डॉ. पीटर हेमंड ने अपनी शोध पुस्तिका “स्लेवरी, टैररिज्म एंड इस्लाम-द हिस्टोरिकल रूट्स एंड कंटेम्पररी थ्रैट” में मु स्लिमों की जनसंख्या के प्रतिशत के अनुसार उनकी अलगाववादी व राष्ट्रद्रोही मानसिकता के प्रदर्शन पर जो शोध किया था वह अक्षरशः सही बैठ रहा है।
यह ऐतिहासिक शोध मु स्लिम मनोवृत्ति की शतप्रतिशत व्याख्या करता है।
“20% से ज्यादा मुस्लिम जनसंख्या:
जब किसी क्षेत्र में मुसलमानों की संख्या 20 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है तब विभिन्न ‘सैनिक शाखाएं’ जेहाद के नारे लगाने लगती हैं, असहिष्णुता और धार्मिक हत्याओं का दौर शुरू हो जाता है, जैसा इथियोपिया (मुसलमान 32.8 प्रतिशत) और भारत (मुसलमान 22 प्रतिशत) में अक्सर देखा जाता है।”
“40% से ज्यादा मुस्लिम जनसंख्या:
मुसलमानों की जनसंख्या के 40 प्रतिशत के स्तर से ऊपर पहुंच जाने पर बड़ी संख्या में सामूहिक हत्याएं, आतंकवादी कार्रवाइयां आदि चलने लगती हैं। जैसा बोस्निया (मुसलमान 40 प्रतिशत), चाड (मुसलमान 54.2 प्रतिशत) और लेबनान (मुसलमान 59 प्रतिशत) में देखा गया है।”
आप कश्मीर, केरल कैराना, मेवात और मुजफ्फरनगर में यह देख सकते हैं।
कर्नाटक के स्कूल कॉलेजों में मांग हो रही है कि आज “हमें हिजाब पहन कर स्कूल आने दिया जाए..”
कहानी यंही तक रुक जाए तो शायद कोई दिक्कत नही….पर कहानी यंहा रुकेगी नही…..इस मांग के माने जाने के बाद असल कहानी शुरू होगी…..
उसके बाद मांग उठेगी…
हमें स्कूल में नमाज अदा करने का मौका चाहिए…(एलेन, आकाश आदि इंस्टीट्यूट्स में ऐसा हो रहा है।)
-उसके बाद?
नमाज अदा करने के लिए अलग जगह चाहिए…(एलेन, कोटा व भोपाल में TAC नामक इंस्टीट्यूट ने बाकायदा जगह दे भी रखी है।)
-उसके बाद?
कॉलेज कैंटीन में हलाल का काउंटर अलग हो जंहा बस हलाल ही परोसा जाए…..
उसके बाद?
हमारे प्रार्थना समय के दौरान क्लास व पढ़ाई से छूट मिलना चाहिए….
-उसके बाद?
रविवार को छुट्टी क्यों है? हमें शुक्रवार को छुट्टी दें…..
-उसके बाद
सिलेबस में कृष्ण, बुद्ध और राम के चैप्टर है, इन्हें हम ईश्वर नही कह सकते, तो उन सब की जरूरत नहीं है, इन्हें हटाये….
-उसके बाद
अप्रैल और मई में स्कूल की छुट्टी क्यों है? हमारे रमजान महीने में दे दो….
और उसके बाद ये सिलसिला रुकने वाला है नही….
जब वे बहुसंख्यक हो जाएंगे तो यही ईशनिंदा कहलाएगी…..जिसके लिए क़त्ल वाजिब है….
पर डरपोक व मूर्ख हिन्दू अभी भी लगा है ये कुछ नही है
लेकिन कर्नाटक के हिन्दू आने बाली मुसीबत को सही समय पर समझ गये….
डरपोक हिन्दू की लड़की भाग जाए तो चुप रह जाते है…तो ये शिक्षा के मंदिर में हिजाब का क्या विरोध करेंगे।
वैसे मेरी लाइफ मेरी चॉइस बाली गैंग को हिजाब में न जाने कौन सी नारीमुक्ति दिखाई देती है।
बस मुझे कोई इतना बता दे कि सार्वजनिक जगहों पर खुली बकरी की तरह घूमने वाली इन लड़कियों को स्कूलों में ही हिजाब की जरूरत क्यों महसूस हो रही है?
हमारी ओर की मूर्खा फेमनिस्टों को शालीन हिंदू प्रोटेस्टर ‘गुंडे’ दिखाई देते हैं और उन्हें चिढ़ाने वाली आक्रामक लड़की जिसे मौलाना महमूद मदनी जैसा जेहादी पांच लाख रुपये से पुरुस्कृत करता है, वह पीड़ित दिखाई देती है।
ऊपर से मु स्लिमो से डरे हुए कायर जज जिन्हें सबरीमला में मंदिर में मासिकधर्म के खून से सना नैपकिन फैंकने पर धर्म नहीं संविधान याद आता है और हिजाब मामले में कु रान याद आ जाती है।
इधर मुजफ्फरनगर में जिनके हाथों युवकों की जान, स्त्रियों की इज्जत गई थी उन्हीं मु स्लिमों को हमारे ‘कई’ जाट वोट देने जा रहे हैं।
कोई योगी, कोई मोदी क्यों इनके लिए लड़े?
अगर अब भी नहीं जागे तो हमारी लड़कियां जर्मन महिलाओं की तरह ‘तहर्रुष’ के लिए इस्तेमाल की जाएंगी और तब बघारना अपना ‘फेमनिज्म’, ‘जातिवाद’ और ‘प्रगतिशीलता’।