पचास सिखों की वापसी के बाद अब आधिकारिक तौर पर अफगानिस्तान ‘काफिरों’ से मुक्त हो गया।
653 ई. में हेलमंद घाटी में हिंदू पठानों के प्रमुख तीर्थ स्थान #जामिनद्वार में भगवान जूर (सूर्य) की प्रतिमा के भंजन के साथ अरब मुस्लिमों ने जिस अभियान की शुरूआत की थी, कल वह पूर्ण हुई।
सीखने के लिए एक दिन बहुत होता है लेकिन हम 1400 साल से कुछ सीखने को तैयार नहीं।
श्रीराम ने एक सलाह पर रावण की नाभि के अमृतकुंड को सुखा दिया लेकिन अफगानिस्तान के हिंदू-तुर्क शासक, महाराज #फ्रोमो_कैसरो से लेकर वर्तमान तक कोई सीखने को तैयार नहीं कि इस्लाम का नाभिकुंड और कुछ नहीं यह देवबंद और बरेलवी मौलाना हैं।
पीएफआई सिर्फ एक सिर है जिसके कटने पर दूसरा उग आना तय है अगर आप इन मौलानाओं से अपनी कार्यवाही का समर्थन मांगते हैं।
देवबंदी, बरेलवी, शिया मौलानाओं पर एनएसए लगना शुरू होने पर ही इस्लामिक आतंकवाद के विरुद्ध कार्यवाही को वास्तविक माना जा सकता है वरना….
वरना तय है कि भारत का इस्लामीकरण बस समय की बात भर रह गया है, क्योंकि …
1)हमारी लड़कियाँ सुधरने को तैयार नहीं।
2)हम जातिश्रेष्ठतावाद छोड़ने को तैयार नहीं।
3)हम आर्थिक बहिष्कार करने को तैयार नहीं।
4)हम अध्ययन को तैयार नहीं।
5)हम हथियार उठाने को तैयार नहीं।
हमें बस बेताल बनकर मोदी-योगी के कंधे पर बैठना और उनसे प्रश्न करना अच्छा भी लगता है और सरल भी।
यही कारण है कि सैकड़ों साल पहले –
हम वहाँ भी पेले गये थे, अब यहाँ भी पेले जाएंगे।’
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