मेघनाद ने निराश व गंभीर स्वर में रावण से कहा, पिताश्री मैं आपके लिए युद्ध लड़ा। लेकिन आपने मुझसे इतनी बड़ी बात छिपाई, इतना बड़ा राज गुप्त रखा।
कुंभ कर्ण ने भी मेघनाद के स्वर में स्वर मिलाते हुए, साथ दिया, इंद्रजीत अनुचित कर रहा है भ्राता श्री, मैं तो अचंभित हूँ, आप इतनी बड़ी बात कैसे छिपा सकते है।
मेघनाद, कुम्भकर्ण क्या हुआ, थोड़ा विस्तार से हिंट तो दो। मैं इस बात को जाने बिना दहन नहीं होना चाहता हूं। रावण ने गंभीर मुंद्रा में प्रतिक्रिया दी।
पिताश्री, आपसे यह उम्मीद न थी…मेघनाद ने पुनः दोहराया।
अरे, पहेलियां क्या बुझा रहे हो, बतलाओ तो सही। कुम्भकर्ण तुम ही बतला दो, छोटे..यह मेरा आदेश है। रावण ने कहा।
चाचा जी, आप कुछ न कहे, पिता श्री को स्वयं सोचने दे और उत्तर की प्रतीक्षा करें। मेघनाद ने कुम्भकर्ण की तरफ इशारा किया।
नहीं, इंद्रजीत भ्राताश्री का आदेश का उल्लंघन करना उचित नहीं, आपने ने हमसे अपना आदिपुरुष वाला सिर छिपायाए रखा, हम समझते रहे कि आपके सिर्फ़ दस शीश है। लेकिन ग्यारहवें शीश को गुप्त रखा…कुम्भकर्ण ने भेद पर सवाल किया।
इतना ही नहीं पिताश्री, आपने यह भी भेद दबाए रखा, कि आपके टूथपेस्ट में नमक है…इंद्रजीत ने गुस्से भरे स्वर में बोला।
मेघनाद, कुम्भकर्ण मैं नहीं जानता हूँ तुम क्या बात कर रहे हो। इतने सालों से तुम दोनों के बीच खड़े होकर जल रहा हूँ। भेद कहाँ बच पाएगा