मोदी की राजनीति दो प्रकार से चलती है, पहला काँटे से काँटा निकालना और दूसरा दुश्मन को थकाना।
इसमें से पहली राजनीति को समझने के लिए मोदी पर पूर्ण विश्वास चाहिए और दूसरी को समझने के लिए धैर्य।
मोदी के इस काँटे से काँटा निकालने की नीति को आप अभी अभी अभी महाराष्ट्र में देख चुके हैं।
मोदी का नया खेल है मुस्लिम तृप्तिकरण, इस सम्बंध में उन्होंने दो खेल खेले हैं, पहला है अब्बास की कहानी और दूसरी है पसमांदा वर्ग का स्वीकृतिकरण।
राजनीति में हर पार्टी का अपना एक फ़ेवरेट ग्राउंड है, भाजपा का हिंदू मुस्लिम, समाजवादी क्षेत्रीय दलों का जातिवाद, कांग्रेस का यथास्थितिवाद।
इस समय कांग्रेस एवं क्षेत्रीय समाजवादी दलों को यह स्पष्ट हो चुका है की वह इस्लामिक तुष्टिकरण से नहीं जीत सकतीं, सो उन्होंने नया राग अलापना शुरू कर दिया है और वह है सॉफ़्ट हिंदुत्व। अभी अभी दो उपचुनावों में मुसलमानों ने सपा जैसे अति मुस्लिमपरस्त पार्टी को यह संदेश दे दिया है की हमारी पूछ सहलानी तो तुम्हें पड़ेगी। पर यह पूछ ठीक से सपा सहलाए इसका दबाव बनेगा तभी सॉफ़्ट हिंदुत्व का नक़ाब उतरेगा।
मोदी इसी नीति पर अपना चाल चल चुके हैं।
यह हमेशा ध्यान रखें की भाजपा के सॉफ़्ट इस्लाम से मुसलमानों को उतना ही फ़ायदा होने वाला है जितना फ़ायदा कांग्रेस के सॉफ़्ट हिंदुत्व से हिंदुओं का हुआ है।
कुछ लोगों को आशंका है की मोदी आंतरिक मामलों में असफल हैं। उनको राजदंड चलाना नहीं आता। यहीं लोग भूल गए हैं की इस देश में होम ग्रोन आतंकी मोडयूल था और एक तिहाई ज़िले नक्सल प्रभावित। हर चार माह पर बम ब्लास्ट एक सामान्य प्रक्रिया थी। कभी दस तो कभी सौ लोग मरते थे। नक्सलवाद की कमर तोड़ दी गयी, और उस राजनाथ जी के राज में ही जिन्हें लोग निंदानाथ कहकर मज़ाक़ बनाते थे। देशी आतंकी मोडयूल समाप्तप्राय हो गया।
इसी प्रकार की आशंका यह भी है की भीड़जनित आंदोलनों पर मोदी सरकार नियंत्रण नहीं करती। यदि इस बात में सत्यता होती तो छात्र आंदोलन एवं अग्निवीर आंदोलन इन दोनों पर मात्र दो दिन के भीतर नियंत्रण हासिल नहीं हो जाता।
मोदी सरकार हर उस आंदोलन को जिससे या तो हिंदुओं में शत्रुबोध उत्पन्न हो अथवा स्थायी एकता का भाव मज़बूत हो उसे पनपने देती है। हर उस आंदोलन को जिस पर लाठी चलाने ने हिंदू एकता विखंडित होती है नहीं छूती।
मुझे नहीं मालूम आप में से कितने लोग मेरे पुरानी id से जुड़े हैं, लेकिन वह जानते हैं की किसान आंदोलन के पहले दिन ही मैंने कहा था की यह आंदोलन दो लक्ष्यों से हो रहा है, पहला लक्ष्य है 30 सिक्ख लाशें पाना जिससे पंजाब में एक शुद्ध ख़ालिस्तानी पार्टी का जन्म हो सके और दूसरा तथाकथित किसानों की इस तरह से पिटाई करवाना की किसान जातियाँ जैसे जाट, कुर्मी लोध, कोईरी आदि का नेतृत्व भाजपा के साथ समझौता करने में असहज हो उठे और अंततः सपा के पाले में जाकर योगी नामक सेक्यूलरो के हृदय का काँटा निकाला जा सके और यदि मोदी योगी में धैर्य होगा तो यह गलती नहीं होगी।
जिन लोगों को लगता है की मोदी तो कायर हैं, योगी असली मर्द हैं, उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए की जब राकेश टिकैत भी जान गया था की उसकी गिरफ़्तारी तय है, तब उत्तर प्रदेश के पुलिस ने ही अचानक उसको अभयदान दे दिया। उसी का एहसान चुकाने टिकैत लखीमपुर गया था जब सिक्खों और स्थानीय लोगों में विवाद हुआ था।
केवल राजनीति को ही मत समझिए, जो राजनीति जो कर रहा है उसके तरीक़े को भी समझने का प्रयास करिए, विपक्ष जो जाल बिछा रहा है उसे भी समझिए। शेर के शिकार का तरीक़ा अलग है, बाघ का अलग, और भेड़िया का अलग।
आपको मतलब है शिकार होना चाहिए, वह दिन प्रतिदिन हो रहा है। ठीक से हो रहा है, पर इस अति तक मत जाइए की मेरे तरह से शिकार क्यूँ नहीं किया?? पहले शिकार क्यूँ नहीं किया?? इस जानवर का क्यूँ नहीं किया।
कुछ बातें शिकारी पर छोड़ दीजिए। इतना भगदड़ मत करिए की शिकार ही सचेत होकर भाग जाय।
आपका मन साफ़ हो सकता है, अंतकरण शुद्ध हो सकता है, बुद्धि तीक्ष्ण हो सकती है, ज्ञान प्रतिभायुक्त हो सकता है, त्याग का प्राबल्य हो सकता है, पर धैर्य नहीं है तो आप मंगल पांडेय की तरह पहला बलिदानी बन सकते हैं, व्यक्तिगत मान सम्मान पा सकते हैं पर आंदोलन तय समय से पहले शुरू करके उस सम्पूर्ण आंदोलन को बर्बाद कर सकते हैं।
मोदी फ़िलहाल टिप्पणी से ज़्यादा पढ़ने समझने के विषय हैं।
मुझे उनमें कोई संशय नहीं है।
उन्होंने यह विश्वास मुझसे अर्ज़ित किया है।