Home आर ऐ -ऍम यादव ( राज्याध्यक्ष) PFI पर बैन लगने से क्या होगा
लो जी, लगा दिया सरकार ने PFI पर बैन, लेकिन उससे क्या होगा ?
मुंबई में बॉम्ब विस्फोट करवाकर देश से भागे दाऊद इब्राहीम की ताकत कम हुई क्या ? असल में खुद से पूछिए, दाऊद है ही कौन ?
सॉरी, यह सवाल गलत है। सही सवाल होगा कि दाऊद है क्या ?
क्योंकि इसी सवाल के सही उत्तर में आप समझ सकेंगे कि दाऊद है कौन। आइए, मुद्दे को सरल तरीके से समझते हैं।
क्या आप को याद है कि अन्ना हज़ारे के छेड़े आंदोलन में लाखों लोगों ने अन्ना हज़ारे जैसी गांधी टोपी पहनी थी जिसपर लिखा था “मैं भी अन्ना” , “मैं अन्ना हूँ”, “I AM ANNA” वगैरह ?
बस इसी तरह एक अलग तरह की टोपी का चित्र नजर के सामने लाइये, और हर टोपी पर लिखा हो “मैं भी दाऊद” – तब आप को समझ आएगा कि दाऊद की ताकत कम न हो कर बढ़ी कैसे। क्योंकि दाऊद वो हर आदमी और औरत (महिला जान बूझकर नहीं लिखा) है जो दाऊद को सही व्यक्ति मानती है। उनकी संघटित ताकत, दाऊद की ताकत है। दाऊद एक व्यक्ति नहीं, दाऊद वो ही विचार है जिसने पाकिस्तान बनाया और वहाँ से भारत आते निर्दोष सिक्खों और हिंदुओं पर अत्याचार, बलात्कार किये। दाऊद वो ही विचार है जिसने पाकिस्तान के लिए वोट दिया लेकिन यहीं रहना पसंद किया ताकि और संख्या बढ़ाकर और प्रदेश छीन सकें। दाऊद वो ही विचार है जिसके मुँह पर भाईचारा और दिल में भाई चारा होता है।
दाऊद की ताकत वे हिन्दू या हिन्दू नामधारी भी हैं जिन्होंने पैसों के लिए या पावर के लिए उसका साथ दिया – भारत को वे न अपना देश मानते हैं और न ही भारत के वासियों को अपने बंधु। हो सकता है बंधुआ मजदूर मानते हों। इसकी संभावना अधिक हैं।
देश से इन लोगों की निष्ठा होती तो वे दाऊद के कारोबार से कोई लाभ लेना गलत समझ समझते, उससे व्यवहार करना बंद करते और जो उससे व्यवहार करता उसे दंडित करते। आज एक्स मुस्लिम्स की जो हालत होती है, चेहरा और पहचान छुपानी पड़ती है, वही हालत उनकी होनी चाहिए थी। खत्म हो जाता दाऊद।
खत्म हुआ क्या ? उल्टा और बढ़ा ना ?
तो भायजान, देश से निष्ठा, वफादारी वगैरे आप की लफ्फाजी बेमानी है। बेमानी ही नहीं, देश से बेईमानी भी है।
पता नहीं आज दाऊद इब्राहीम कासकर नाम का व्यक्ति शरीर से कहीं जिंदा है भी या नहीं। उससे रत्तीभर का फर्क नहीं पड़ता। वो बस एक फोड़ा है, मवाद हर जगह फैला है।
PFI की बात क्या अलग है? बैन से जिन्हें खुश होना है उन्हें चद्दर तानकर सोना है, जगह जगह फैले हुए Trojan Horses से बेखबर।
जरूरत सरकार के निर्णय की ही नहीं, सरकरी बैन की भी नहीं, जनता के बैन की है।
कंधे उचकाकर “मैं क्या कर सकता हूँ” पूछनेवालों को या उनकी अगली पीढ़ी को कंधा देनेवाले चार हिन्दू मिलेंगे भी या ठेले पर लदकर किसी mass grave या सामूहिक चिता में जलना नसीब होगा?
इस पोस्ट को औरों तक पहुंचाना है तो आप की इच्छा।
महाकाली हमारे भारतवर्ष की रक्षा करें।

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