Home महिला लेखकज़ोया मंसूरी सूर्य ग्रहण एक खगोलीय घटना

सूर्य ग्रहण एक खगोलीय घटना

ज़ोया मंसूरी

by ज़ोया मंसूरी
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सूर्य ग्रहण हालांकि एक खगोलीय घटना है लेकिन धार्मिक रूप से भारत मे लोग मानते रहे हैं कि सूर्य ग्रहण इसलिए होता है क्योकि एक राक्षस राहु भगवान सूर्य को निगल जाता है। निर्वाण प्राप्त करने वाले बुद्ध के धर्म ग्रन्थों में भी यही मान्यता है। ऐसा नहीं है कि भारत मे ही सूर्य ग्रहण को लेकर ऐसी कहानियां प्रचलित रही हों, दुनियां भर में ऐसी कहानियां प्रचलित हैं।
चीन के लोग मानते थे कि सूर्य को एक ड्रेगन खा जाता है। माया सभ्यता के लोग मानते थे कि सूर्य को एक सर्प खा जाता है। मूल अमेरिकी मानते थे कि एक काली गिलहरी और शेर सूर्य को खा रहा है। वियतनाम में लोग मानते थे कि एक मेढ़क सूर्य को खाता है इसलिए सूर्य ग्रहण होता है। भारत मे यह विश्वास लगभग 4000 वर्ष से ज्यादा पुराना है।
भारत मे खासकर वैदिक काल में सभी ग्रहों और प्राकृतिक शक्तियों को ईश्वर माना गया है। रात्रि में भूत प्रेतों जंगली पशुओं से लगने वाला डर तभी समाप्त होता है, जब आसमान में सूर्य की लालिमा बिखर जाती है। इसलिए पूर्व दिशा प्राचीन काल से ही शुभ मानी जाती है। यज्ञ कराने वाले पुरोहित का अर्थ भी पूर्व दिशा में बैठने वाला पुजारी है।
हिन्दू धर्मग्रंथों में सूर्य की संकल्पना सात घोड़ों के रथ पर सवार एक रथी योद्धा देवता के रूप में की गई है। उनके रथ को विमान कहा गया है, जिसमें 12 पहिए हैं। यह धारणा भी लगभग 3000 वर्ष पुरानी है। जिसमे विमान के सात घोड़े सात दिनों और 12 पहिए वर्ष के 12 माह को प्रदर्शित करते हैं। भारत में दिन की शुरुआत सूर्योदय के साथ होती है, जबकि पश्चिम में मध्यरात्रि से। इसलिए हमारे यहां उपवास सूर्योदय से सूर्योदय तक माना जाता है।
वेदो से लेकर पुराणों तक ऐसे कई प्रसङ्ग है जिनमे इंद्र और सूर्य के बीच मतभेद नज़र आता है। इसे इस नजरिए से भी देख सकते हैं कि जब इंद्र के आदेश से बादल बरसते है तो सूर्य को ढंक लेते हैं। यह मतभेद रामायण काल मे सूर्य पुत्र सुग्रीव और इंद्र पुत्र बाली के रूप में और महाभारत काल में सूर्य पुत्र कर्ण और इंद्र पुत्र अर्जुन के बीच भी नज़र आता है। अब कलयुग में ही देख लीजिए आज ही के दिन इंद्र ने मथुरा पर बारिश करवाई थी और आज ही सूर्य ग्रहण भी हो गया। मतलब ख़ानदानी दुश्मनी टाईप मामला रहा है।
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार भगवान विश्वकर्मा की बेटी शरण्या से उनका विवाह हुआ था। शरण्या से उनके दो बेटे और एक बेटी जन्म लेती है, सावर्णि मनु, यम और यामिनी। लेकिन भगवान सूर्य का तेज इतना अधिक था कि शरण्या उन्हें देख ही नहीं पाती थी। इस बात से वो इतना ज्यादा फ्रस्टेट हो गई कि अपनी एक क्लोन कॉपी भगवान सूर्य के पास छोड़ कर अपने मायके चली गई। यह क्लोन कॉपी देवी छाया कहलाती हैं।
भगवान सूर्य को पता ही नही चला कि उनकी पत्नी उनके पास एक नकली पत्नी छोड़ गई है। देवी छाया से भगवान सूर्य के दो बेटे भगवान शनि और भगवान रेवन्त जन्म लेते है। एक बार यम अपनी माता देवी छाया से किसी बात पर झगड़ा कर बैठे, इससे नाराज होकर देवी छाया ने उन्हें श्राप दे दिया। यह देखकर सूर्य भगवान को एहसास हुआ कि यह उनकी पत्नी शरण्या नहीं है क्योंकि एक माँ क्रोध में भी अपने बच्चे को श्राप नहीं दे सकती।
जब भगवान सूर्य को सच पता चला तो भागे भागे अपनी ससुराल पहुंचे। उन्हें देखकर उनकी पत्नी शरण्या बिल्कुल खुश नहीं हुई। वो इतनी ज्यादा नाराज थी कि अश्व का रूप लेकर भाग गईं। भगवान सूर्य भी अश्व का रूप लेकर उनके पीछे दौड़े और उन्हें मनाने के क्रम में अपना तेज कम करने का वचन दिया। तब जाकर देवी शरण्या की नाराजगी कुछ कम हुईं। इसके बाद उनके मिलन से अश्विनी कुमारों का जन्म हुआ।
भगवान सूर्य और देवी शरण्या की यह पौराणिक कहानी हमें यह शिक्षा देती है अति हर चीज़ की बुरी होती है चाहे वह तेज हो, सकारात्मकता हो, नकारात्मकता हो, सेकुलरिज्म हो या कट्टरता। अति होने पर आपके ही प्रिय लोग आपका साथ छोड़ कर भाग जाते हैं। साथ ही दद्दा लोगों से निवेदन है कि अपना तेज कुछ कम करें, आपके हज़ारों लाईक कमेंन्ट के तेज के सम्मुख मेंरे लाईक कम होते जा रहे है।

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