Home अमित सिंघल सिविल सर्विस दिवस पर प्रधानमंत्री जी के विचार – तृतीय एवं अंतिम भाग।

सिविल सर्विस दिवस पर प्रधानमंत्री जी के विचार – तृतीय एवं अंतिम भाग।

by अमित सिंघल
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कारखाने के टॉयलेट्स में अगर हर 6 महीने चूना नहीं लगाया है तो आप जेल जा सकते है !!!
सिविल सर्विस दिवस पर प्रधानमंत्री जी के विचार – तृतीय एवं अंतिम भाग।
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सिविल सर्विस दिवस पर अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूछा कि हमने प्रशासनिक सुधारो को क्या बना दिया है? छोटी-छोटी चीजों के लिए कमीशन बनाने पड़े। सरकारी खर्च कम करना है; कमीशन बिठा दो। प्रशासन में बदलाव कम करना है; कमीशन बिठा दो। कुछ माह-वर्ष बाद रिपोर्ट आती है, फिर रिपोर्ट देखने के लिए एक और कमेटी बनाओ। उस कमेटी की रिपोर्ट को लागू करने के लिए एक और कमीशन बनाओ।
मेरे कार्य का मूल स्वभाव है कि प्रशासन में समयानुकूल बदलाव बहुत जरूरी होता है। किसी समय युद्ध होते थे तो हाथी होते थे; हाथी वालों ने हाथी छोड़कर के घोड़े पकड़े। और आज न हाथी चलता है न घोड़ा चलता है कुछ और जरूरत पड़ती है। युद्ध का दबाव हमें रिफॉर्म करने के लिए मजबूर करता है। देश की आशा-आकांक्षाएं हमें मजबूर कर रही हैं कि प्रशासन में सुधार हो।
प्रशासन में सुधार एक नित्य, सहज प्रक्रिया और प्रयोगशील व्यवस्था होनी चाहिए। अगर प्रयोग सफल नहीं हुआ तो छोड़ के चले जाने का साहस होना चाहिए। मेरे ही द्वारा की हुई गलती को स्वीकार करते हुए मुझे नया स्वीकार करने का सामर्थ्य होना चाहिए।
आज भी मेरा मत ऐसे बहुत से कानून है जो व्यर्थ हैं। आप पहल लेकर के खत्म करो; देश को इस जंजाल से बाहर निकालो। हम कानून के पालन के नाम पर न जाने नागरिकों से क्या-क्या मांगते रहते हैं। हर चीज में जेल में डाल देते है नागरिकों को।
मैंने एक ऐसा कानून देखा कि कारखाने में जो टॉयलेट्स हैं, उसको अगर हर 6 महीने चूना नहीं लगाया है तो आप जेल जाएंगे। हम देश को कहाँ ले जाना चाहते हैं? अब ये सारी चीजों से हमें मुक्ति चाहिए। अब ये सहज प्रक्रिया होनी चाहिए, इसके लिए कोई सर्कुलर निकालने की जरूरत नहीं होनी चाहिए।
ये कठिन काम होता है और राजनेता तो इसमें कभी हाथ लगाने की हिम्मत ही नहीं करता है। लेकिन मैं राजनीति से बहुत परे हूं। मैं जन नीति से जुड़ा हुआ इंसान हूं। जन सामान्य की जिंदगी से जुड़ा हुआ इंसान हूं।
कभी अफसर मुझे शादी का कार्ड देने आते हैं तो तो बड़ा महंगा कार्ड नहीं लेके आते हैं, बहुत ही सस्ता कार्ड लाते हैं। लेकिन उस पर प्लास्टिक का कवर होता है। तो मैं सहज पूछता हूं कि ये single use plastic अभी भी प्रयोग करते हैं आप? बेचारे शर्मिंदगी महसूस करते हैं। अगर हम देश से अपेक्षा करते हैं कि single use plastic का प्रयोग न करें, मेरे दफ्तर में मैं जहां हूं, मैं काम करता हूं, क्या मैं मेरे जीवन में बदलाव ला रहा हूं? मेरी व्यवस्था में बदलाव ला रहा हूं?
जब रेड़ी पटरी वाला कोई डिजिटल पेमेंट का काम कर रहा है तो हमें अच्छा लगता है। लेकिन अगर मेरा बाबू डिजिटल पेमेंट नहीं करता है, मेरी व्यवस्था में बैठा हुआ इंसान वो काम नहीं करता है तो मैं इसे जन आंदोलन बनाने में रुकावट मानता हूं।
हमारे यूपीआई (डिजिटल भुगतान) की विश्व में प्रशंसा हो रही है। क्या मेरे मोबाइल फोन पर यूपीआई की व्यवस्था है? क्या मैं यूपीआई की आदत डाल चुका हूं? मेरे परिवार के सदस्यों ने डाला हुआ है?
हमारी सेना की कैंटीन के अंदर यूपीआई कंपलसरी कर दिया गया है। वो डिजिटल पेमेंट ही लेते हैं। लेकिन आज भी हमारे सरकारी कार्यालयों के अंदर कैंटीन होते हैं, वहां यह व्यवस्था नहीं है। क्या ये बदलाव हम नहीं ला सकते हैं?
अगर मैं अपनी यूपीआई को स्वीकार नहीं करता, तो मैं कहूंगा कि गूगल तो बाहर का है, अगर हमारे दिल में यूपीआई के लिए वो भाव होता है तो हमारा यूपीआई भी गूगल से आगे निकल सकता है, इतनी ताकत रख सकता है।
बातें छोटी लगती होंगी लेकिन अगर हम कोशिश करें, तो हम बहुत बड़ी बातों को कर सकते हैं और आखिरी व्यक्ति तक उचित लाभ पहुंचाने के लिए हमें लगातार एक सही तंत्र खड़े करते रहना चाहिए।

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