Home आर ऐ -ऍम यादव ( राज्याध्यक्ष) सपने देखने चाहिए, सच हो भी सकते हैं।
सपने देखने चाहिए, सच हो भी सकते हैं।
सोचिए भव्य शोभायात्रा निकालनी तो है और आप जानते हैं कि जैसे पुराणकाल में यज्ञों में व्यवधान करने राक्षस आ कर अग्नि में निषिद्ध पदार्थ फेंक कर जाते थे, आजकल शोभायात्रा पर पथराव करते हैं।
तब राजा का दायित्व होता था यज्ञ का रक्षण करें लेकिन आजकल स्थिति अलग है। आज यज्ञ भी नहीं होते इसलिए शोभायात्रा में सम्मिलित होनेवालों को आत्मरक्षा के लिए शस्त्र रखने का भी अधिकार नहीं होता। जो भी शस्त्र माना जाए वो साथ नहीं रख सकते, इसलिए प्रशिक्षण और प्रसंगावधान महत्व के बन जाते हैं।
यात्रा में महिलाएं सुरक्षा के लिए चिंता का विषय बन जाती हैं तो साथ न लें। क्योंकि हमला तो उनपर ही होगा ताकि आप उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित हो जाएँ और सीधा सोच न पाएँ।
मस्तकों की सुरक्षा की व्यवस्था अवश्य करें, अगर मस्तक को रीजनेबली पत्थर प्रूफ बना दिया तो हौसला बना रहेगा। बाकी तो “सकल पदारथ हैं जगमाही” सत्य है। युद्धनीति में deterrent बड़ा महत्व का होता है। सरल भाषा में कहें तो अगर तगड़ा जवाब मिलने की गारंटी हो तो गलत सवाल नहीं किए जाते। शांति रहती है।
और हाँ, एक बात को न भूलें। बचपन से इस बात से बच्चे दो चार होते हैं, पता नहीं बाद में भूल जाते हैं। Bullying याने दादागिरी से निपटना। स्कूल में भी ऐसे बच्चे मिलते हैं जो दूसरों पर धौंस जमाते हैं। कुछ दब्बू बच्चे अपने माँ बाप द्वारा उनकी शिकायत टीचर से करवाते हैं, और उसके बाद हमेशा स्कूल छूटने के समय डरते रहते हैं। डर का सामना करने से ही डर खत्म होता है या खत्म किया जा सकता है। हर समय कोई न कोई पालनहार नहीं आता, स्वयं को ही स्वयं का रक्षक बनना पड़ता है, अपनी लड़ाइयाँ चुननी पड़ती हैं जहां जीतने के आसार अधिक हो। दादागिरी करनेवाले लड़के वही तो करते हैं, जो दब्बू लड़के चुनकर उनपर धौंस जमाते हैं। दौर्बल्य गौरवशाली नहीं होता, और याद रहे, द्रोणाचार्य शस्त्रों के भी विद्वान थे, शास्त्र के भी विद्वान थे।

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