Home हमारे लेखकनितिन त्रिपाठी विश्व में नारी का बढ़ता कद
घुटनों के सर्जन से बात हो रही थी. विदेशों में भी रहे हैं और घुटने एकदम पर्फ़ेक्ट लगाते हैं. विदेश में उनके लगाए घुटनों से लोग टेनिस तक खेल लेते हैं आराम से. विशेष समस्या नहीं आती.
भारत में वह मरीज़ को इतनी हिदायत देते हैं कि लगता है घुटने का नहीं दिल का ऑपरेशन कर रहे हों. उन्होंने अकेले में बताया, बाहर पेशेंट को बता दो छः महीने संयम रखो फ़िर धीमे धीमे यह असली जैसा ही हो जाएगा बस दस से बीस डिग्री कम मुड़ेगा. ज़मीन पर मत बैठना, पैरों को पूरा फ़ोल्ड मत करना. व्यक्ति इसे सौ प्रतिशत मानता है और जीवन भर समस्या नहीं होती. इधर विशेष कर महिलाएँ – जिस आयु में घटना चेंज होता है उस आयु तक उनका दुनिया से मोह समाप्त हो चुका होता है.
ऑपरेशन होते ही पहला मौक़ा मिलते ही ज़मीन पर बैठ कर पूजा की जाएगी. घुटनों के बल लेट कर दण्डवत किया जाएगा. घुटने फ़िर ख़राब हो जाएँगे. ऐसी हालत हो जाएगी कि चल फ़िर न पाएँ. इसी लिए यहाँ पहले से ही इतना नेगेटिव बता देते हैं कि झगड़ने न आएँ.
वैसे बात सच है. भारत में महिलाओं का स्तर बहुत तेज़ी से परिवर्तित हुआ. सोसल मीडिया पर लोग चाहे जो लिखते हों एक पीढ़ी पूर्व तक महिलाओं का सामान्य इलाज तक न होता था. दो पीढ़ी पूर्व तक तो बच्चे पैदा करो और फ़िर अगले दिन से ही काम पर लग जाओ. न नूट्रिशन था न हेल्थ सर्विस और न केयर. मृत्यु हो गई तो पति की दूसरी शादी कम आयु वाली से आसानी से हो जाती थी. मिर्ची लगने वाला है पर कड़वा सच है.
बीते तीन दसकों में महिलाओं की स्थिति में बहुत सुधार हुआ. पहले मॉडर्न फ़ैमिली में भी बहुत ज़्यादा हुआ तो टीचर तक सोंचा जाता था. एयर होस्टेस, वेट्रेस जैसी जॉब को तो स्ट्रिपर जैसा समझा जाता था. पूरे लखनऊ शहर में एक भी फ़ीमेल वेट्रेस न थी – फ़ाइव स्टार में भी नहीं. लेकिन अब फ़ीमेल लगभग सभी जगहों पर दिखती हैं. पर्फ़ेक्ट नहीं है पर हाँ पहले से बेहतर है.
पर इस जेनरेशन की विमन दो पीढ़े पहले के बलिदानी अम्मा सिंड्रोम से ग्रस्त होती हैं अनचाहे ही. चूँकि बचपन में जो देखा है वह जाता नहीं तो अनचाहे अनजाने ही वह स्वयं को इग्नोर करती हैं, खुद की हेल्थ इग्नोर करती हैं, जीवन का इकमात्र उद्देश्य पति / बेटा मान लेती हैं.
त्याग सदैव सराहनीय और पूजनीय होता है, पर अब इसकी आवश्यकता नहीं रही. अधिसंख्य लोग कम से कम थ्योरी में तो महिलाओं को सक्षम मानने ही लगे हैं. अब घर में भी ऐसा नहीं कि बीमार होने पर माता का उतना अच्छा इलाज न करवाया जाता हो जितना पिता का.
तो महिलाओं को भी इस बलिदानी अम्मा सिंड्रोम से निकलने की आवश्यकता है. आज करवा चौथ का व्रत है. आपका त्याग / प्रेम सराहनीय है, अतुलनीय है. आपने व्रत किया तो पतियों का दायित्व भी है कि वह आपको एक लेवल बढ़ कर केयर करें. और यह केयर तभी होगी जब आप स्वयं की केयर करेंगे. आप स्वयं को इग्नोर करेंगे तो दूसरों को कैसे समझ आएगा कि आपको केयर की ज़रूरत है.

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