Home UncategorizedPraarabdh Desk पहले बुरखे का समर्थन और नातिन को यह सलाह!: जया बच्चन

पहले बुरखे का समर्थन और नातिन को यह सलाह!: जया बच्चन

by Praarabdh Desk
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पहले बुरखे का समर्थन
और नातिन को यह सलाह!
‘बिन शादी माँ बनो, मुझे दिक्कत नहीं: जया बच्चन ने दी नातिन को सलाह, शारीरिक संबंध को कहा जरूरी
आज आजमखान,
हम सब पर हंस रहा होगा,वो सोच रहा होगा कि मैंने तो सिर्फ कलर बताया था लेकिन ये जया ने तो अपनी नातिन को ही स्वच्छंदी जिंदगी जीने की
सलाह दे रही है।
कला जगत से जुड़े लोगों को सीरियस नहीं लेना चाहिए।
फालतू ही लोग हीरो बनाते हैं।
पुराने जमाने में ये प्रायः घुमक्कड़ होते थे, इन्हें गांव से बाहर रखा जाता था वहीं डेरा होता था।
ड्योढ़ी लांघने भी नहीं देते थे। अपनी कला दिखाओ, इनाम लो और चलते
बनो।
समाज की रीति नीति में न ये सलाह देते थे न ही इनकी औकात होती थी।
इनके पारस्परिक सम्बन्ध काफी कम्प्लिकेटेड होते थे जिसे वे अपनी कला पर हावी नहीं होने देते थे।
जितना बड़ा कलाकार उतना ही नशेड़ी गंजेड़ी व्यभिचारी।
अपनी मजबूरी वे समझते थे और समाज भी इनकी इस पर्सनल लाइफ में हस्तक्षेप नहीं करता था।
गायक, नर्तक, करतबबाज, नट नटनियाँ वगैरह सभ्य समाज में घुलमिल नहीं पाती थी।
उनकी कला उन्हें ऐसा विवश कर देती है कि यह सब करना ही पड़ता है।
फ़िल्म कलाकार महमूद जितनी बढ़िया हँसाने की एक्टिंग करता था, बाद में घर जाकर उतना ही रोता था। डिप्रेशन से बचने के लिए यह जरूरी होता है। बाद में वह मारिजुआना का एडिक्ट हुआ और अमरीका में दर्दनाक मौत हुई।
ये लोग मनोरंजन करते हैं पेट पालने के लिए। विकृतियां स्वाभाविक है। कोई ज्ञानी ध्यानी या योगी तपस्वी नहीं है कि प्रसिद्धि पचा लें।
जो ऐसा करते हैं वे मुख्यधारा के समाज को समझते भी हैं जैसे कि दक्षिण भारत के कलाकार।
अन्यथा नशा, वासना, अवैध संबंध, गाली गलौज और उटपटांग हरकतें इनकी फितरत है।
अतः इनका डेरा नगर बस्ती से साइड में रखते थे, रात को दारू पीकर गाली गलौज करते, औरतों को पीटते सुबह जैसे थे वैसे!
अतः इन्हें मान सम्मान या अधिक धन नहीं देना चाहिए अन्यथा वे समाज के महाजन बन जाते हैं और कुसंस्कारों से पीढ़ी को बर्बाद कर देते हैं।
राजस्थान के प्रायः हर गांव में लोकल कलाकार हैं और वे बहुत उच्च श्रेणी के हैं, लेकिन आपको सारे के सारे दारूढ़िये या अफीमची मिलेंगे। इनके छोटे छोटे बच्चे भी वे सभी नशे करते हैं जो दुनिया में है।
हमारे पूर्वजों ने बहुत सोच समझ कर ये निर्णय लिए थे कि एक मानव होने के नाते उनका भरपूर सम्मान करेंगे, उनकी आजीविका का भी प्रबंध करेंगे उनकी कला को पूरा प्रोत्साहन देंगे लेकिन घर परिवार के, सांस्कृतिक निर्णयों में उनकी कोई राय नहीं ली जाएगी। पूछा भी नहीं जाएगा।
तो इनमें और बॉलीवुड के कलाकारों में केवल धन के आगमन के अलावा कोई भिन्नता नहीं है।
ये दारू की थैली चूसकर कचरे के ढेर पर गिर जाते हैं और वे हशीश के सुड़के चेंप अपने फ्लैट या कार में गिरे रहते हैं।
कोई बात नहीं, आप खाओ, पियो, व्यभिचार करो, तुम्हारी मजबूरी है, अच्छी कला के लिए यह सब चलेगा लेकिन प्लीज सलाह मत दो!!
इधर, मीडिया और अधपढ लौंडे लौंडिया ने उन्हें हीरो-हीरो कहकर इतना चढ़ा दिया है कि उनका माथा खराब हो गया है।
वे भी अभिनेता से नेता और नीति निर्माता बनने चले हैं।
कुछ नहीं,….. वो जया बच्चन अपनी नातिन को सलाह दे रही है न, उससे याद आया। सोचा बता दूं।

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