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सनातनियों का आक्रोश और मोदी जी

Pushker Awasthi

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नूपुर शर्मा के वक्तव्य पर मुसलसल ईमान वालों ने जो आक्रोश दिखाया और कतर की अगुवाई में इस्लामिक राष्ट्रों ने जो प्रतिक्रिया दी, उसको संभालने के लिए, नूपुर शर्मा से बीजेपी ने जो अपनी दूरी बना कर, उसे अकेला छोड़ा है उस पर बड़ी तीव्र अक्रोषित प्रतिक्रिया सनातनियों की तरफ से आई है। मैं भी बड़ा अक्रोशित था लेकिन फिर जब ठंडे दिमाग से पूरी घटना पर विचार किया तो उस आक्रोश को अपने अंदर भविष्य के लिए संचित कर लिया है। मैं अब दूसरों के आक्रोश को समझने का प्रयास कर रहा हूं। मैं उनके आक्रोश को समझते हुए यदि उनकी बातो पर विश्वास करूं तो वर्तमान में प्रधानमंत्री मोदी जी और उनका दल भाजपा भिरुता और नपुंसकता के प्रतीक बन गए है जो सनातनियों को, मुसलसल ईमान पर विश्वास करने वालो से बचाने में असमर्थ है।
क्या यह सत्य है? क्या जो हुआ और जो कल जुम्मे की नमाज के बाद, देश के भिन्न भिन्न इलाको में हुआ वह सब नूपुर शर्मा के वक्तव्य के कारण हुआ है?
यदि आप इसको ही सत्य समझते है तो आपको, आपकी दो पीढ़ी के बाद होने वाले ख तना और उनका मक्केश्वर की तरफ सजदा करने पर, मेरी तरफ से अग्रिम

बधाई

अर्पण है।

मैं समझता हूं की लोगो को बिना किसी पूर्वाग्रह के, भारत के मुसलसल ईमान वालो पर भारत की सरकार द्वारा वर्तमान में प्रतिघात न करने के कारणों को समझना होगा। मैं यदि एक नकरात्मक आलोचक के रूप में देखूं तो मोदी जी की विवशता, कुरू दरबार में, द्रोपदी के चीरहरण पर वहां बैठे धृतराष्ट्र, भीष्म के मौन की नपुंसकता समझ आजाएगी। लेकिन मोदी सकारात्मक है, वो द्रोपदी का चीरहरण नही होने देने वाले है और साथ में इसके उपरांत हुए नरसंहार की शिलापूजन को भी रोकने वाले नही है। उस नरसंहार में यदि कौरव पक्ष के लोग मरे थे तो श्रीकृष्ण ने पांडू पक्ष के लोगो को भी मरने दिया था। यहां तक कि अभिमन्यु को भी मृत्युमार्ग पर जाने दिया था। द्रोपदी जिन्हे श्रीकृष्ण, आत्मीयता में कृष्णा बुलाते थे, वह भी अभिमन्यु की मृत्यु पर, श्रीकृष्ण पर बिफर पड़ी थी लेकिन श्रीकृष्ण, कभी दूत और कभी सारथी बन इस महाभारत के नरसंहार के निर्देशक बने रहे थे।
मैं मानता हूं की हमे अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए अपने ही प्राचीन इतिहास की शरण में जाकर, अपनों के ही नरसंहार के लिए मानसिक रूप से तैयार होना होगा। यदि हम शताब्दियों के दासत्व और अपने में ही लग गई, स्वार्थ की काई के अधीन रहे तो हमे अपनी या अपनी पीढ़ियों के सनातनी बने रहने के विश्वास को तिलांजलि देनी होगी क्योंकि इस बोझ से सनातन भी अपने भविष्य के प्रति निश्चिंत नही रह सकता है।
अब आता हूं की क्यों मोदी जी, कौरवों से पांच गांव की भीख मांगने वाले, निरही लगते हुए कृष्ण प्रतीत होते है। आज मोदी जी की इस निराहिता को कुछ सनातनियों ने भीरू और अकर्मण्य घोषित कर दिया है। ये वे लोग है जिन्हे नाथूराम गोडसे की अपेक्षा है लेकिन उनका प्रमाधिकार यह है की वो उनके घर में पैदा नहीं होना चाहिए, उसे पड़ोसी के घर से निकलना चाहिए। और यदि गलती से नाथूराम गोडसे घर में आगया है तो उसे, सरकार से कवच प्रदान किए जाने का वरदान मिलना उनका मूलतः अधिकार है। ये स्वयं में, बौद्धिक ज्ञान और सनातन के प्रति उद्घोष से दबे हुए, सरकार की छत्रछाया में लड़ने को तो तैयार है लेकिन स्वयं के बलिदान होने के लिए तैयार नहीं है।
मोदी जी की सफलता भी इसी बात की है उन्हे मालूम है की वे कमजोर, भीरू और आश्रित सनातनियों के प्रधान है। उनके पीछे जो भीड़ है उसमे बहुत से लोग, बिना प्रश्रय मिले अधूरेपन से ग्रसित है। उसमे वह भी सम्मलित है जो स्वंय में अक्रमण्य, अपने ही बौद्धिक अहंकार वा स्वार्थ के बोझ में, स्वयं के डोडो बन जाने की नियति से भी अनिभिज्ञ है। मोदी जी इनके डोडो बन जाने के प्रयास को रोकना चाहते है लेकिन वर्तमान में उनकी, कालनरूप असमर्थता भी है। वे अक्रामक होने में असमर्थ है क्योंकि उनके मार्ग का अवरोध, भारत का फेडरल स्ट्रक्चर, उनकी स्वयं की वर्तमान में भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति आसक्ति जो कमजोरी के स्तर तक है, बाबा योगीनाथ वा हेमंत बिसवा जैसे अन्य राज्यो में मुख्यमंत्री का अभाव और मोदी घृणा में लिप्त, पटनायक एक अपवाद को छोड़ कर, शेष विपक्ष के शासनाधीन राज्यों में ईमान वालों को प्रश्रय वा अराजकता की छूट है।
मोदी जी की अंतराष्ट्रीय नीति के प्रति मुझे कोई संदेह नहीं है, उनकी भारत प्रथम के प्रति प्रतिबद्धता अप्रश्निय है। इसके बाद भी वर्तमान में मोदी जी द्वारा इस्लामिक देशों की भारत विरोधी प्रतिक्रिया पर झुक जाने का बोध कराना लोगो को अक्रोशित कर गया है। लेकिन मैं यह समझता हूं की जिस तरह से अंतराष्ट्रीय पटल पर अप्रत्याशित घटनाएं हो रही है, उससे निपटने के लिए, बिना मूल उद्देश्यों को संकट में डाले, मोदी जी ने अपने को नए प्रयोगों की तरफ धकेल दिया गया है। वे आज भी जो कर रहे है वो एक भारी कीमत पर, भारत को स्थिर वा शांत बनाए रखने के लिए कर रहे है, जबकी विश्व के जलने की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है। वो जो आज पांच गांव की भीख मांगते हुए दिख रहे है वो वास्तविकता में आसन्न संघर्ष वा नरसंहार को अपनी समयसारणी के अनुकूल, खीच कर ले आने का उनका प्रयास है।
मोदी जी जानते है की विश्व के जलने के काल में यदि वे भारत की स्थिरता को बनाए रखने में सफल हुए तो भारत 2030 में अग्रणी, आर्थिक रूप से सुदृढ़ वा शक्तिशाली हो कर निकलेगा। साथ में वो यह भी जानते है की भारत, ईमान वालों की सनातन के प्रति अंध घृणा वा उनके स्वयं की धार्मिक विक्षिप्तता के कारण, भारत ज्यादा समय तक अराजकता से अछूता नहीं रह सकता है। उन्हे अनुभूति है की शताब्दियों से विधर्मियों द्वारा झुकाया गया वा हीनता में जीवंतता ढूंढने वाले भारत की नियति में जलना तो लिखा है लेकिन वो इसको कुछ और वर्षो के लिए, उसे बचाए रखना चाहते है। उन्हे शायद अभी भी अपने सनातनियों की मानसिकता वा प्रतिघात क्षमता पर पूर्ण विश्वास नहीं है। मुझे पूर्ण विश्वास हो चला है की मोदी जी अपने नेतृत्व में भारत को जलने नही देना चाहते बल्कि बनाना चाहते है।
मैं समझता हूं की मोदी जी रणभूमि की बिसात बिछा, भविष्य में होने वाले रणसंहार वा रक्तपात के लिए, उसी के कलानुकूल, एक विशेष निर्मम नेतृत्व को भारत के प्रधानपद पर प्रतिस्थापित किए जाने का मार्ग प्रशस्त करने की भूमिका निभा रहे है। आज भारत में बहुत सी संभावनाएं है और साथ में अराजक काल भी सामने आता दिख रहा है, अब देखना तो यह है की सनातन के अनुयाई कब अपने अपने विग्रहों से निकल कर एक साथ खड़े होते है। मेरा मानना है की जितनी देर ये करेंगे वे उतना ही कटेंगे। सनातनियों में भीडतंत्र डीएनए का आभाव है क्योंकि यह मार्ग उनका नही है। सनातनियों की एकजुटता ही उनका सत्य है जो अपने में ही शिव है। आज मोदी जी की वैश्विक कूटनीति और घर के अंदर के अराजक तत्वों से निपटने की नीतियों में जो असहायता दिख रही है उसका एक कारण, सनातनियों को आसन्न अराजक रक्तपात के काल के कटुसत्य का बोध कराना भी है ताकि उनको इतना पर्याप्त समय मिल जाए की वे भूतकाल वा वर्तमान की गलतियों से उन्नत हो, एकजुट होकर इस अराजकता पर विजयश्री प्राप्त कर सके।

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