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संस्कार और सभ्यता | प्रारब्ध

Author - Jalaj Kumar Mishra

by Jalaj Kumar Mishra
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निलांक घर से निकल कर पहली बार इंजीनियरिंग पढ़ने के नाम पर बाहर आया था । अलग जगह, अगल परिवेश मे अपने आप को बचा कर रख पाना एक चुनौती होती है । फिसलना कौन कहे यहाँ तो बिना कहे आज कल ज्यादा आधुनिक दिखने और दिखाने के फ्लेवर में सब बर्बाद है ।
सुबह सुबह नींद खुली,मोबाइल खोजा , तकिए के नीचे से सरक गयी थी ‌। खीच कर पास लाया, देखा तो आठ बज रहे थे । रविवार के दिन छात्रावास में वैसे भी समान्य से कुछ ज्यादा चहल पहल रहती है । एक हाथ से आँख मलते हुए दुसरे हाथ से निलांक ने मोबाइल पर फेसबुक खोला, आज फेसबुक “मदर्स डे ” के पोस्ट से भरा पड़ा था , कोई अपनी माँ के साथ वाली फोटो तो कोई अपनी माँ की याद कोई प्रसंग ,कविता या कोई संस्मरण लिख के पोस्ट डाला हुआ था I
आजकल अकेलापन काटने का बेहतर जरिया है सोशल मिडिया ,निलांक अभी फेसबुक पोस्ट में उलझा ही हुआ था की उसके दोस्त भानु की आवाज उसके कानो तक पहुची “हैप्पी मदर्स डे माँ ” यह सुन निलांक के बदन में एक अजीब सी लहर का स्पंदन हुआ क्योकि वह “हैप्पी मदर्स डे माँ ” से अंजान था । उसे तो जगने के बाद और सोने से पहले माँ और पिता जी के चरण को स्पर्श करने की शिक्षा दी गयी थी I
अपने आप को निलांक ने थोडा सहज बनाया तभी मोबाइल की घंटी बजी और देखा तो पाया माँ का फ़ोन था।
नीलांक : प्रणाम माँ
माँ : खुश रहो , क्या हो रहा है ?
नीलांक : कुछ नहीं माँ अभी सो के उठा हूँ ।
माँ : अभी तक सोये थे ! ऐसा क्या कर रहे थे रात में बेटा ?
नीलांक : माँ कुछ असाइनमेंट था उसको पूरा कर रहा था ।
माँ : बेटा पढाई दिन में किया करो ,शाम है उसके लिए , रात में देर तक जगना स्वास्थ्य के लिए भी बुरा होता है I
निलांक : जी माँ आगे से इन बातो का ख्याल रहेगा I
माँ : कोई बात नही और बताओ तबियत तुम्हारी कैसी है ?
निलांक : जी तबियत बिलकुल ठीक है , पापाजी कैसे है ? बबी (निलांक की बहन) कैसी है ?
माँ : सब कोई ठीक है यहाँ , तुम यहाँ की चिंता छोड़ो और मन लगा कर पढ़ो I
निलांक : माँ एक बात बोलूँ ?
माँ : हाँ पुछो क्या बात है ?
निलांक : माँ , क्या आपको पता है आज मदर्स डे है ? हैप्पी मदर्स डे , माँ !
माँ : बेटा यह तूने कहाँ से सीखा , हमलोगों की सभ्यता और संस्कृति के अभी इतने भी बुरे दिन नही आये की हमलोग रिश्तों को दिनों का पायजामा पहनाने लगे चाहे रिश्तों को एक दिन की सूली पर चढ़ा दे I हमलोगों के यहाँ हर रोज, हर रिश्ते का होता है । हमलोग रिश्ते ही जीते है बेटा ,रिश्तों के बिना कुछ नही ..I
निलांक : माँ लेकिन अब तो भारत में भी मदर्स डे मनाया जा रहा है ओ भी बड़े पैमाने पर ,आज मै सुबह में फेसबुक देख रहा था मानो जैसे फेसबुक पर “ मदर्स डे ” सेलिब्रेसन करने वालो की जैसे बाढ़ सी आ गई हो I
माँ : बेटा ये वे लोग है जिन्हें खुद नही पता की क्या कर रहे है और किसके लिए कर रहे है ? बेटा हम सब लोगों की सभ्यता रही है संयुक्त परिवार की , हम लोग अलगाव में यकीन नही करते है । पता है निलांक भारत में पहले बृद्धाश्रम नही होते थे पर आज कल है और यह सब इन्ही लोगो जैसे तथाकथित आधुनिकता के रोगीयों के वजह से हुआ है I बेटा रिश्ते दिनों के मोहताज नही हुआ करते है रिश्ते जीये जाते है , मनाये नही जाते है । रिश्तों को सेलिब्रेट करने के लिए एक जिंदगी भी काफी नही होती है और लोग रिश्तों को दिनों में समेटना शुरू कर दिए ..कमाल है I बेटा नई चीजो को सिखने में कोई गुरेज नही होनी चाहिए लेकिन उससे पहले यह जरुर सोचनी चाहिए की जो हम सिख रहे है वह वाकई हमारे लिए सार्थक है या सिर्फ यू ही हम काॅपी पेस्ट मे लगे हुए है !
निलांक : जी माँ
माँ : बेटा संस्कार और सभ्यता ,पीढ़ी दर पीढ़ी की विरासत है ।हमलोगों को जो पूर्वजो से मिला, सुरक्षित तुम लोगों को देना है प्रयास किया है। अब आगे तुम लोगों की मर्जी है बचाना है या गवाना है ! बेटा जो इंसान अपनी विरासत नही बचा सका ! अपने संस्कार और संस्कृतियों को नही बचा सकता, वह उस पशु के समान होता है जो जीवन को पेट भरने और मरने तक का सफर समझता है ।
निलांक : जी माँ आप सही कह रही है I
माँ : चलो जाओ फ्रेस होकर नास्ता करो ,शाम में फिर बात होगी I
निलांक : जी माँ, प्रणाम I
माँ : खुश रहो !
निलांक फिर अपने रोजमर्रा के कामो में लग जाता है यह सोचते हुए की माँ कभी गलत हो ही नही सकती है I

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