ये एक और मामला है लव जिहाद का जहाँ एक मुस्लिम युवक ने एक हिन्दू लड़की की बड़ी ही बेरहमी से हत्या कर दी और उसके शव के कई (लगभग 36) टुकड़े कर के घर पर ही फ्रीज़ में रख लिए जी हां यह घटना है दिल्ली की जहाँ पर श्रद्धा नाम की एक युवती आफ़ताब नामक युवक के साथ लिव इन रिलेशन शिप में एक ही घर में रहते थे और एक दूसरे के प्रेम प्रसंग में थे जब श्रद्धा ने आफ़ताब से शादी करने को लेकर अपने घर में बात करने को कहा तो दोनों के बीच इस बात को लेकर झगड़ा होने लगा कई बार श्रद्धा वापस अपने घर जाने को बोलने बोलती तो वह उसे अपनी बातो में फसा कर उसे इस कदम को करने से रोक लेता ऐसी न जाने कितनी घटनाये आये दिन हो रही है और आरोपी ऐसी वारदात को अंजाम देकर जरा सा भी अफ़सोस महसूस नहीं करता फिर चाहे मामला उत्तराखंड का हो या फिर यह
प्रातः से, इस समाचार पर की प्रेमी अफताब ने अपनी प्रेमिका श्रद्धा, जिसके साथ वह मुंबई से भाग कर दिल्ली में रह रहा था, उसके 35 टुकड़े कर, उसे पूरी दिल्ली में बांटे है, सोशल मीडिया पर बड़ी अक्रोशित प्रतिक्रिया देख रहा हूं। इस समाचार पर मेरे अंदर कोई आक्रोश नही जगा, यह मेरे लिए तो आश्चर्यजनक नही था लेकिन मेरी तथाकथित असंवेदनशीलता पर कई अभिन्न लोग आहत हुए है, मुझे इस पर अवश्य आश्चर्य जरूर हुआ है।
मैं समझता हूं की श्रद्धा की गति उसके स्वयं की गति थी और साथ में, उसके माता पिता, जो मेरी पीढ़ी का नेतृत्व करते है, उन्हे भी श्रद्धा की गति का भागी मानता हूं।
मैं तो यही समझता हूं कि अफताब तो अफताब ही रहेगा, भले ही कोई भी श्रद्धा, यह मानती रहे की ‘मेरा अब्दुल ऐसा नहीं है’। बात यह कटु है लेकिन हमारी पीढ़ी के माता पिताओं ने ही श्रद्धा को, ‘ मेरा अब्दुल ऐसा नहीं है’ को स्वीकारता प्रदान की है। हम लोग इससे मुंह नही मोड सकते है और हमें यह सब, अब्दुल के साथ ही स्वीकारना है।
यहां पर, अफताब या अब्दुल बिल्कुल भी गलत नही है क्योंकि उन्हें तो काफिरों को हलाक कर, अपनी जन्नत की सीट बुक करनी थी! यह तो श्रद्धा की श्रद्धा है कि उसने, अफताब को जन्नत का मोमिन बना दिया है।