रीगन ने कहा था।
भाजपा नीत सरकारों का प्राथमिक उद्देश्य सदैव ही भारत में विश्वस्तरीय इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करना रहा है। मोदी सरकार ने तो इसमें कमाल ही कर दिया है।
लेकिन एक क्षेत्र जिसमें प्रगति निराश करने वाली ही नहीं बल्कि भयावह भी होती जा रही है, वह है पर्यावरण।
शहरों में हरियाली तो खैर पॉश कॉलोनीज तक ही सीमित है लेकिन गाँवों में स्थिति डरावनी हो चुकी है।
लोग अब फलदार वृक्षों तक को भट्टों, ईंधन, इमारती लकड़ी व कैश क्रॉप के लिए साफ कर चुके हैं।
वर्षा का असंतुलन, भूमिगत जलस्तर की गहराई, बाढ़, ध्वनि प्रदूषण, वायूप्रदूषण, भूमिकटाव, मानसिक तनाव व पारिस्थितिक तंत्रों का विनाश का सिर्फ एक ही कारण है–पेड़ों की कमी।
अब समय आ गया है कि मोदीजी गडकरी जैसे योग्य व्यक्ति को पर्यावरण मंत्रालय में भी युद्धस्तर पर कार्य करने का निर्देश दें।
जरा कल्पना कीजिये, दिल्ली के बीच काँच की तरह साफ बहती यमुनाजी की और उसके दोंनों ओर पांच सौ मीटर तक साबरमती रिवर फ्रंट की तरह हरियाली व मनमोहक निर्माण की।
( हालांकि दिल्ली की मुफ्तखोर जनता ही इस सपने को पूरा न होने देने के लिए जिम्मेदार है जिसने एक धूर्त गिरगिट को मुफ्त बिजली की मृगतृष्णा में गद्दी दे रखी है और वह दिल्ली के विकास के पैसों को सब्सिडी और प्रचार में उड़ा देता है।)
लेकिन इस महान उद्देश्य के लिए, चाहे दिल्ली को फिर से केंद्रशासित प्रदेश बनाना पड़े, सरकार को हिचकना नहीं चाहिए।
साथ ही अतीत केभारत में सम्राट अशोक के पूर्ण वैज्ञानिक वृक्षारोपण कार्यक्रम से प्रेरणा लेकर ग्रामीण क्षेत्र में क्षेत्रीय जलवायु व मिट्टी के अनुसार फलदार, औषधीय एवं छायादार पौधों का रोपण करना चाहिए ताकि वर्षा चक्र सुचारू रूप से चले और नदियाँ जल से लबालब भरी रहें।
भारत में सैकड़ों ढलवाँ पठारी क्षेत्र ऐसे हैं जहां जरा से प्रयास से स्टॉप डैम बनाकर वर्षा जल को एकत्रित करके न केवल सिंचाई समस्या को हल किया जा सकता है बल्कि भूजलस्तर को भी बढ़ाया जा सकता है।
आवश्यकता इस क्षेत्र में गड़करी जैसे कर्मठ व्यक्ति के साथ-साथ जन भागीदारी की भी है ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए और कुछ नहीं तो ‘सांसे’ लेने के लिए ऑक्सीजन तो छोड़कर जाएं।

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