आपका काम अच्छा हो या खराब, लोग सिर्फ आपके नाम से खिंचे आ जाते हैं. कपिल के हाथ में बॉल होती थी तो स्टेडियम में रनअप के साथ एक शोर उठता था, चाहे पिछले ओवर में उसकी गेंद पर छक्का ही क्यों ना लगा हो. सचिन चाहे तीन पारियों में शून्य बना दे, लोग चौथी पारी देखने के लिए फिर से छुट्टी लेकर टेलीविजन से चिपक जाते थे.
आमिर खान को यही गुरुर था कि उसकी फिल्म अच्छी या बुरी होने की वजह से नहीं, उसके नाम से चलती है. लोग पहले देखते थे, फिर सोचते थे कि कैसी चली.
आज इतना तो तय है कि उसका स्टार पॉवर टूट गया है. आज किसी की एक औसत सी फिल्म भी इतनी पब्लिसिटी और मार्केटिंग के बाद इससे तो बेहतर ही चलती. पर आमिर का देशद्रोही जिहादी इमेज फिल्म पर बहुत भारी पड़ गया.
अब आज अगर आमिर फिर से “दिल चाहता है” लेकर आ जाए तो शायद फिल्म थोड़ी बेहतर चल जाए, पर वह चलेगी भी तो सिर्फ इसलिए कि फिल्म सिनेमा की दृष्टि से अच्छी थी. सिनेमा हॉल में दर्शक फिल्म को खींचने पड़ेंगे, आमिर का नाम दर्शक नहीं खींच पाएगा… हां, भगा जरूर देगा. एक बड़ा वर्ग होगा जो यूं शायद चला भी जाता, उसका नाम देखकर तो बिल्कुल नहीं जायेगा, चाहे फिल्म कितनी भी अच्छी हो.
उधर शाहरूख और सलमान के साथ ऐसा कोई खतरा नहीं है…इन दोनों ने आजतक कोई अच्छी फिल्म बनाई ही नहीं है. जो भी चला है, स्टार पॉवर के नाम पर चला है. अगर आमिर का स्टार पॉवर टूट चुका है तो शाहरूख सलमान सैफ किस खेत की मूली हैं.
अड़े रहिए, इन खानों की फिल्म, और बॉलीवुड के किसी भी लिब्रांड देशद्रोही की कोई फिल्म नहीं देखेंगे. अच्छी या बुरी…बाद में सोचेंगे. पहले तो यह कि देखनी ही नहीं है.