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आज के राम राज्य की आदर्श दण्ड परम्परा

by आनंद कुमार
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राम राज्य स्थापित हो चुका था और अवध के नागरिक-ग्रामीण सभी प्रभु श्री राम के शासन में आनंद-पूर्वक निवास करते थे। सब कुछ बढ़िया चल रहा था कि एक दिन एक कुत्ता, श्री राम के दरबार तक रोता-रोता पहुँच गया। एक तो ऐसे ही कुत्ते का रोना अपशकुन माना जाता है, ऊपर से वो श्री राम के पास जा पहुंचा था। सुनवाई तो तुरंत होनी ही थी! कुत्ते को दरबार में अन्दर लाया गया। उससे पूछा गया कि उसे क्या कष्ट है?
कुत्ते ने बताया कि उसने एक पुजारी की थाली में मुंह मारा था। भोजन चाट लेने के अपराध में पुजारी ने कुत्ते को धो डाला। ऐसी हरकत पर पिटाई वैसे तो उचित ही थी, लेकिन कुत्ते का कहना था कि एक-आध लात मारकर उसे पशु मानकर भगा देना था। इतनी अधिक पिटाई अनुचित थी। दरबारियों और श्री राम ने भी माना कि पिटाई ज्यादा हुई है इसलिए पुजारी को दण्डित किया जाये। इस तरह का अपराध पहले कभी आया नहीं होगा इसलिए दंड तय नहीं था।
अंततः कुत्ते से ही पूछा गया कि बताओ क्या दंड दिया जाए? कुत्ता बोला, इस पुजारी को नगर के मुख्य मंदिर का प्रधान पुजारी बना दीजिये। ये कैसा दंड हुआ? सब बोल पड़े अरे कुत्ते दंड देने के बदले तुम तो पारितोषिक दे रहे हो। कहीं छोटी जगह पूजा करता होगा ये, उसे मुख्य मंदिर का प्रमुख पुजारी बनवाने पर तुले हो? कुत्ता बोला महाराज पिछले जन्म में मैं भी एक मंदिर का प्रमुख पुजारी ही था। समय के साथ मैं भ्रष्ट हुआ और दंड स्वरुप इस जन्म में कुत्ता बना।
किसी भी मंदिर का मुख्य पुजारी थोड़े समय में भ्रष्ट होगा, और फिर उसे कर्मफल के हिसाब से दंड झेलना होगा। पूर्व जन्म के पापों के कारण जैसे कुत्ता स्वयं लात खाता था, वैसी ही दशा वो पुजारी की करना चाहता था!
ये जो विचित्र सी कथा है, वो आनंद रामायण में आती है। आनंद रामायण को वाल्मीकि जी की ही रचना माना जाता है और इसका अधिक भाग राम-रावण युद्ध के बाद का है, इसलिए इसमें विरह की प्रधानता है। इस कारण इसे कुछ लोग “शोक रामायण” भी कह देते हैं।
इस रामायण की विचित्र कथाओं में जहाँ हनुमान जी कि पूंछ में आग लगने का प्रसंग आता है, वहाँ भी कुछ अधिक कथाएँ-संवाद मिलेंगे। जैसे कि जब हनुमान जी की पूँछ में आग लगाने का प्रयास किया गया तो आग जल ही नहीं रही थी। इसपर हनुमान ने कहा ये शायद राक्षसों के बस की बात है ही नहीं! हाँ, रावण फूंक मारे, तो हो सकता है आग जल जाए। ये सुनकर रावण फूंक मारने आया मगर इस प्रयास में रावण की दाढ़ी में ही आग लग गयी। दाढ़ी में लगी आग बुझाने के लिए रावण अपने दसों मुखों पर अपने बीस हाथों से थप्पड़ मारने लगा और ये देखकर सारे राक्षस हंसने लगे!
इस प्रसंग के बारे में कामिल बुल्के ने अपनी “रामकथा” में (पृष्ठ 415) भी लिखा है। वाल्मीकि जी के रावण की दाढ़ी होती थी, मूछें हो सकता है रही हों, हो सकता है सफाचट भी हों। बाकी प्रधान पुजारी के अगले जन्म में कुत्ता होने का प्रसंग याद रखियेगा। पूरी जानकारी के बिना रामकथा सुनाने आये व्यक्ति का विरोध करने पर कुत्ता होने के लिए अगले जन्म तक प्रतीक्षा करनी होगी या नहीं, इसका हमें अनुमान नहीं है।

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