शास्त्रों_में_मिलावट
प्रातःस्मरणीय भगवत्पाद आदि शंकराचार्य जो शूद्रों से भी नीचे एक चांडाल को गुरू मानकर, साक्षात शिवस्वरूप मानकर साष्टांग प्रणाम करते हैं क्या वे कभी दलित व शूद्रों का जन्म आधार पर मंदिर प्रवेश निषेध करेंगे?
क्या भगवत्पाद को महिदास ऐतरेय, जाबालि, रैक्व के बारे में नहीं पता था?
उन महाभाग के बारे में ऐसा सोचने का सवाल ही नहीं उठता।
दरअसल इस जन्मनाजातिगतश्रेष्ठता को मानने वाले घृणित कीट उस युग में भी थे जिन्होंने उन महाभाग की #मठाम्नाय में शूद्रों के मंदिर प्रवेश निषेध और सुधन्वा चौहान के ताम्रपत्र आदि के #प्रक्षेप घुसेड़े थे।
प्रमाण यह है कि किसी भी पुराण में, किसी भी अभिलेख में, किसी भी सिक्के में, किसी भी लोकोक्ति में #सुधन्वा_चौहान नामक दिग्विजयी चक्रवर्ती सम्राट का कोई उल्लेख नहीं है सिवाय उस फर्जी ताम्रपत्र के जो उन्होंने स्वयं बनवाकर रख छोड़ा है।
इति सिद्धम्!