Home विषयजाति धर्मईश्वर भक्ति वाल्मीकि रामायण अयोध्या काण्ड : भाग 22
रात बीती और पुष्य नक्षत्र में राज्याभिषेक का शुभ मुहूर्त आ गया। अपने शिष्यों के साथ महर्षि वसिष्ठ राज्याभिषेक की आवश्यक सामग्री लेकर राजा दशरथ के अंतःपुर में पहुंचे। उन्होंने मंत्री सुमन्त्र से कहा, “सूत! तुम शीघ्र जाकर महाराज को मेरे आगमन की सूचना दो।”
“उन्हें बताओ कि श्रीराम के राज्याभिषेक के लिए सारी सामग्री एकत्र कर ली गई है। गंगाजल से भरे कलश ला लिए गए हैं। सोने के कलशों में समुद्र का जल भी आ गया है। अभिषेक के लिए गूलर की लकड़ी का भद्रपीठ बनाया गया है, जिस पर बिठाकर श्रीराम का राज्याभिषेक होगा। सब प्रकार के बीज, गन्ध, कई प्रकार के रत्न, शहद, दही, खील, कुश, फूल, दूध, आठ सुंदरी कन्याएं, गजराज, चार घोड़ोंवाला रथ, चमचमाता खड्ग, उत्तम धनुष, पालकी, श्वेत छत्र, चंवर, सोने की झारी, स्वर्णमाला से अलंकृत ऊंचे डील वाला श्वेत पीतवर्ण का वृषभ, चार दाढ़ों वाला सिंह, उत्तम अश्व, सिंहासन, व्याघ्रचर्म, समिधाएं, अग्नि, सब प्रकार के वाद्य, वारांगनाएं, सौभाग्यवती स्त्रियां, आचार्य, ब्राह्मण, गौ, पवित्र पशु-पक्षी, देश-देश के प्रसिद्ध व्यापारी और उनके सेवक तथा बड़ी संख्या में प्रजाजन प्रसन्नतापूर्वक श्रीराम के राज्याभिषेक के लिए उपस्थित हैं। तुम महाराज से शीघ्र चलने को कहो, ताकि यह शुभ मुहूर्त बीत न जाए।”
वसिष्ठ जी की यह बात सुनकर सुमन्त्र राजा दशरथ के पास गए। राजा का आदेश था कि सुमन्त्र को कभी भी उनके पास आने से रोका न जाए, अतः वे सीधे ही महाराज के कक्ष में जा पहुंचे।
उन्हें राजा के दुःख का पता न था। अतः उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक दशरथ जी से कहा, “महाराज! श्रीराम के राज्याभिषेक की तैयारी पूर्ण हो गई है और सब आपके आगमन की प्रतीक्षा कर रहे हैं।”
यह सुनकर दशरथ जी का शोक और भी बढ़ गया। उन्होंने कहा, “तुम यह बात कहकर मेरी पीड़ा को और अधिक क्यों बढ़ा रहे हो?”
सुमन्त्र को इस बात से बड़ा अचंभा हुआ। वे समझ नहीं पाए कि इस पर क्या कहें।
तभी कैकेयी बोली, “सुमन्त्र! श्रीराम के राज्याभिषेक के हर्ष से महाराज सारी रात सो नहीं पाए हैं। अत्यधिक थकावट के कारण इन्हें नींद आ गई है। तुम तुरंत जाओ और श्रीराम को यहां बुला लाओ।”
तब सुमन्त्र ने कहा, “भामिनी! मैं महाराज की आज्ञा के बिना कैसे जा सकता हूं?”
इस पर दशरथ जी बोले, “सुमन्त्र! मैं सुन्दर श्रीराम को देखना चाहता हूं। तुम शीघ्र ही उसे यहां ले आओ।”
राजा की यह आज्ञा सुनते ही सुमन्त्र तुरंत श्रीराम को बुलाने के लिए निकल पड़े। वे यह भी सोचते जा रहे थे कि न जाने क्यों कैकेयी इस प्रकार श्रीराम को शीघ्र बुलाने की उतावली कर रही थी।
श्रीराम के महल में पहुंचकर उन्होंने देखा कि बड़ी संख्या में नगरवासी श्रीराम के लिए उपहार लेकर द्वार पर खड़े हैं। श्रीराम की सवारी में उपयोग किया जाने वाला शत्रुञ्जय नामक सुन्दर गजराज भी वहां था। राजा के अनेक प्रमुख मंत्री भी सुन्दर वस्त्राभूषणों से विभूषित होकर हाथी, घोड़े और रथों पर वहां आए हुए थे।
उन सबको एक ओर हटाकर सुमन्त्र ने श्रीराम के भवन में प्रवेश किया।
आगे जारी रहेगा…

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