Home विषयइतिहास वाल्मीकि रामायण (भाग-8) बाल कांड तड़का वध शेष ..

वाल्मीकि रामायण (भाग-8) बाल कांड तड़का वध शेष ..

सुमंत विद्वांस

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महर्षि विश्वामित्र के आदेश पर श्रीराम ने अपने धनुष की प्रत्यंचा पर तीव्र टंकार दी और उनके धनुष की आवाज से दसों दिशाएं गूंज उठीं। उस भीषण स्वर को सुनकर राक्षसी ताटका भी क्रोध से फुफकारती हुई उसी स्वर की दिशा में तेजी से दौड़ पड़ी।
ताटका के शरीर की ऊंचाई बहुत अधिक थी। उसकी मुखाकृति विकृत थी। क्रोध में भरी उस राक्षसी को देखकर श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा, “लक्ष्मण! देखो तो इसका शरीर कितना भयंकर है। भीरू लोग तो इसे देखकर ही भय से कांप उठते होंगे। स्त्री होने के कारण यह रक्षित है, अतः मैं इसे मारना नहीं चाहता। मैं इसके नाक और कान काटकर इसे पीछे लौटने पर विवश कर देता हूं अथवा इसके हाथ पैर तोड़कर इसकी शक्ति नष्ट कर देता हूं, ताकि अब यह किसी को पीड़ा न दे सके।”
ऐसी बातें हो ही रही थीं कि क्रोध से फुफकारती हुई वह राक्षसी वहां आ पहुंची। उसने दोनों भाइयों पर भयंकर धूल उड़ाना आरंभ कर दिया। वहां धूल का विशाल बादल छा गया। फिर वह उन पर पत्थरों की बड़ी भारी वर्षा करने लगी।
यह देखकर श्रीराम बड़े कुपित हुए। उसके सभी पत्थरों का प्रहार अपने बाणों से रोकते हुए उन्होंने उस निशाचरी की दोनों भुजाएं काट डालीं। लेकिन अभी भी वह घोर गर्जना करती हुई उनकी ओर बढ़ती रही। तब लक्ष्मण जी ने क्रोध में भरकर उसके नाक-कान काट लिए।
लेकिन इसके बाद भी वह राक्षसी परास्त नहीं हुई। अब वह मायावी रूप धरकर आकाश में विचरने लगी और वहां से पुनः दोनों भाइयों पर पत्थरों की भारी वर्षा करने लगी।
यह सब देखकर विश्वामित्र जी ने श्रीराम से कहा, “राम! इस पापिणी पर दया करने का तुम्हारा विचार व्यर्थ है। यह बड़ी दुराचारिणी है और यज्ञों में सदा विघ्न डाला करती है। यह अपनी माया की शक्ति से पुनः प्रबल हो जाए, उसके पहले ही तुम इसे मार डालो। अभी संध्या का समय होने वाला है। इस समय के बाद राक्षस दुर्जय हो जाते हैं, इसलिए उससे पहले ही यह कार्य तुम्हें पूर्ण कर लेना चाहिए।”
यह सुनकर श्रीराम जी ने अपना कौशल दिखाते हुए उस राक्षसी को सभी ओर से अवरुद्ध कर दिया। तब वह आक्रमण करने के लिए दोनों भाइयों की ओर बहुत तेज गति से लपकी। यह देखकर श्रीराम ने एक ही बाण में उसकी छाती चीर डाली। भीषण चीत्कार करती हुई ताटका पृथ्वी पर गिरी और उसके प्राण पखेरू उड़ गए।
यह देखकर देवराज इन्द्र समेत सभी देवता अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने श्रीराम के पराक्रम की बड़ी सराहना की और विश्वामित्र जी से कहा, “हे ब्रह्मन! कृपया आप अपने सभी दिव्यास्त्र अब राम को समर्पित करें। केवल ये ही उन अस्त्रों के योग्य हैं। राजकुमार राम के हाथों देवताओं का एक महान कार्य संपन्न होने वाला है।” ऐसा कहकर सभी देवता आकाशमार्ग से वापस लौट गए।
तब विश्वामित्र जी ने दोनों भाइयों से कहा, “आज की रात हम लोग इसी ताटका वन में निवास करेंगे और कल सुबह अपने आश्रम पर चलेंगे।” उसी के अनुसार उन तीनों ने सुखपूर्वक वन में वह रात्रि व्यतीत की।
श्रीराम की कृपा से उसी दिन वह भीषण वन उस राक्षसी के प्रकोप से मुक्त होकर पुनः रमणीय बन गया था। ताटका का वध करके श्रीराम भी देवताओं की प्रशंसा के पात्र बन गए।
(आगे अगले भाग में…)
(स्रोत: वाल्मीकि रामायण। बालकाण्ड। गीताप्रेस)

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