हमारी तरफ शादी के बाद सुबह खिचड़ी खवाई की रस्म होती है। खिचड़ी खवाई रस्म में दुल्हा, दुल्हन के आंगन में बैठता है। जहां उसके तथा उसके सगे तथा..चचेरे, ममेरे, फूफेर भाई तथा एक दो साथी-संघाती भी बैठ लेते हैं। रस्म में सबके लिए खाने नाश्ते के आवभगत के साथ सबके लिए दुल्हन पक्ष के क्षमतानुसार उपहार या नेग दिया जाता है।
अब हुआ यूं चौधरी साहब के लाडले दुल्हा बने। विवाह के अगली सुबह खीर खवाई की रस्म में दुल्हे के साथ उनके परिवार तथा रिश्तेदारी के छोटे भाई भी उनके साथ गये। आंगन में मुख्य सोफे पर दुल्हा तथा प्लास्टिक की लाल कुर्सियां उनके भाइयों के लिए बिछा दी गयीं। उधर आंगन के चौतरफा दलान पर दुल्हन पक्ष की महिलाएं गारी गा रहीं थीं। फिर खीर, मिठाई, नमकीन से भरी प्लेटों के सजने के बाद नेग या विदाई देने का सिलसिला शुरू हुआ। सबसे पहले दुल्हन की मां आंगन में उतरीं और अपने हाथ से दुल्हे के गले में दो तोले की माला कसकर, उनके भाइयों के आगे 501 रुपये का लिफाफा रखकर चलीं गयीं। उसके बाद क्रम से उनकी तीन देवरानियां जिन्होंने दूल्हे की उंगली में अंगूठी तथा भाईयों को 501 या 201 नगद भुगतान करके आगे बढ़ लीं। मंझली मौसी ने दुल्हे के लिए वीआईपी का अटैची, जिसमें दुल्हे का सामान भरा था तथा भाईयों के लिए एक छोटा बैग जिसमें एक रुमाल तथा एक सेंट… ऐसे ही तमाम रिश्तेदार दुल्हे के लिये बड़ा तथा भाईयों के सामने नन्हें-नन्हें सजाते गये। खीर खवाई के बाद जब दुल्हा समेत सभी लोग बाहर आये तो चौधरी साहब ने देखा कि लड़कों के साथ में बैग है, रुमाल है, पेन है, सेंट है, पर्स है लेकिन दुल्हा… खाली हाथ। अब न तो उनको सोने की सीकड़ी दिख रही और न ही पांच अंगूठी अब उनके आंख में सिर्फ बैग, पेन, रुमाल, सेंट और लिफाफा ही चुभने लगा। बेचैनी जब हद से गुजर गयी तो उन्होंने अपने समधी से पूछा- “का हे! सबके बैग, पर्स और रुमाल अलगे से मिलल और दुल्हा झूरे हाथ झुलावत आवत बा!”
समधी जी के माथे पर पसीना आ गया..वो अंगोछे से पसीना पोछते हुए बोले- ” कहले होतीं त सबके बैग, पर्स और रुमाल दे देहले होतीं। दमादे जी के डेढ़ लाख क सोना देके शिकायत सुनले से निम्मन बात इहै रहल!
——————————-
कल मंत्री मंडल क गठन भइल, ठाकुर साहब लोगन के हिस्सा में एक किलो क हंसुली आइल। अब लोग गोड़े के बिछुआ खातिर खिसियाईल बानं। नाहीं हमके पांच ठो बिछुवा चाहीं….. चाहीं त चाहीं!!!