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हाथ लुटेरे हाथों को तोड़ने के लिए भी होते हैं

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अभी एक मित्र ने जितेंद्र पात्रो की एक पोस्ट भेजी है। जिस में बनारस में 12 अप्रैल को होने वाले एक पुस्तक विमोचन का ज़िक्र है। उस पोस्ट के आख़िर में जितेंद्र पात्रो ने लिखा है :
जहां-जहां तुम मुझे आने से रोकोगे,
मैं उसी स्थान पर अपने काम को बढ़ाऊँगा !!
अरे झूठ , झांसा और छल-कपट के सरदार जितेंद्र पात्रो , कौन किस को रोक रहा है। काम बढ़ाइए न ! इतना बौखलाइए मत। कहां तो कुछ महीने पहले यही जितेंद्र पात्रो मेरी समग्र रचनावली छापने की पेशकश कर रहे थे। शिनाख़्त सीरीज में छाप रहे थे। और अब यह हताशा ! अपने झूठ की आंच में इतना जल गए ?
मैं कौन होता हूं , किसी को कहीं रोकने वाला। न किसी को कहीं रोकने जा रहा हूं। यह दुनिया जितनी मेरी है, उतनी ही सब की है। मेरी उस पोस्ट का मक़सद बस इतना ही है कि मेरी मेहनत पर कोई डाका न डाले। डाका डालेगा तो उस को चैन से न बैठने दूंगा। तबाह कर दूंगा। वह एक शेर है न :
मैं वो आशिक़ नहीं जो बैठ के चुपके से ग़म खाए
यहां तो जो सताए या आली बरबाद हो जाए।
पाश की एक कविता यहां मौजू है :
हाथ अगर हों तो
जोड़ने के लिए ही नहीं होते
न दुश्मन के सामने खड़े करने के लिए ही होते हैं
यह गर्दनें मरोड़ने के लिए भी होते हैं
हाथ अगर हों तो
‘हीर’ के हाथों से ‘चूड़ी’ पकड़ने के लिए ही नहीं होते
‘सैदे’ की बारात रोकने के लिए भी होते हैं
‘कैदो’ की कमर तोड़ने के लिए भी होते हैं
हाथ श्रम करने के लिए ही नहीं होते
लुटेरे हाथों को तोड़ने के लिए भी होते हैं।
तो लुटेरे हाथों को तोड़ने के लिए मेरे पास भी दो हाथ हैं। जितना छलकना हो छलकिए। नो प्राब्लम। बस मेरी मेहनत पर डकैती डालने की ज़ुर्रत हरगिज मत कीजिएगा , जितेंद्र पात्रो। न आप की घुंघरु ब्रिगेड। नहीं मेरे हाथ तो खुले हैं ही , क़ानून के हाथ भी खुले हैं , लुटेरे हाथों को तोड़ने के लिए। प्रकाशन की आड़ में आप के ग़ैर क़ानूनी कामों की फ़ेहरिस्त बहुत लंबी है।
सो उड़ान भरिए पर उतनी ही जितनी क्षमता है। अपनी अक्षमता का ठीकरा अपने ऊपर ही फोड़ते रहिए। किसी और पर नहीं। क्यों कि जब मेरे हाथ उठेंगे तब कोई दीदी , कोई सर आप को बचाने के लिए नज़र नहीं आएंगे। यह सर्वदा याद रखिए। क्यों कि साथ आए तो चपेट में सभी आएंगे। आप को कहीं कोई रोकने नहीं आ रहा। किसी के पास न इतना समय है , न व्यर्थ की ऊर्जा। सो मस्त रहिए। डकैती और बकैती से बाज आइए।

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