दिल्ली में मेरी एक मित्र से बात हो रही थी – कभी वह मोदी के समर्थक थे, आज आलोचक हैं.
मैंने उन्हें समझाया कि आपकी अपेक्षायें ग़लत हैं. आप यदि यह इक्स्पेक्ट कर मोदी को वोट देते हैं कि इकॉनमी एकदम से बदल जाएगी, रोजगार बढ़ जाएगा, भारत का सिस्टम अमेरिका जैसा हो जाएगा – यह सब कभी न होगा. उसके लिए आमूल चूल परिवर्तन करने होंगे जो सवा अरब देश में सम्भव नहीं. वैसे भी भारत में यह विषय नेता नहीं बाबू चलाते हैं.
हमने जिस कार्य के लिए मोदी / भाजपा को समर्थन दिया था, वह था हिंदू वादी एजेंडा, राष्ट्रवादी अजेंडा. इसमें मोदी सरकार सौ / सौ से पास है.
दस वर्ष पूर्व का समय याद कीजिए, आज के अच्छे अच्छे राइट विंगर सेक्युलर होते थे. देश का अलग ही नरेटिव था. हम घमंड करते थे इस बात पर कि हम पर चाहे जितने बम फोड़ लो हम गंगा जमुनी सभ्यता पर आँच न आने देंगे, कोई ऐक्शन न लेंगे. हम गर्व से बोलते थे कितने भी बम फटें भारत अगले ही दिन फ़िर से खून को साफ़ कर दौड़ने लगता है. ईको फ़्रेंड्ली होली की ज़्यादातर लोग बात करने लगे थे. शिवरात्रि में दूध चढ़ाना वेस्टेज है अधिसंख्य युवा मानते थे.
दस वर्षों में आज के लेफ़्ट विंगर भी हिंदू हो गए हैं. राहुल गांधी जनेओ पहन चलते हैं. आतंकवादियों को जेल से रिहा करने वाले अखिलेश हवन पूजन करने लगे हैं. टोपी पहनने वाले केजरीवाल हनुमान भक्त हो गए हैं. राम मंदिर ही नहीं, अब भव्य काशी भव्य केदारनाथ है. राष्ट्रवाद के रूप में 370 हट गई है. यूनफ़ॉर्म सिवल कोड पर चर्चा चल रही है. कश्मीर शांत है. नक्सली शांत हैं. नोर्थ ईस्ट शांत है. बिजली ग्रिड से लेकर टैक्सेशन तक सबमें एक भारत श्रेष्ठ भारत की विचार धारा चल रही है.
हमने तो भाई मोदी सरकार इसी काम के लिए चुनी थी. शेष शानदार विदेश नीति, शानदार इंफ़्रा डिवेलप्मेंट हमें बोनस में मिल गया. यही प्रैक्टिकल एक्स्पेक्टेशन थी और है.