संत रविदास जयंती पर विशेष
संत रविदास सनातन समाजिक समरसत्ता के सच्चे सुर साधक हैं। मन चंगा तो कठौती में गंगा सनातन का वास्तविक स्वर है। संत रविदास के समय भारत में मुगलों का शासन था चारों ओर गरीबी, भ्रष्टाचार, अत्याचार व अशिक्षा का बोलबाला था। मुगलों ने हिन्दूओं से जबरन मंदिरों में प्रवेश पर टैक्स, अपने भगवान के दर्शन करने पर टैक्स लाद रखा था।गरीब तबका मंदिरों से इस कारण दूर हो चुका था। इस उथल पुथल भरे दौर में इन्होंने अपने पदों के माध्यम से आध्यात्मिक, बौद्धिक व सामाजिक क्रांति का सफल संदेश दिया।
उस समय दिल्ली में सिकंदर लोदी का शासन था। उसने संत रविदास के विषय में काफी चर्चा सुन रखी थी। सिकंदर लोधी ने संत रविदास को मुसलमन बनाने के लिये दिल्ली बुलाया और उन्हें मुसलमान बनने के लिये बहुत सारे प्रलोभन दिये। संत रविदास पर उसके किसी प्रलोभन का असर नही हुआ और उन्होंने काफी निर्भीक शब्दों उसके दरबार में कहा कि
”वेद धर्म सबसे बड़ा अनुपम सच्चा ज्ञान,
फिर मैं क्यों छोडू इसे पढ़ लूँ झूठ कुरान
वेद धर्म छोडू नहीं कोसिस करो हज़ार,
तिल-तिल काटो चाहि, गोदो अंग कटार “
यह निंदा सुनकर सिकंदर लोदी ने संत रविदास को जेल में डलवाकर अनेक यातनाएँ दी। संत रविदास को अपने श्रीराम और कृष्ण पर अटूट विश्वास था। तमाम यातनाएँ सहकर भी उन्होंने अपने धर्म को बचा कर रखा और इतना ही नही उन्होनें उस समय के निर्धन और अशिक्षित समाज में धर्मांतरण रोकने का कार्य किया। यह उनकी आस्था का ही प्रभाव था कि संत रविदास के जीवन काल में अनेक चमत्कार हुए और मुगल भी उनके सामने नतमस्तक हुए। यह सनातन का ही गौरवशाली पक्ष था कि स्वामी रामानंद के शिष्य संत रविदास की शिष्या मीरा बाई बनी। अपने कर्म को करते रहने के साथ अपने अराध्य में लीन रहना संत रविदास ने सिखाया है। कहा जाता है कि चित्तौड़ के राणा सांगा की पत्नी झाली रानी उनकी शिष्या बनी थी।
संत रविदास का नाम मध्यकालीन संतों में में कबीर दास के साथ नानक, जयदेव, नामदेव के जैसे ही भक्ति भाव के साथ लिया जाता है। संत रविदास अपने आराध्य के बारे में कहते हैं कि “बिनु रधुनाथ शरनइ काकि लीजै” अर्थात राम के शरण के बिना उद्धार नही हो सकता है। जब संत रविदास भक्ति में लीन होकर गाते हैं-
प्रभु जी तुम चंदन हम पानी। जाकी अंग-अंग बास समानी॥
प्रभु जी तुम घन बन हम मोरा। जैसे चितवत चंद चकोरा॥
प्रभु जी तुम दीपक हम बाती। जाकी जोति बरै दिन राती॥
प्रभु जी तुम मोती हम धागा। जैसे सोनहिं मिलत सोहागा।
प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा। ऐसी भक्ति करै ‘रैदासा॥
भक्तिरस में आम आदमी सराबोर होकर झूमने लगता है। लेकिन जैसे ही आज के समय में विदेशी पैसो पर पलकर सामजिक समरसता को तार तार करने वाले तथाकथित दलित चिंतक जब नित्य नये और खोखले तथ्य गढ़कर उनको सनातन से अलग दिखाने की कोशिश करते हैं तब वे हास्यास्पद लगने लगते हैं। हिन्दी साहित्य के कुछ वामपंथी आलोचकों ने भी ऐसा ही कुकर्म किया है। लेकिन यह सत्य है कि संत रविदास ने राम भक्ति में लीन होकर सनातन धर्म आधारित जो समानता,सद्भावना और करुणा पर संदेश दिए, वे भारतवासियों को युगों-युगों तक प्रेरित करते रहेंगे।