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PFI कार्यकर्ताओं ने एक घर में तीन पेट्रोल बॉम्ब फेंके

R A M Yadav

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“मुझे कौन सी लड़ाई लड़नी है, तुम हो ना!”
कुछ वर्षों पहले महिलाओं के लिए ट्रेनिंग की जरूरत पर कुछ पोस्ट्स लिखी थी । परिस्थितियाँ भी समझाई थी कि कहाँ जरूरत पड सकती हैं और वे क्या कर सकती हैं।
उस पोस्ट पर एक सज्जन ने अपनी पत्नी को लेकर लिखा था कि उनके पास एक लायसेन्सी पिस्टल है और वे अपने पत्नी को भी उसको चलाना सिखाना चाहते हैं, मगर पत्नी जी मना कर देती थी – “मुझे कौन सी लड़ाई लड़नी है, तुम हो ना!”
उनको पता था कि ये तर्क बहुतही ___ जो है सो, अब और क्या कहा जाए, बेचारे सवर्ण सम्पन्न सुसंस्कारी हिन्दू घर के पति जो ठहरे। लेकिन कमेन्ट बॉक्स में जो विडिओ लिंक दी है उसे देखते ही मुझे वही कमेन्ट इतने वर्षों बाद ज्यों का त्यों याद आया।
तमिलनाडु के एक शहर में PFI कार्यकर्ताओं ने एक घर में तीन पेट्रोल बॉम्ब फेंके उसका विडिओ था। हो सकता है cctv कवरेज हो। बिना नंबर की बाइक पर दो लोग आते हैं, एक उतर कर गेट के पास जाता है और तीन जलते पेट्रोल बॉम्ब अंदर फेंकता है। झट से बाइक पर बैठकर दोनों निकल जाते हैं।
उनके सामने से स्कूटी पर एक हिन्दू महिला आती है। वेशभूषा से तो हिन्दू ही लगती है। वो रुकती है इन्हें पेट्रोल बॉम्ब फेंकते देखती है और निकल लेते भी देखती रह जाती है। अगर वो मोटर साइकल को टक्कर मारती तो दोनों गिर जाते लेकिन वो ऐसा नहीं करती। ऐसा उसे खयाल ही नहीं आया, सुन्न हो गई या लफड़ा अवॉइड करना चाहा, कह नहीं सकता। लेकिन उसके जगह कोई कृष्णाच्छादिता यावनी होती तो अवश्य स्कूटी टकराती और उनको गिराती।
उससे भी भयावह बात यह है कि उस सड़क पर उसी समय एक और हिन्दू महिला चल रही होती है। वो ऐसे ही चलती रहती है, कोई प्रतिकार तो छोड़िए, कोई प्रतिक्रिया भी नहीं, कोई आक्रोश भी नहीं। पीछे से एक साइकिल सवार आता है, धीमी गति से आता है वही धीमी गति से निकल जाता है।
ब्रॉइलर मुर्गियों के पिंजड़े में हाथ डालकर कसाई एक मुर्गी खींचता है, एक मुर्गी खींचने के बाद बाकी सभी मुर्गियाँ शांत हो जाती हैं, लेकिन जब तक उसका हाथ अंदर है तब तक चिल्लाती तो हैं, भले ही उस हाथ पर चोंच नाखून से कुछ भी प्रहार नहीं करती हों, लेकिन चिल्लाती तो हैं। यहाँ तो उतना भी नहीं।
अब जरा कोई ये बताएँ, क्या उन दोनों विधर्मियों ने किया वैसा काम कोई हिन्दू उनके क्षेत्र में जाकर कर आएगा ? आप को भी पता है एक तो जा नहीं सकता, और कोई गया तो कर नहीं सकेगा और जीवित तो हरगिज लौटकर नहीं आ सकेगा। मेरे खयाल में इस बात से कोई अलग विचार रखनेवाला नहीं मिलेगा। बहस करने के लिए कोई वामी झूठ बोले तो कर दिखाएँ। कचरा काम हो जाएगा धरती का।
तो यही व्यवस्था अपने क्षेत्र में क्यों नहीं ? इस तरह के उपद्रवियों के लिए, सामान्य आने जानेवालों के लिए नहीं। वैसे भी यह बात सार्वजनिक है कि भाजपा और संघ संबंधित संगठनों से जुड़े लोगों की सम्पूर्ण जानकारी इनके पास हैं और उन्होंने हमलों की धमकी भी दी है तो कोई व्यवस्था क्यों नहीं? सरकार नहीं देगी तो आप की क्यों नहीं ?
अब क्या व्यवस्था हो सकती है यह संसाधनों की जानकारी भले ही सार्वजनिक हो, विषय सार्वजनिक चर्चा का नहीं इसलिए इसपर कोई चर्चा न हों।
शत्रु की लड़ने की हिम्मत तब कई गुना बढ़ती है अगर सामने किसी को लड़ने की हिम्मत ही न हो। बस इतना स्मरण रहे, कश्मीर से हिंदुओं को भगाते समय नारा यह था कि अपनी महिलाओं को यहाँ छोड़ जाओ। आज तक किसी कश्मीरी नेता को इस नारे की कोई शर्म नहीं है। असल में इनको ऐसी बातो की शर्म होती ही नहीं, बल्कि उनके लिए शत्रुओं की महिलायें – लौंडियाँ – माल ए गनीमत होती हैं। तथाकथित ईश्वरी आदेश है। इसलिए बात का कोई लाभ नहीं।
आठ साल कम नहीं होते – हमारे लिए, मैं सरकार पर निर्भर रहने का विचार भी नहीं करता। वैसे भी, सरकार हर दुर्घटना में बचा नहीं सकती, हमें खुद को ही बचाना होगा। सरकार केवल मुआवजा दे सकती है, लेकिन आप मारे गए और आप की पत्नी बहन बेटी अगर लौंडी बना ली गई या घर छोड़कर भागना पड़ा तो मुआवजे की रकम क्या आप के फ़ोटो को दिखाएंगे, फूल अगरबत्ती के साथ ? खुशी मिलेगी इससे ?
इसी लिए मुझे उस मित्र का कमेन्ट याद आया जिसने कहा कि पत्नी कहती थी “मुझे कौन सी लड़ाई लड़नी है, तुम हो ना!” आशा है उस भद्र महिला के विचार परिस्थिति ने बदल दिए होंगे।
पोस्ट समाप्त। अब्बास या ऐसा ही कोई का बहाना खोजकर अपने निकम्मेपन को ढँकनेवाले कृपया दूरी रखें। बाकी सब को इसे आगे ले जाने की बिनती है।

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